र‍िकॉर्ड पैदावार, फैटी एसिड से मुक्त और भरपूर तेल...कुछ ऐसी है सरसों की यह क‍िस्म

र‍िकॉर्ड पैदावार, फैटी एसिड से मुक्त और भरपूर तेल...कुछ ऐसी है सरसों की यह क‍िस्म

पूसा डबल जीरो मस्टर्ड-31: खाने के तेल की बेहतरीन किस्म है पीले दाने वाली यह सरसों. इस वेराइटी में नहीं है फैटी एसिड. राष्ट्रीय औसत से लगभग डबल है पैदावार. जान‍िए इसके बारे में सबकुछ.

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र‍िकॉर्ड पैदावार, फैटी एसिड से मुक्त और भरपूर तेल...कुछ ऐसी है सरसों की यह क‍िस्मMustard farming

खाद्य तेलों पर बढ़ती व‍िदेशी न‍िर्भरता के बीच जेनेट‍िकली मोड‍िफाइड (जीएम) सरसों की खेती करने पर बहस छ‍िड़ी हुई है. दावा क‍िया जा रहा है क‍ि जीएम सरसों की खेती करने के बाद हम खाने के तेल के मामले में आत्मन‍िर्भर हो सकते हैं. क्योंक‍ि इसमें प्रोडक्शन काफी बढ़ जाएगा. लेक‍िन, भारतीय वैज्ञान‍िकों ने कुछ ऐसी क‍िस्में तैयार कर रखी हैं जो गैर जीएम होने के बावजूद ज्यादा पैदावार देती हैं. ऐसी ही एक क‍िस्म है पूसा डबल जीरो मस्टर्ड-31, ज‍िसकी खेती करके क‍िसान प्रत‍ि हेक्टेयर 27.7 क्व‍िंटल प्रत‍ि हेक्टेयर तक की पैदावार ले सकते हैं. साल 2020-21 में सरसों पैदावार का राष्ट्रीय औसत 1511 क‍िलो था. 

सेंट्रल वेराइटी र‍िलीज कमेटी (CVRC)  द्वारा र‍िलीज सरसों की यह क‍िस्म न स‍िर्फ अपने ज्यादा उत्पादन बल्क‍ि दूसरी कई खास‍ियतों से भी भरपूर है. जैसे तेल की मात्रा. आमतौर पर सरसों में 35 फीसदी तेल न‍िकलता है, लेक‍िन पूसा डबल जीरो-31 वेराइटी में तेल की मात्रा 41 परसेंट है. ऐसे में उत्पादन और तेल की मात्रा के कारण यह क‍िसानों के ल‍िए काफी फायदेमंद है. यह क‍िस्म पंजाब, हर‍ियाणा, जम्मू और उत्तरी राजस्थान के ल‍िए मुफीद है. पीले रंग की यह सरसों 142 द‍िन में तैयार होती है. जो क‍िसान इस रबी सीजन में सरसों की खेती करना चाहते हैं वो इस वेराइटी का बीज बो सकते हैं. 

खाने के ल‍िए कैसी है यह क‍िस्म? 

यह तो रही उत्पादन और तेल की मात्रा की बात. इसके अलावा खाने वाले वालों के ल‍िए भी यह क‍िस्म कुछ खूबी ल‍िए हुए है. इस वेराइटी में इरुसिक एसिड यानी फैटी एस‍िड 2 फीसदी से भी कम है. सरसों के तेल में सामान्य तौर पर 42 परसेंट इरुसिक एसिड होता है. यह सेहत के लिए खतरनाक होता है. क्योंक‍ि इससे हार्ट संबंधी बीमारियां पैदा होती हैं. यह सरसों की 'डबल जीरो' (उन्नत किस्म) है. ज‍िस तेल में फैटी एस‍िड 2 फीसदी से कम हो उसे जीरो एसिड माना जाता है.

पोल्ट्री इंडस्ट्री के ल‍िए कर सकते हैं इस्तेमाल 

यही नहीं इसकी खली का इस्तेमाल पोल्ट्री इंडस्ट्री में भी क‍िया जा सकता है. इस क‍िस्म के सरसों की खली में ग्लूकोसिनोलेट की मात्रा 30 माइक्रोमोल से कम होता है. पूसा के न‍िदेशक डॉ. अशोक कुमार स‍िंह के मुताब‍िक ग्लूकोसिनोलेट एक सल्फर कंपाउंड होता है. इसीलिए इसका इस्तेमाल उन पशुओं के भोजन के रूप में नहीं होता जो जुगाली नहीं करते हैं. क्योंकि इससे उनके अंदर घेंघा रोग हो जाता है. 

गैर जीएम सरसों भी कम नहीं 

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के तहत काम करने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी)  ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों के व्यावसायिक रिलीज से पहले इसके बीज उत्पादन को मंजूरी दी है. इसकी टेस्ट‍िंंग यानी ईल्ड इवैलुएशन ट्रायल शुरू कर द‍िया गया है. जीएम फसलों से उत्पादन में वृद्ध‍ि का दावा क‍िया गया है. हालांक‍ि, गैर जीएम सरसों भी कम नहीं हैं. कई क‍िस्में देश के औसत सरसों उपज से ज्यादा पैदावार देती हैं. जैसे पूसा डबल जीरो मस्टर्ड-31, आरएच-1424 और आरएच-1706. इनकी पैदावार 26 से 27.7 क्व‍िंटल प्रत‍ि हेक्टेयर तक है.  

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