
रबीनामा :खाद्य तेलों की आयात निर्भरता को कम करने के लिए तिलहन की खेती को सरकार प्रोत्साहित कर रही है .रबी सीजन की प्रमुख तिलहनी फसल सरसों और राई या राई, पीली व भूरी सरसों, तोरिया, सरसों, अफ्रीकन सरसों व तारामीरा सरसों की खेती बड़े पैमाने पर होती है. हमारे देश की तिलहन अर्थव्यवस्था में मुख्य भूमिका निभाती है. राजस्थान,उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश बिहार व गुजरात में होती है. पिछले साल सरसों का बोआई रकबा 1.10 करोड़ हेक्टेयर पहुंच गया था. आशा है इस बार भी चालू रबी सीजन में बड़े पैमाने पर सरसों, तोरिया, राई की खेती किसानों ने की है .लेकिन इस फसल की उपज को घटाने में इसमें लगने वाले हानिकारक कीट हैं.आज इस रबीनामा में जानेगें कि सरसों तोरिया राई में लगने वाले हानिकारक कीटों की रोकथाम कैसे की जाए.
आईसीएआर का एनआईपीएएम अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों के अुनसार माहू सरसों का सबसे हानिकारक कीट है माहू या चेपा,और एफिड नाम से जाना जाता है.यह कीट आकार में छोटी और मुलायम होती है. यह सफेद और हरे रंग की होती है. इस कीट की खासियत यह है कि कीट के प्रौढ़ और शिशु पौधों के फूलों, पत्तियों, डंठलों और फलियों पर चिपक कर रस चूसकर पौधों को कमजोर कर देता है. इसका प्रकोप दिसम्बर महीने के अंतिम सप्ताह में शुरू होता है. जब फसल में फूल बनना शुरू होता है और यह मार्च तक बना रहता है. इस कीट के प्रौढ़ और शिशु समूह में रहकर पौध के विभिन्न भाग के रस चूसती हैं,जिससे पौधे पीले बदरंग और कमजोर हो जाते हैं.फलियों की संख्या कम होती है और दाने छोटे रहते हैं. यह कीट मधु जैसा पदार्थ भी स्रावित करती है.जिससे बाद में पौधे पर काला फफूंद लग जाता है. इसके कारण पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है.बादलों वाले मौसम और कम तापमान में यह कीट तेजी से फैलता है,इस कीट से फसल को 25 से 40 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है.
कृषि वैज्ञानिक केअनुसार अगर सरसों की फसल की बोआई 20 अक्टूबर से पहले कर ली जाती है, तो सरसों में माहू कीट का प्रकोप कम होता है. अगर सरसों की फसल पर माहू कीट का प्रकोप अधिक होता है, तो इसके नियंत्रण के लिए स्टिकीट्रैप एक पतली चिपचिपी सीट होती है जो बिना रसायनों के फसलों की सुरक्षा करती है. इस सीट पर चिपचिपा पदार्थ लगाकर और ऊचाई से 1 से 2 फीट ऊपर रखकर माहू कीट को पीले रंग की ओर आकर्षित किया जाता है, जिससे कीट चिपक कर मर जाता है. इसलिए, इसके नियंत्रण के लिए 10 से 15 स्टिकीट्रैप प्रति एकड़ के हिसाब से खेतों में लगाए जाते हैं. पौध सुरक्षा विशेषज्ञ के अनुसार अगर रासायनिक दवाओं से नियंत्रण करना है जब कीट का प्रकोप हो गया है, तो रासायनिक कीटनाशक थायामिथोक्साम 25 डब्ल्यूजी का एक ग्राम प्रति 10 लीटर पानी की दर से आधारित छिड़काव करें या डाइमिथोएट या 1 मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी की दर मिलाकर सरसों को छिड़काव करें.इस तरह,माहू कीट पर नियंत्रण किया जा सकता है.
सरसों का हानिकारक कीट, पेन्टेड बग (चितकबरा कीट), सरसों की फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है। इसकी आमतौर पर पत्तियों और तनों पर एकत्र होता है.इस कीट के शिशु और प्रौध दोनों ही पत्तियों, फूलों, तनों, और फलियों का रस चूसते हैं, और अधिक प्रकोप होने पर पौधों की बढ़वारृ रूक जाती है. इस कीट का रंगरंग चमकीला काला तथा शरीर में नारंगी या भूरे रंग के धब्बे होते हैं. यह कीट फसल को दोबार हानि पहुंचाता है,पहला अक्टूबर-नवम्बर जब फसल बढ़वार की अवस्था पर होती है और दूसरा मार्च-अप्रैल में जब फसल पकने की अवस्था होती है.अधिकआक्रमण से पौधे मर भी जाते हैं. फसल पकने के समय इस कीट के प्रकोप होने से तेल की मात्रा और दानों के वजन में कमी हो जाती है.
चितकबरा कीट के रोकथाम के लिए, जिन्हें झटका देकर नीचे गिराकर केरोसिन युक्त पानी में डालकर मारा जा सकता है. इस कीट के नियंत्रण के लिए फसल पर मैलाथियान 50 ईसी @1000 मिली या डाइमेथोएट 30 ईसी @625 मिली को 600-700 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
सरसों की फसल में हानि पहुंचाने वाली आरा मक्खी को इंग्लिश में सॉ फ्लाई कहा जाता है। इस कीट के लार्वा काले और भूरे रंग के होते हैं, और वे पत्तियों के किनारों या पत्तियों के बीच में रहते हैं। ये सरसों की पत्तियों को टेढ़े-मेढ़े तरीके से खाती हैं और उसमें छेद कर देती हैं. फील्ड में आरा मक्खी के प्रकोप से, गंभीर प्रकोप की स्थिति में, पूरा पौधा की पत्तियों को खाकर खत्म कर देती है और पौधा पत्ता विहीन हो जाता है.
आरा मक्खी के नियंत्रण के लिए अंकुर अवस्था में सिंचाई करना बहुत फायदेमंद होता है, क्योंकि अधिकांश लार्वा डूबने के कारण मर जाते हैं।.सुबह और शाम को आरी मक्खी के ग्रबों को एकत्र करना और नष्ट करना, करेले के बीज के तेल के इमल्शन का एंटीफीडेंट के रूप में उपयोग करना चाहिए , इस कीट के प्रकोप होने पर फसल पर मैलाथियान 50 ईसी @ 400 मिली/एकड़ या क्विनोलफोस 25 ईसी @ 250 मिली दवा को 200 से 250 लीटर पानी में प्रति एकड़ हिसाब छिड़काव से करना चाहिए। इस तरह से, आरा मक्खी के प्रकोप को समाप्त कर सकते हैं.
Copyright©2023 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today