भारत में धान एक प्रमुख फसल है. भारी मात्रा में यहां से चावल विदेशों में निर्यात किया जाता है. यही वजह है कि सरकार धान की ज्यादा उपज देने वाली और रोगों से लड़ने में सक्षम नई और उन्नत किस्मों को बढ़ावा देने पर जोर दे रही है. नई किस्में विकसित करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अलग-अलग केंद्र लगातार काम कर रहे हैं. इस साल भी धान की कुछ नई किस्में विकसित की गईं हैं, जो अलग-अलग राज्यों की जलवायु के हिसाब से बनाई गई हैं. जानिए इन किस्मों के बारे में…
CR Dhan 322: सीआर धान 322 को ओडिशा के कटक स्थित आईसीएआर के नेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने तैयार किया है, जिसे इसी साल जारी किया गया है. यह किस्म सिंचित, देर से पकने वाली पारिस्थितिकी स्थितियों और देर से बुवाई के लिए उपयुक्त है. इस किस्म की धान 135-140 दिन पककर तैयार हो जाती है. इससे 54.07 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उच्चतम पैदावार हासिल की जा सकती है. यह धान किस्म कीटों और रोगों के प्रति प्रतिरोधी है. सीआर धान 322 तना छेदक, पत्ती मोड़क और अनाज के रंग बदलने के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है. यह किस्म महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में बुवाई के लिए सुझाई जाती है.
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CR Dhan 331: सीआर धान 331 को भी आईसीएआर- नेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने तैयार किया है और 2024 में ही जारी किया गया है, जो सिंचित देर अवधि की स्थितियों के लिए उपयुक्त है. सीआर धान 331, 52.15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देने में सक्षम है, जो 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है. यह नेक ब्लास्ट के प्रति सहनशील और जीवाणु ब्लाइट, पत्ती ब्लास्ट और शीथ रॉट के प्रति मध्यम सहनशील है. छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सिंचित जगहों पर इसकी खेती का सुझाव दिया जाता है.
CR Dhan 332: सीआर 332 धान किस्म ओडिशा और पश्चिम बंगाल की सिंचित पारिस्थितिकी के लिए उपयुक्त है. इसकी परिपक्वता अवधि 135-140 दिन की है. इसकी औसस अनाज पैदावर 5758 किग्रा प्रति हेक्टेयर है. इसके दाने लंबे और मोटे होते हैं. यह कीटों और रोगों के प्रति प्रतिरोधी है. सीआर 332 धान किस्म भूरे धब्बे और म्यान सड़न, पत्ती मोड़क, भंवर मैगॉट और थ्रिप्स के हमले के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है. इस किस्म को नेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट, कटक ने तैयार किया है.
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