शाही लीची का नाम सुनते ही जेहन में सबसे पहले बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का नाम उभर कर सामने आता है. क्योंकि दुनिया में सबसे अधिक लीची का प्रोडक्शन इसी जिले में होता है. यहां से कई देशों में शाही लीची की सप्लाई होती है. लेकिन इस साल मुजफ्फरपुर की शाही लीची का स्वाद पर असर पड़ सकता है. कहा जा रहा है कि बिहार में पड़ी रही भीषण गर्मी और लू की वजह से मुजफ्फरपुर जिले में लीची की फसल पर बुरा असर पड़ रहा है. इससे लीची का उत्पादन प्रभावित हो सकता है.
डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के मुताबिक, मुजफ्फरपुर के बोचहा ब्लॉक के किसान रंजीत ठाकुर और ग्रिजेश चौधरी का कहना है कि अधिक चिलचिलाती धूप और गर्म हवा चलने की वजह से पेड़ों पर लगे लीची के फल पकने से पहले ही झड़ रहे हैं. रंजीत ठाकुर ने कहा कि खास कर गर्म पछुआ हवाओं के चलते लीची में लगभग 40-50 प्रतिशत फल गिर गए हैं, जो यह हमारे लिए एक बड़ा झटका है. वहीं, ग्रिजेश चौधरी ने अफसोस जताया कि गर्मी के मौसम के कारण किसानों को इस गर्मी में बंपर फसल की उम्मीद नहीं है.
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इस साल अप्रैल में बिहार के शेखपुरा जिले में लगभग 45 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया, जो राज्य में सबसे अधिक है. इसके बाद एक दर्जन से अधिक जिलों में 43-44 डिग्री सेल्सियस और पूरे राज्य में 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान दर्ज किया गया. भारत मौसम विज्ञान विभाग ने 3 मई तक कई जिलों के लिए हीटवेव का अलर्ट जारी किया है. मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र (एनआरसीएल) के निदेशक विकास दास ने किसानों के दावों की पुष्टि की है.
उन्होंने कहा कि इस साल अप्रैल महीने से औसत से ज्यादा गर्मी और लू पड़ रही है, जो लीची के फल के लिए असहनीय है. इससे इस साल फसल के नुकसान की आशंका है. हालांकि, किसान पहले से ही लीची के फल लगने में देरी से नाखुश थे. उन्होंने कहा कि एनआरसीएल ने बढ़ते तापमान को देखते हुए लीची किसानों को नमी प्रदान करने के लिए नियमित रूप से बगीचों में सिंचाई करने की सलाह दी गई है. खास बात यह है कि अधिक गर्मी की वजह से जिले में सिंचाई के लिए पानी की किल्लत हो गई है. ऐसे में किसान टैंकर से पानी खरीद कर सिंचाई कर रहे हैं.
लीची विशेषज्ञ एसडी पांडे ने कहा कि कटाई से पहले लीची को सुरक्षित रखना भी एक कठिन काम हो सकता है, क्योंकि बागों में सैकड़ों एकड़ में हजारों पेड़ लगे हुए हैं. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर जिले के वैज्ञानिक गुलाब सिंह ने कहा कि हालांकि अप्रैल में इस क्षेत्र में गर्म जलवायु की स्थिति आम है. लेकिन इस बार यह असामान्य रूप से गंभीर थी. उन्होंने कहा कि पिछले साल अप्रैल महीने में पश्चिमी हवाओं के बावजूद वातावरण में नमी थी, क्योंकि उसके बाद पूर्वी हवाएं चलीं. इससे लीची के फलों पर उतना असर नहीं पड़ा.
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सिंह ने कहा कि 10-30 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से तेज गर्म पश्चिमी हवाएं और दिन का तापमान 36-41.5 के बीच रहने के कारण लीची के फलों में भारी गिरावट आई है. भागलपुर जिले के सबौर स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय के बागवानी और फल वैज्ञानिक मोहम्मद फेज़ा अहमद ने कहा कि पिछले 10-12 वर्षों में, आम और लीची जैसे फल जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से प्रभावित हुए हैं. बागवानी वैज्ञानिकों और लीची किसानों के अनुसार, अप्रैल और मई में तापमान में अप्रत्याशित बदलाव के कारण लीची का आकार और मिठास खराब हो गई है.
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