अभी मटर का सीजन चल रहा है. फसल की उपज अच्छी मिले, इसके लिए किसानों को सजग रहना चाहिए. फसलों पर कोई रोग नहीं लगे, इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए. मटर में बुकनी रोग लगना बहुत आम बात है. अभी कड़ाके की ठंड चल रही है. अगर इसमें हल्के तापमान भी बढ़त होगी और मौमस बदलेगा तो मटर में बुकनी रोग लगने की आशंका होती है. बुकनी रोग को थ्यूजेरियम बिल्ट रोग भी कहा जाता है. यह ऐसी बीमारी है जो मटर की फसल को बर्बाद कर सकती है.
मटर में बुकनी रोग लगने पर फसल की पत्तियों पर सफेद रंग के चित्ते पड़ने लगते हैं. इस बीमारी में पत्तियों, तनों और फलियों पर सफेद चूर्ण जैसा फैल जाता है. इस बीमारी की चपेट में आकर मटर की फसल सूख जाती है. यह बीमारी तब प्रमुखता से लगती है जब बिना बीज का उपचार किए उसे बोया जाता है. इससे पौधे में थ्यूरेजियम बिल्ट का खतरा बढ़ जाता है.
थ्यूरेजियम बिल्ट या बुकनी रोग से मटर के बीज या उसके पौधों की जड़ें सड़ जाती हैं. इसके बाद पौधा सूख जाता है. इस बीमारी से बचाव के लिए सबसे आसान तरीका है एक लीटर पानी में घुलनशील गंधक दो से ढाई ग्राम की दर से घोल तैयार कर मटर की फसलों पर छिड़का जाए. किसान चाहें तो कार्बेडाजिम दवा की 50 ग्राम मात्रा सौ लीटर पानी में घोलकर तैयार की जाए और उसे फसल पर छिड़का जाए.
ये भी पढ़ें: ड्रोन से खेतों में कृषि रसायनों का छिड़काव करें किसान, कम लागत में होगा अधिक मुनाफा
कृषि एक्सपर्ट बताते हैं, बुकनी रोग से बचाव के लिए तीन किलो घुलनशील गंधक 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से 10-12 दिनों के अंतर पर छिड़काव करें. इससे मटर को बुकनी रोग से बचाया जा सकेगा. इसी तरह, मटर में झुलसा रोग भी लगता है. इस रोग की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर दो किलो जिंक मैग्नीज कार्बामेंट को 600 लीटर पानी में घोलकर फूल आने से पहले और 10 दिनों के अंतराल पर दूसरा छिड़काव करें. इससे मटर को झुलसा रोग से बचाया जा सकेगा.
मटर में फलीछेदक रोग भी लगता है जिससे फलियों में सुराख हो जाता है. फलीछेदक के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोरोप्रिड 200 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. मटर में पत्तीभेदक के लिए मेटासिस्टॉक्स 20 ईसी दवा का एक लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
मटर में बुकनी रोग के अलावा उकठा और रतुआ रोग लगता है. उकठा रोग से रोगग्रसित पौधों की जड़ें सड़ जाती हैं और पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. पौधे छोटे आकार के रह जाते हैं और बाद में सड़ जाते हैं. इस रोग से बचाने के लिए संक्रमित खेत में दो-तीन साल तक मटर न बोएं. मटर की बुआई समय से पहले न करें क्योंकि इसी से यह बीमारी लगती है.
ये भी पढ़ें: आलू की खेती कर रहे किसान दें ध्यान, फसल से ऐसे निकालें अगली बुआई के लिए बीज
मटर में रतुआ रोग भी लगता है जो फफूंदजनित होता है. इसमें पौधे छोटे कद के रह जाते हैं और बाद में सूख जाते हैं. शुरू में पौधे के सभी हरे भाग पर पीले-नारंगी रंग के गोलाकार धब्बे बन जाते हैं. इससे बचाव के लिए ग्रसित पौधों को जला दें और रोग के लक्षण दिखाई देते ही डाइथेन एम-45 की दो किलो मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. 15 दिन के अंतराल पर दो या तीन छिड़काव करें
सब्जी मटर में फूल आते समय हल्की नमी होनी चाहिए, अन्यथा जरूरी होने पर फसल में हल्की सिंचाई करें. फिर जरूरी पड़ने पर दूसरी सिंचाई फलियां बनते समय करनी चाहिए. पहले रोपी गई मटर की फसल में निराई-गुड़ाई, सिंचाई और पौधों को सहारा देने के लिए काम करें. नवंबर में रोपी गई टमाटर की उन्नत किस्मों में प्रति हेक्टेयर 88 किलोग्राम यूरिया और संकर किस्मों के लिए 130 किलो यूरिया की पहली ड्रेसिंग के 20-25 दिनों के बाद दूसरी ड्रेसिंग करें.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today