Parali Burning: पराली, पॉल्यूशन का क्या है सॉल्यूशन? किसान क्यों हैं पराली जलाने पर मजबूर, बिना जलाए क्या है समाधान?

Parali Burning: पराली, पॉल्यूशन का क्या है सॉल्यूशन? किसान क्यों हैं पराली जलाने पर मजबूर, बिना जलाए क्या है समाधान?

आईएआरआई बायोमास यूटिलाइजेशन यूनिट के समन्वयक और मुख्य वैज्ञानिक डॉ. शिवधर मिश्रा ने 'किसान तक' को बताया कि पराली का प्रबंधन दो तरह से किया जा सकता है. पहला है इन-सीटू प्रबंधन जो खेत में ही होता है. दूसरा एक्स-सीटू है, यानी फसल अवशेष को खेत से बाहर ले जाकर किया जाता है.

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Parali Burning:  पराली, पॉल्यूशन का क्या है सॉल्यूशन? किसान क्यों हैं पराली जलाने पर मजबूर, बिना जलाए क्या है समाधान?धान की पराली जलाने के पीछे क्या मजबूरी है ?

देश में बड़े पैमाने पर धान खेती होती है. अक्टूबर महीने से धान की कटाई के लिए कंबाईन मशीनें खेतों में दौड़ेंगी और धान की उपज खेतों से निकालेगी. इसी के साथ धान की पराली खेतों में छोड़ती चली जाएगी. धान-गेहूं फसल चक्र वाले पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान समय से गेहूं की बुवाई हो, उसके लिए खेत को पराली मुक्त करने के लिए सबसे आसान पराली जलाने का तरीका अपनाएंगे. अगर ऐसा हुआ तो एक बार फिर साफ़ दिखने वाला आसमान धुएं के गुबार से भर जाएगा. इससे दिल्ली और उसके आस-पास के अलावा दूसरे कई इलाक़ों में प्रदूषण का संकट गहरा जाएगा  और फिर इसको लेकर हर साल की तरह लंबी बहस भी चलेगी.

सरकार द्वारा जारी की जा रही चेतावनी और जुर्माने के प्रावधान में पराली के बहुत सॉल्यूसन आने के बाद भी इस पर अंकुश लगाने में बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिली है. पराली, पॉल्यूशन के सॉल्यूशन के लिए सरकार ने किसानों को फसल अवशेष जलाने से रोकने के उद्देश्य से साल 2018 में फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) की योजना शुरू की थी, जिसमें किसानों को कस्मट हायरिंग सेंटर्स (सीएचसी) की स्थापना के माध्यम से उसी स्थान पर फसल प्रबंधन के लिए मशीनरी प्रदान की जाती है.

पराली जलाते क्यों हैं किसान?

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के अधिकांश किसान धान के बाद गेहूं की खेती करते हैं. वे 15 अक्टूबर से जल्दी, मध्यम और देर से पकने वाली धान की किस्मों की कटाई नवंबर के पहले सप्ताह तक करते हैं. इसके बाद गेहूं हो, चना हो, मटर हो, ये सभी फसलें अक्टूबर-नवंबर में बोई जाती हैं, जिससे किसान को गेहूं सहित इन फसलों की बुआई के लिए खेत तैयार करने के लिए खेत खाली रहना चाहिए. क्योकिबेहतर पैदावार के लिए इन फसलों की बुआई नवंबर अंत तक पूरी कर लेनी चाहिए.वहीं अक्टूबर से नवंबर तक किसानों के सामने धान की कटाई और भंडारण, धान के उपज बाजार में बेचने का तनाव रहता है. वहीं दूसरी ओर रबी फसल गेहूं की बुआई के लिए खेत की तैयारी भी समय से करनी होती है. इन दो महीनों में खेती के हिसाब से किसान पर सबसे ज्यादा काम का बोझ होता है.

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किसानों की मजबूरी क्या है?

धान और गेहूं फसल चक्र वाले किसानों को भी धान के कंबाइन से कटाई के बाद गेहूं बोने के लिए जल्दी से खेत खाली करना पड़ता है. अक्टूबर की शुरुआत से 15 नवंबर या 20 नवंबर तक दूसरी फसल बोने के बीच ज्यादा समय नहीं बचता है. केवल 40 से 45 दिन तक का समय रहता है. इसलिए रबी फसल की तैयारी के लिए किसान जल्दबाजी में पराली जला देते हैं. क्योकि उन्हें समय पर रबी फसल बोने के लिए यह सबसे आसान तरीका लगता है.वहीं, पहले ज्यादातर किसान दुधारू पशु पालते थे और भूसे को चारे के रूप में इस्तेमाल करते थे,लेकिन आजकल लोग कम दुधारू पशु पाल रहे हैं.

सैटेलाइट से होती है निगरानी

धान की पराली और फसल अवशेष जलाने पर रोक लगाने के लिए आईसीएआर के महानिदेशक (डीजी) की अध्यक्षतामें हाई लेवल निगरानी समिति गठित की गई है. आईसीएआर सैटेलाइट से स्ट्रॉ बर्नर की निगरानी करता है.खेत में पराली जलाते ही राज्यों को इससे संबधित अधिकारी को सूचित कर दिया जाता है.इसके बाद उसको नियंत्रित करने के लिए किसानों को सही दिशा निर्देश दिया जाता है. इस तरह पराली समस्या से निपटने के लिए हर स्तर पर काम हो रहा है.

सरकार से लेकर कृषि वैज्ञानिक कहते हैं कि इन फसल अवशेषों को नहीं जलाएं, लेकिन जरूरी यह भी है कि हम उनको कोई बेहतर विकल्प दें, जिससे इस समस्या का निदान हो. इस पर कई तरह के काम हो रहे हैं.इसमें सरकार के प्रयास भी हैं,किसानों के भी प्रयास हैं,वैज्ञानिकों के भी प्रयास हैं.आईएआरआई बायोमास यूटिलाइजेशन यूनिट के समन्वयक और मुख्य वैज्ञानिक डॉ. शिवधर मिश्रा ने किसान तक को बताया कि पराली का प्रबंधन दो तरह से किया जा सकता है. पहला है इन-सीटू प्रबंधन जो खेत में ही होता है.दूसरा एक्स-सीटू है, यानी फसल अवशेष को खेत से बाहर ले जाकर किया जाता है.

पराली का इन सीटू प्रबंधन

डॉ. शिवधर मिश्र के अनुसार फसल अवशेष इन-सीटू प्रबंधन का अर्थ है फसल अवशेषों को खेत में छोड़ना और उसे प्राकृतिक रूप से विघटित होने देना. इन-सीटू प्रबंधन से मिट्टी के स्वास्थ्य और उर्वरता को बनाए रखने में मदद होती है इसके लिए नए कृषि यंत्रों की खोज हुई है. इनके इस्तेमाल से आप ना केवल फसल अवशेषों की समस्या से बच सकेंगे बल्कि जमीन को अच्छी खाद भी मिलेगी. सुपर एसएमएस या स्ट्रॉ चॉपर से फसल अवशेषों को बारीक टुकड़ों में काटकर जमीन पर फैला दें.इसके बाद आईएआरआई पूसा संस्थान द्वारा विकसित डी-कंपोजर से फसल अवशेष या ठूंठ को गलाकर खाद बनाया जाता है.

फसल अवशेषों को रोटाबेटर ओर मल्चर मशीन से मिट्टी में मिला देने से वह सड़कर अच्छी खाद बन जाती है.दूसरा तरीका बिना जुताई के खेत में रबी फसलों का बुवाई करना है.इसके लिए जीरो टिलेज मशीन हैप्पी सीडर, सुपर सीडर से बुवाई की जाती है.फसल के अवशेषों को मिट्टी की सतह पर छोड़ दिया जाता है.फसल अवशेष धीरे-धीरे सड़कर खाद बन जाते हैं. इससे नमी को संरक्षित करने और मिट्टी के कटाव को कम करने में मदद मिलती है.

पराली का एक्स-सीटू प्रबंधन 

डॉ. शिवधर मिश्र ने बताया कि दूसरा तरीका एक्स-सीटू है. यानी फसल अवशेष को खेत से बाहर ले जाकर कम्पोस्ट खाद बनाना. इसके लिए आईएआरआई ने कम्पोस्ट बनाने की पांच विधियां विकसित की हैं.सबसे पहले फसल अवशेषों का ढेर बनाया जाता है. इस प्रकार बने ढेर को 'विंडो' कहते हैं. इसकी ऊंचाई और चौड़ाई 02 से 2.5 मीटर तक हो सकती है और उपलब्ध स्थान के आधार पर लंबाई 10 से 100 मीटर या अधिक तक भिन्न हो सकती है. इन ढेरों में जैविक कल्चर मिलाया जाता है और उचित मात्रा में नमी रखी जाती है और समय-समय पर मशीन से घुमाया जाता है. 

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इस प्रक्रिया में सभी पदार्थ समान रूप से मिश्रित हो जाते हैं. ढेरों में वायु संचार होता है. इस प्रकार 03 से 09 सप्ताह में तीन से चार चक्र में सर्वोत्तम जैविक खाद तैयार हो जाती है.इसके अलावा पशुओं के लिए चारा बनाना बेलर से इसकी गांठ बना कर इलेक्ट्रिक पावर जेनरेटर यूनिट को सप्लाई कर आय कमा सकते हैं.

हार्वेस्टर मशीन में सुपर एस्ट्रा मशीन अनिवार्य

इस बारे में सरकार की तरफ से गाइडलाइन दी गई है. कंबाइन हार्वेस्टर मशीन में सुपर एस्ट्रा मशीन जोड़ी गई हैऔर इसको सरकार की तरफ से अनिवार्य किया गया है.यह मशीन कंबाइन हार्वेस्टर से जुड़ी होती है, जो कंबाइन से काटी गई फसल के अवशेष को छोटे-छोटे टुकड़ों में खेतों में बिखेर देती है.फसल अवशेष को आसानी से मिट्टी में मिलाया जा सकता है जिसके फसल अवशेषों को जलाना नहीं पड़ता और मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ती है. इससे फसल कटाई के दौरान अवशेष छोटा किया जा सके और गेहूं की हैप्पी सीडर और जीरो टिलेज से बुवाई करने में किसी तरह की परेशानी ना हो.

 

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