सरसों की खेती कैसे करें? उन्नत किस्मों और तकनीकों से पाएं 60 फीसद ज्यादा पैदावार

सरसों की खेती कैसे करें? उन्नत किस्मों और तकनीकों से पाएं 60 फीसद ज्यादा पैदावार

सरसों एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है, जो मुख्य रूप से रबी के मौसम में उगाई जाती है. यह सिंचित और असिंचित दोनों प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है. भारत में राजस्थान राज्य सरसों उत्पादन में अग्रणी है, जहाँ वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाकर उपज को काफी बढ़ाया जा सकता है. सरसों की उन्नत किस्मों और उचित खेती विधियों के जरिए किसान बेहतर उत्पादन और मुनाफा कमा सकते हैं.

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सरसों की खेती कैसे करें? उन्नत किस्मों और तकनीकों से पाएं 60 फीसद ज्यादा पैदावारसरसों की उन्नत किस्म

सरसों एक प्रमुख तिलहन फसल है जिसे रबी के मौसम में उगाया जाता है. यह फसल सिंचित (सिंचाई युक्त) और असिंचित (बिना सिंचाई) दोनों तरह के क्षेत्रों में उगाई जाती है. खासकर राजस्थान राज्य सरसों उत्पादन में देशभर में अग्रणी स्थान रखता है. राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में ही कुल उत्पादन का लगभग 29% हिस्सा पैदा होता है. हालांकि, इस क्षेत्र में सरसों की औसत उपज मात्र 700 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जो अपेक्षाकृत कम मानी जाती है. अगर किसान उन्नत तकनीकों का उपयोग करें तो यह उपज 30 से 60 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती है.

सरसों की उन्नत किस्में, उपज और विशेषताएं

किस्म पकने की अवधि (दिन) औसत उपज (कु./हे.) विशेषताएं
पूसा जय किसान 125-130 18-20 सफेद रोली और तुलसिता रोग रोधी, सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों के लिए
आशीर्वाद 125-130 16-18 देरी से बुवाई के लिए उपयुक्त, सिंचित क्षेत्रों में फायदेमंद
आर एच-30 130-135 18-20 दाने मोटे, मोयला रोग कम, दोनों प्रकार के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त
पूसा बोल्ड 125-130 18-20 मोटे दाने, रोग कम लगते हैं
लक्ष्मी (RH 8812) 135-140 20-22 फलियां पकने पर नहीं चटकती, दाना मोटा व काला 
क्रांति (PR-15) 125-130 16-18 रोग रोधी, दाना कत्थई रंग का, असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त

भूमि और उसकी तैयारी

सरसों की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है. मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए ताकि सरसों का छोटा बीज अच्छे से जम सके.

  • पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें.
  • इसके बाद दो बार हैरो और एक बार कल्टीवेटर से जुताई करें.
  • अंत में पाटा लगाकर मिट्टी को समतल कर लें.

बीज मात्रा और बुआई का समय

  • बीज मात्रा: 4 से 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
  • बारानी क्षेत्र: 25 सितंबर से 15 अक्टूबर के बीच बुवाई करें
  • सिंचित क्षेत्र: 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच बुवाई करें

बुवाई की विधि:

  • पंक्ति से पंक्ति की दूरी: 45–50 से.मी.
  • पौधे से पौधे की दूरी: 10 से.मी.
  • सिंचित क्षेत्रों में बुवाई से पहले पलेवा (पहली हल्की सिंचाई) करें.

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

बुवाई से 3-4 हफ्ते पहले 8-10 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद मिट्टी में मिला दें.

  • नाइट्रोजन: 60 किलो
  • फास्फोरस: 40 किलो
  • बुवाई के समय:
  •   87 किग्रा DAP
  •   32 किग्रा यूरिया
  •   250 किग्रा SSP

पहली सिंचाई पर:

  •  65 किग्रा यूरिया
  • 40 दिन बाद:
  •  40 किग्रा गंधक चूर्ण प्रति हेक्टेयर

असिंचित क्षेत्रों के लिए:

  • नाइट्रोजन: 40 किलो
  • फास्फोरस: 40 किलो

बुवाई के समय

  •  87 किग्रा DAP
  •  54 किग्रा यूरिया

सिंचाई प्रबंधन

सरसों की फसल के लिए 4-5 बार सिंचाई करना आवश्यक है.

जरूरी सिंचाई समय:

  • बुवाई के समय (पलेवा)
  • 25-30 दिन बाद जब शाखाएँ निकलें
  • 45-50 दिन बाद फूल आने पर
  • 70-80 दिन बाद फली बनने पर
  • यदि पानी उपलब्ध हो तो 100-110 दिन बाद दाना पकते समय भी सिंचाई करें

सरसों की खेती अगर वैज्ञानिक विधियों से की जाए तो उत्पादन और मुनाफा दोनों बढ़ाए जा सकते हैं. राजस्थान जैसे क्षेत्रों में, जहाँ इसकी उपज अभी भी कम है, वहां उन्नत किस्मों और सही तकनीकों का उपयोग कर काफी लाभ कमाया जा सकता है. अच्छी भूमि तैयारी, समय पर बुवाई, संतुलित उर्वरक प्रबंधन और नियमित सिंचाई से किसान सरसों की अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं.

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