कपास की खेती के लिए गुलाबी सुंडी सबसे बड़ा दुश्मन बनकर उभर रहा है. इससे निपटने के लिए किसानों को कीटनाशकों पर काफी पैसा खर्च करना पड़ रहा है. जिससे खेती की लागत बढ़ रही है. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार की ओर से विश्वविद्यालय में इसके मैनेजमेंट के लिए एक बैठक आयोजित की गई. कुलपति बीआर कम्बोज ने कहा कि देश के उत्तरी क्षेत्र में लगातार गुलाबी सुंडी के बढ़ते प्रकोप के समाधान के लिए हमें सामूहिक रूप से एकजुट होकर काम करना होगा. ताकि किसानों को आर्थिक नुकसान से बचाया जा सके.
बैठक में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान के कृषि क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिक, अधिकारी, निजी बीज कंपनियों के प्रतिनिधि और कपास उगाने वाले 10 जिलों के किसान प्रतिनिधियों ने शिरकत की. कुलपति ने कहा कि पिछले वर्ष गुलाबी सुंडी का प्रकोप ज्यादा रहा था, जिसके नियंत्रण के लिए अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया गया, जो चिंता का विषय है. इस कीट के नियंत्रण के लिए जैविक कीटनाशक एवं अन्य कीट मैनेजमेंट के उपायों को खोजना होगा.
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कम्बोज ने कहा कि कपास की खेती से जुड़े सभी पक्षों को मिलकर गुलाबी सुंडी के मैनेजमेंट के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे, तभी किसानों को इसके प्रकोप से बचाकर संभाला जा सकता है.
भारत विश्व का सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है. यहां दुनिया का करीब 22 फीसदी कपास पैदा होता है. बताया गया है कि करीब 60 लाख से अधिक किसान सीधे कपास की खेती से जुड़े हुए हैं. जबकि करीब पांच करोड़ लोग कपास की प्रोसेसिंग और इससे जुड़े व्यापार गतिविधियों में लगे हुए हैं. कपास देश के प्रमुख भागों में खरीफ की फसल है. हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में मार्च से मई तक इसकी बुवाई होती है. फिलहाल भारत के कपास किसान इन दिनों गुलाबी सुंडी से परेशान हैं, जिसका समाधान खोजने में कृषि वैज्ञानिक जुटे हुए हैं.
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