खरीफ सीजन की प्रमुख फसल धान की खेती शुरू करने का समय आ गया है. जून में इसकी नर्सरी डालने का काम अधिकांश जगहों पर शुरू हो जाता है. धान की खेती में बहुत पानी की जरूरत होती है, इसलिए इसमें पानी का सही प्रबंधन बहुत जरूरी है वरना उत्पादन प्रभावित होगा और किसान की आय को नुकसान होगा. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों ने इसके बारे में विस्तार से जानकारी दी है. धान की खेती में उचित जल प्रबंधन और सिंचाई की जानकारी का होना आवश्यक है. जल प्रबंधन से पानी की बचत करके अधिक क्षेत्र में सिंचाई कर सकते हैं, जिससे धान के उत्पादन को बढ़ाने में मदद मिलेगी.
सबसे पहले आपको नर्सरी का ध्यान रखना होगा. धान की नर्सरी में पानी की कमी होने से बीज अंकुरित होने में कठिनाई होती है. इसलिए नर्सरी में हमेशा नमी बनी रहनी चाहिए और नर्सरी में कभी भी जलजमाव की स्थिति न उत्पन्न होने दें. नर्सरी में पौधे बहुत ही नाजुक अवस्था में होते हैं. इसलिए सिंचाई की दृष्टि से फव्वारा विधि काफी लाभदायक होती है. इसके अलावा क्यारियों के बीच में बनाई गई नालियों में जल देकर भी सिंचाई कर सकते हैं.
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि सिंचाई में लगने वाले पानी के नुकसान को कम करने के लिए सिंचाई हमेशा शाम के समय करनी चाहिए. धान की रोपाई के करीब एक सप्ताह बाद जब कल्ले निकलते हैं, तब तक खेत में 2 से 3 सेंमीजल भरा रहना चाहिए. खेत में ज्यादा जल न रहने दें. छोटी अवस्था में अधिक जल भरने पर फसल की बढ़वार रुक जाती है, पौधे पीले पड़ जाते हैं और सूख जाते हैं.
धान की बालियां बनने, फूल निकलने (85-90 दिनों बाद) और दाने बनते समय (115-120 दिनों बाद) खेत में 5 से 7 सेमी जल भरा होना चाहिए. इन अवस्थाओं के अलावा बाकी समय में खेत में जल भरा रखने की आवश्यकता नहीं होती है. बीच की अवस्थाओं में जल जमा होने का फसल की बढ़वार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. बालियां निकलने के बाद अधिक जल भरने से फसल के गिरने व सड़ने की आशंका रहती है.
जल निकासी की उचित व्यवस्था नहीं होने पर धान की पैदावार पर प्रतिकूल असर होता है. ऐसे क्षेत्र जहां हमेशा जल भरा रहता है, वहां जल निकासी का उचित प्रबंध करें. इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि खेत में कभी नमी की कमी न हो. इस प्रकार सही समय पर उचित मात्रा में सिंचाई देना बहुत ही महत्वपूर्ण है.
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