Mustard Farming: गेहूं नहीं, सरसों से भरें अपनी झोली, जानिए पूरी खेती की टिप्स

Mustard Farming: गेहूं नहीं, सरसों से भरें अपनी झोली, जानिए पूरी खेती की टिप्स

गेहूं की बजाय सरसों की खेती करें और कम लागत में अधिक मुनाफा कमाएं. इस गाइड में जानिए उपयुक्त मिट्टी, उन्नत बीज, खाद और सिंचाई के तरीके, कीट और रोग नियंत्रण, और आधुनिक मशीनों के उपयोग से उत्पादन बढ़ाने के टिप्स. रबी सीजन में कम मेहनत और ज्यादा लाभ के लिए किसान इसे जरूर अपनाएं.

Advertisement
Mustard Farming: गेहूं नहीं, सरसों से भरें अपनी झोली, जानिए पूरी खेती की टिप्ससरसों की खेती से जुड़ी जानकारी

रबी सीजन में अधिकतर किसान धान की कटाई के बाद गेहूं की खेती में लग जाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सरसों की खेती कम लागत में ज्यादा मुनाफा दे सकती है? बदलते मौसम, सिंचाई की कमी और बढ़ती लागत के बीच, सरसों की फसल न केवल आपकी मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है, बल्कि बाजार में उच्च दाम के कारण आपके खेत को सोना उगला सकती है. अगर आप इस साल गेहूं की बजाय सरसों उगाते हैं, तो कम मेहनत और कम खर्च में बड़ा लाभ हासिल कर सकते हैं.

सरसों के लिए उपयुक्त मिट्टी और मौसम

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, सरसों हल्की दोमट से लेकर मध्यम काली मिट्टी में अच्छी होती है. यह फसल अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में बेहतर उगती है और PH 6–7.5 वाली मिट्टी अच्छी मानी जाती है. रबी मौसम की हल्की सर्दी में यह बिना अधिक सिंचाई के भी 110–130 दिनों में तैयार हो जाती है, इसलिए कम बारिश वाले इलाकों के लिए यह फसल विशेष रूप से उपयुक्त है.

उन्नत प्रजातियां और बीज उपचार

सरसों की उन्नत किस्में अधिक उत्पादन देती हैं. इनमें पूसा बोल्ड, वरुणा, रोहिणी, आशिरवाद और जीएम-3 शामिल हैं. बीज उपचार के लिए 3 ग्राम थायरम या कैप्टान प्रति किलो बीज का उपयोग किया जाता है और माहू या दीमक से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड का इस्तेमाल लाभकारी होता है. बीज उपचार न केवल रोगों को रोकता है बल्कि अंकुरण भी बेहतर करता है. इन उन्नत किस्मों से किसान लोकल बीज की तुलना में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं.

खेत की तैयारी और बुवाई

सरसों की खेती के लिए खेत की सही तैयारी बहुत जरूरी है. दो से तीन जुताई के बाद खेत को भुरभुरा बनाकर समतल किया जाता है. कतार की दूरी 45 सेमी और पौधों की दूरी 5–7 सेमी रखना आदर्श माना जाता है. समय से बुवाई, जो अक्टूबर के मध्य से नवंबर तक होती है, उत्पादन को 20–25% तक बढ़ा देती है और किसान को अधिक मुनाफा सुनिश्चित करती है.

खाद और सिंचाई

सरसों की बेहतर उपज के लिए पोषण जरूरी है. नाइट्रोजन 60–80 किलो, फास्फोरस 40 किलो और गंधक 20-25 किलो प्रति हेक्टेयर देना जरूरी है. सरसों को 2–3 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है. पहली सिंचाई फूल आने पर और दूसरी दाना बनने पर की जाती है. यदि ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल किया जाए तो लागत कम होती है और उत्पादन में वृद्धि होती है.

कीट और रोग नियंत्रण

सरसों में माहू, सफेद मक्खी और एफिड जैसे कीट बड़े नुकसानदेह होते हैं. शुरुआती अवस्था में नीम तेल का प्राकृतिक स्प्रे उपयोगी रहता है. सफेद जंग और अल्टरनेरिया ब्लाइट से बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम या मैंकोजेब का छिड़काव प्रभावी होता है. सही समय पर कीट और रोग नियंत्रण से उत्पादन बेहतर और नुकसान कम होता है.

खेती में मशीनों का उपयोग

आजकल किसान सीड-कम-फर्टिलाइज़र ड्रिल, मल्टीक्रॉप पावर थ्रेशर और मिनी हार्वेस्टर जैसी मशीनों का उपयोग कर सकते हैं. ये मशीनें मेहनत और समय की बचत करते हुए उत्पादन बढ़ाती हैं. सरकार इन मशीनों पर 40–50% तक सब्सिडी भी देती है, जिससे छोटे किसान भी इसका लाभ उठा सकते हैं.

लागत और मुनाफा

एक हेक्टेयर में सरसों की लागत लगभग 12-15 हजार रुपये आती है, जबकि उत्पादन 12-18 क्विंटल तक होता है. बाजार में इसका दाम 5,500-7,000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिलता है. इस हिसाब से किसान 40-70 हजार रुपये तक शुद्ध मुनाफा कमा सकते हैं, जो गेहूं की तुलना में काफी अधिक है.

ये भी पढ़ें: 

उत्तर प्रदेश के 2.15 करोड़ से अधिक किसानों के खाते में कल आएगी ‘सम्मान निधि’, जानें कैसे करेंगे चेक?
बिहार में ठंड ने दी दस्तक: अगले हफ्ते रहेगा शुष्क मौसम, रबी फसलों की बुवाई के लिए अच्छे हालात

POST A COMMENT