मॉनसून आते ही किसान अलग-अलग फसलों की खेती करने लगते हैं. वैसे धान खरीफ की प्रमुख फसल है, लेकिन आजकल देश में सबसे अधिक चर्चा मोटे अनाजों की खेती का है. ऐसा ही एक मोटा अनाज रागी है, जिसे फिंगर मिलेट या मडुआ के नाम से भी जाना जाता है, यह एक पौष्टिक अनाज है, जिसकी खेती दुनिया के कई क्षेत्रों में की जाती है. खासकर अफ्रीका और एशिया प्रमुख क्षेत्रों में इसकी खेती प्रमुखता से हाेती है. रागी आवश्यक पोषक तत्वों का भंडार है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन और मैग्नीशियम जैसे खनिज शामिल हैं. रागी आहार फाइबर का एक अच्छा स्रोत है, जो पाचन में सहायता करता है, और शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है. इसे खाना हड्डियों और दांतों के लिए फायदेमंद माना जाता है.
रागी में पाए जाने वाले पोषक तत्वों को देखते हुए इसकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है. इतना ही नहीं बाजार में रागी से बने कई प्रॉडक्ट भी मिलने लगे हैं. ऐसे में रागी की बढ़ती मांगों को देखते हुए किसान इस मॉनसून रागी की खेती कर सकते हैं. आइए जानते हैं कि किसान इस मॉनसून रागी की किन उन्नत किस्मों की खेती कर बंपर पैदावार और मुनाफा कमा सकते हैं.
1. बीएल-376- बीएल रागी (मडुआ) 376 किस्म रागी की एक उत्तम किस्म है. इसकी उपज क्षमता 12 क्विंटल प्रति एकड़ है. इसकी फसल 103 से 109 दिन में तैयार हो जाती है. इस किस्म की खेती देश के सभी हिस्सों में की जा सकती है. इसलिए किसान मॉनसून में इस किस्म की खेती कर बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं.
2. बीएल रागी 146- बीएल रागी 146 किस्म अगेती की सबसे अच्छी किस्म है. इसकी उपज क्षमता 10-11 क्विंटल प्रति एकड़ तक होती है. वहीं इसकी फसल 95 से 100 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. इस किस्म की खेती उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के लिए उपयुक्त माना जाता है.
3. बीएल 124 - बीएल 124 किस्म रागी की एक बेहतर किस्म है. ये किस्म 95 से 100 दिन में तैयार होने वाली अगेती किस्म है. इसकी उपज क्षमता 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ है. यह किस्म पहाड़ी राज्यों और उत्तर प्रदेश के लिए बेहतर मानी जाती है. किसान इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
वर्तमान बाजार दरों के अनुसार, रागी का औसत मूल्य 3850 रुपये प्रति क्विंटल है. यदि किसान इसकी खेती करें तो दो महीने में काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. इससे किसानों की खेत खाली छोड़ने की समस्या भी खत्म होगी और कम पानी में बेहतर उत्पादन भी मिलेगा.
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