
केंद्र सरकार द्वारा बासमती चावल का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस (MEP) 1200 अमेरिकी डॉलर प्रति टन करने के फैसले के खिलाफ राइस इंडस्ट्री में गुस्सा है. पंजाब राइस मिलर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ने इसे सरकार मनमाना फैसला करार दिया है.लाल किला, दावत, इंडिया गेट, महारानी, ज़ीबा और क्राउन जैसे बासमती ब्रांड इस एसोसिएशन के सदस्य हैं. इसके डायरेक्टर अशोक सेठी ने 'किसान तक' से कहा कि इस फैसले से भारतीय बासमती बाजार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर झटका लगेगा. क्योंकि हमारा प्रतिद्वंदी देश पाकिस्तान इस फैसले का पूरा फायदा उठाने की कोशिश करेगा. बासमती का उत्पादन भारत और पाकिस्तान में ही होता है. सरकार को अपने इस फैसले को रिव्यू करना चाहिए.
भारत 140 से अधिक देशों में बासमती चावल का एक्सपोर्ट करता है. अब केंद्र के नए फैसले ने निर्यातकों की चिंता बढ़ा दी है. क्योंकि एपीडा ने 1200 अमेरिकी डॉलर से कम मूल्य के बासमती चावल के सौदों को रजिस्टर्ड करने से इनकार कर दिया है. सवाल यह है कि केंद्र सरकार के फैसले से निर्यातकों को दिक्कत क्या है? सेठी ने इस सवाल का जवाब दिया. उनका कहना है कि ज्यादा दाम होने से हमारे अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को खोने का डर पैदा हो गया है. बड़ी संख्या में शिपमेंट आगे की डिलीवरी के लिए विभिन्न बंदरगाहों पर भेजे जाने के लिए तैयार हैं. लेकिन अब दाम बढ़ जाएगा, जिससे पुराने सौदे रद्द हो सकते हैं और दुश्मन मुल्क को इसका फायदा पहुंचेगा. इस वक्त 900 डॉलर से अधिक मिनिमन एक्सपोर्ट प्राइस नहीं होना चाहिए.
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सेठी ने कहा कि भारत में 2 फीसदी लोग ही एवन क्लास का बासमती खाते हैं. बाकी बासमती चावल एक्सपोर्ट हो जाता है. ज्यादातर लोग यहां टूटा बासमती खाते हैं. इस तरह जो बिजनेस विशुद्ध रूप से एक्सपोर्ट का है उस पर इतना बड़ा फैसला क्यों लिया गया. इस फैसले से हमारा बासमती एक्सपोर्ट कम हो जाएगा, जिससे किसानों को नुकसान होगा. इतना बड़ा फैसला लेने से पहले सरकार ने सबसे बड़े बासमती उत्पादकों और निर्यातकों पंजाब-हरियाणा से भी कोई राय नहीं ली. यह ताज्जुब की बात है. इसलिए इसे हम मनमाना फैसला करार देते हैं. बासमती का एक्सपोर्ट प्राइवेट डीलिंग के आधार पर होता है न कि गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट. इसलिए निर्यातकों से बातचीत करके ही इस बारे में फैसला लिया जाना चाहिए था.
भारत ने साल 2022-23 में रिकॉर्ड 38,523.54 करोड़ रुपये का बासमती चावल एक्सपोर्ट किया, जो 2021-22 के मुकाबले 45.83 फीसदी अधिक है. हमने एक साल में 45,58,909 मीट्रिक टन बासमती का एक्सपोर्ट करके नया कीर्तिमान बना दिया. अब जो 1200 डॉलर से कम दाम पर इसे एक्सपोर्ट न कर पाने का फैसला लिया गया है वो हमारी बासमती इंडस्ट्री को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ा झटका देगा. क्योंकि आयातक सस्ता होने की वजह से पाकिस्तान का बासमती खरीदना शुरू कर सकते हैं.
बासमती चावल के निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं है. लेकिन इस फैसले से एक्सपोर्ट कम हो जाएगा. हमें अपने देश के लिए मूल्यवान विदेशी मुद्रा अर्जित करने और पंजाब और अन्य जगहों पर हमारे मेहनती बासमती किसानों को अधिक राजस्व प्रदान करने में मदद करने के लिए निर्यात करने का अधिकार है. लेकिन सरकार अब हमारे प्राइवेट काम में बाधा बन रही है.
वर्तमान में बासमती-1509 धान का औसत दाम 3200 रुपये प्रति क्विंटल है. क्रीमी सेला चावल के लिए इसकी लागत का मूल्यांकन किया जाए जो प्रोसेसिंग और अन्य खर्चों के साथ उबले हुए चावल का दाम 6300 रुपये क्विंटल होगा. यह लगभग 900 अमेरिकी डॉलर प्रति टन पर निर्यात के लिए उपलब्ध होगा. लेकिन इसे कभी भी 1200 अमेरिकी डॉलर प्रति टन पर नहीं बेचा जा सकता. इस उबले हुए चावल को मध्य पूर्व के देशों या अरब देशों में बड़े पैमाने पर निर्यात किया जाता है. जहां का बाजार अब प्रभावित होगा.
भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल निर्यातक है. अब बढ़े हुए एमईपी की वजह से भारत अपने बड़े ग्राहक आधार को खो देगा और अभूतपूर्व इसके व्यापार से जुड़े लोगों को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ेगा. भारतीय निर्यातकों के पास पहले से ही 850 से 900 अमेरिकी डॉलर प्रति टन की औसत कीमत पर चावल के बड़े ऑर्डर हैं, जबकि कुछ शिपमेंट पाइपलाइन में हैं और कुछ निर्यात अनुबंध पहले से ही एपीडा और बैंकों के साथ रजिस्टर्ड हैं. अब केंद्र के नए फैसले से निर्यातकों को बड़ी दुविधा का सामना करना पड़ रहा है कि वे अपनी निर्यात के कमिटमेंट को कैसे पूरा करें.
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