क्या आपने कभी सोचा है कि किसान के घर से चलकर आप तक पहुंचते-पहुंचते किसी कृषि उपज का दाम कितना बढ़ जाता है. आज हम आपको प्याज के बारे में बता रहे हैं. जो प्याज आपको दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में 40 रुपये किलो के भाव पर मिल रहा है, किसानों को उसका भाव सिर्फ 10 से 15 रुपये ही मिल रहा है. यानी व्यापारी कम से कम 100 से 200 परसेंट का मुनाफा कमा रहे हैं. जो किसान चार महीने की मेहनत के बाद फसल तैयार कर रहा है उसे दाम नहीं मिल रहा और व्यापारी एक दो हप्ते में मोटी कमाई कर रहे हैं. महाराष्ट्र की अलग-अलग मंडियों में किसानों को 10 से 15 रुपये किलो का ही भाव मिल रहा है.
महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि महंगाई के लिए किसान कभी जिम्मेदार नहीं होता. दाम बढ़ाते हैं व्यापारी और सरकार डंडा मारती है किसान पर. जब किसानों को अच्छा दाम मिलने की बारी आई तब सरकार ने प्याज के एक्सपोर्ट पर 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगा दी. जिससे एक्सपोर्ट पर नकारात्मक असर पड़ा और किसानों को आर्थिक नुकसान हो गया. वरना इस समय किसानों को प्याज का दाम 25 रुपये किलो मिल रहा होता.
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दिघोले लंबे समय से प्याज उत्पादक किसानों की समस्या उठा रहे हैं. उनका सुझाव है कि सरकार किसानों के लिए प्याज का न्यूनतम दाम और व्यापारियों के लिए अधिकतम मुनाफे का परसेंटेज फिक्स कर दे तो किसान और कस्टमर दोनों की समस्या का समाधान हो जाएगा. आप एमएसपी का नाम मत दीजिए, लेकिन लागत के हिसाब से प्याज का कोई कम से कम दाम तय कर दीजिए कि इससे कम पर मंडियों में नीलामी नहीं होगी. ऐसा करने से किसानों को घाटा नहीं होगा. दूसरी ओर व्यापारियों के लिए तय कर दीजिए कि वो 50 फीसदी से अधिक मुनाफा नहीं ले सकते. इससे कस्टमर को बहुत ज्यादा दाम नहीं देना पड़ेगा..
महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक है. यहां देश का 43 फीसदी प्याज पैदा होता है. इसीलिए जब 17 अगस्त को केंद्र सरकार ने प्याज के एक्सपोर्ट पर 40 फीसदी ड्यूटी लगाई तो सबसे ज्यादा विरोध यहीं देखने को मिला था. किसानों ने कई दिन तक मंडियों में प्याज की नीलामी नहीं होने दी थी. यहां पर तीन सीजन में प्याज की खेती होती है. जिनमें रबी, अर्ली खरीफ और खरीफ शामिल हैं. किसान रबी सीजन के प्याज़ स्टोर करते हैं, क्योंकि वो लंबे समय तक चलता है, जबकि खरीफ सीजन के प्याज स्टोर नहीं होता.
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