आलू एक जल्दी खराब होने वाली सब्जी की फसल है. इसकी खेती रबी के मौसम या ठंड के मौसम में की जाती है. इसकी उपज क्षमता समय के अनुसार सभी फसलों से अधिक होती है. इसीलिए इसे अकाल नाशक फसल भी कहा जाता है. इसका प्रत्येक कंद पोषक तत्वों का भंडार है जो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के शरीर को पोषण देता है. अब आलू का उपयोग एक बेहतरीन पौष्टिक भोजन के रूप में होने लगा है. यह फसल बढ़ती आबादी को कुपोषण और भुखमरी से बचाने में सहायक है. वहीं आलू की जैविक खेती कर किसान 600 क्विंटल तक पैदावार ले सकते हैं. जो किसानों को मुनाफा दिलाने के लिए बहुत अधिक है.
आलू को क्षारीय मिट्टी को छोड़कर सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है. लेकिन रेतीली दोमट या कार्बनिक पदार्थ युक्त दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी होती है. इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.2 से 6.5 होना सबसे अच्छा माना जाता है.
जैविक फसल के साथ उगने वाले खरपतवारों को नष्ट करने के लिए आलू की फसल में केवल एक बार ही निराई की आवश्यकता होती है. यह काम बुवाई के 20 से 30 दिन बाद करना चाहिए. निराई करते समय ध्यान रखना चाहिए कि मिट्टी के नीचे के तने बाहर न आएं, नहीं तो धूप के कारण वे हरे हो जाते हैं.
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जैविक आलू की खेती की उपज भूमि के प्रकार, उर्वरक के उपयोग, किस्म और फसल की देखभाल जैसे कारणों पर निर्भर करती है. आमतौर पर आलू की अगेती किस्मों से 250 से 400 क्विंटल और पछेती किस्मों से 300 से 600 क्विंटल की औसत उपज प्राप्त की जा सकती है. यदि किसान अपने खेतों में रासायनिक विधि के बजाय जैविक विधि से आलू की खेती कर रहे हैं, तो पहले 1 से 2 वर्षों में उत्पादन में 5 से 15 प्रतिशत की गिरावट आने की संभावना है. ऐसे में आइए जानते हैं आलू की उन्नत किस्मों के बारे में विस्तार से.
यह एक अगेती किस्म है जो 70-90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है और इसकी औसत उपज 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसके कंद बड़े अंडाकार होते हैं और इनका गूदा सफेद पीला होता है. यह किस्म अगेती झुलसा के प्रति प्रतिरोधी है लेकिन पछेती झुलसा के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है.
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इस किस्म की मध्यम परिपक्वता अवधि 90-110 दिन है, जिसकी औसत उपज 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह किस्म हॉपर बर्निंग और उच्च तापमान को सहन कर सकती है.
कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी अलंकार, कुफरी पुखराज, कुफरी ख्याति, जिनकी परिपक्वता अवधि 80 से 100 दिन है.
कुफरी बादशाह, कुफरी ज्योति, कुफरी बहार, कुफरी लालिमा, कुफरी सतलुज, कुफरी चिप्सोना-1, कुफरी पुष्कर, जिनकी परिपक्वता अवधि 90 से 110 दिन है.
कुफरी सिंदूरी और कुफरी बादशाह, जिनकी परिपक्वता अवधि 110 से 120 दिन है.
कुफरी जवाहर (जेएच-222), 4486-ई, जेएफ-5106, कुफरी (जेआई 5857) और कुफरी अशोक (पीजे-376) आदि.
कुछ विदेशी किस्में भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल पाई गई हैं या उन्हें अनुकूलित किया गया है. ये अपटूडेट, क्रेग्स डिफाइन्स और प्रेसिडेंट आदि हैं.
माहूं- यह कीट पत्तियों व तनों का रस चूसकर क्षति पहूंचाता है. इसका प्रकोप होने पर पत्तियाँ पीली पड़कर गिर जाती हैं एवं यह मोजैक रोग के प्रसारण में भी सहायक होता है.
आलू का पतंगा- यह कीट आलू के कन्दों, खड़ी फसल और भण्डारण दोनों स्थानों पर क्षति पहूंचाता है. इसका वयस्क कीट आलू की फसल में अंडा देता है. इनसे 15 से 20 दिनों बाद सूंडियां निकलती हैं. ये सूंडियां कन्दों में घुसकर क्षति पहूंचाती हैं.
कटुआ- यह कीट खेत में खड़ी फसल तथा भण्डारित कन्दों, दोनों पर ही आक्रमण करता है. इस कीट की विकसित इल्ली लगभग 5 सें.मी. लम्बी होती है और पत्तियों, तनों आदि पौधों के वायुवीय भाग को काटकर अलग कर देती है. दिन के समय यह भूमि के भीतर छुपी रहती है और रात में फसल को नुकसान पहूंचाती है.
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