कभी ताइवान ने की थी मदद...आज भारतीय चावल के ब‍िना अधूरी है 150 देशों की थाली

कभी ताइवान ने की थी मदद...आज भारतीय चावल के ब‍िना अधूरी है 150 देशों की थाली

Rice Export: व‍िश्व के कुल चावल एक्सपोर्ट में 40 फीसदी ह‍िस्सेदारी के साथ हम दुन‍िया के सबसे बड़े एक्सपोर्टर बन गए हैं. लेक‍िन, इस सफलता का सफर आसान नहीं रहा है. हालांक‍ि, चीन से ज्यादा जमीन पर धान की खेती करने के बावजूद हम चावल उत्पादन में उससे पीछे हैं. इस पर अभी काफी काम करने की जरूरत है. 

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कभी ताइवान ने की थी मदद...आज भारतीय चावल के ब‍िना अधूरी है 150 देशों की थाली चावल उत्पादन और एक्सपोर्ट में कहां है भारत?

दुन‍िया में चावल की लगभग एक लाख से अधिक धान की क‍िस्में हैं, जिनमें से अकेले 60 हजार तो भारत की हैं. एक सच यह है क‍ि भारत में ही चावल की उत्पत्त‍ि मानी जाती है. लेक‍िन, दूसरा सच है क‍ि कभी हमको चावल का उत्पादन बढ़ाने के ल‍िए ताइवान की मदद लेनी पड़ी थी. हालांक‍ि, अब हम दुन‍िया में इसके दूसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं. भारतीय चावल के बिना 150 देशों की खाने की थाली अधूरी रहती है. फिलीपींस स्थित इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (IRRI) इरी में जर्म प्लाज्म एक्सचेंज के ग्लोबल कोर्डिनेटर रह चुके कृष‍ि वैज्ञान‍िक प्रो. रामचेत चौधरी ने हमें भारत में चावल उत्पादन की सफलता की यह कहानी बताई. आजादी के वक्त हम सालाना स‍िर्फ 20.58 म‍िल‍ियन टन चावल उत्पादन कर रहे थे, जो अब बढ़कर 135 म‍िल‍ियन टन के पार जा चुका है.  

हमने एक ही साल में करीब 90 हजार करोड़ रुपये का चावल एक्सपोर्ट करके नया कीर्त‍िमान स्थाप‍ित कर द‍िया है. भारत दुन‍िया का सबसे बड़ा चावल एक्सपोर्टर है. व‍िश्व के कुल चावल एक्सपोर्ट में हमारी ह‍िस्सेदारी बढ़कर 40 फीसदी से ज्यादा हो गई है. दुन‍िया के 26 फीसदी चावल उत्पादन के साथ व‍िश्व के कुल उत्पादन में भारत दूसरे नंबर पर है, जबक‍ि चीन 29 परसेंट के साथ पहले स्थान पर. इसके बावजूद वो हमसे बड़े पैमाने पर चावल इंपोर्ट कर रहा है. बहरहाल, आज भारत ने चावल के मामले में जो र‍िकॉर्ड बनाया है उसमें न‍िश्च‍ित तौर पर क‍िसानों की बड़ी मेहनत है. लेक‍िन, उन वैज्ञान‍िकों का योगदान भी कम नहीं है ज‍िनकी वजह से हमारे देश को ज्यादा पैदावार देने वाली क‍िस्में म‍िलीं.

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उत्पादकता में पीछे हैं भारत

चावल उत्पादन और एक्सपोर्ट में बड़ी सफलता के बावजूद अभी एक मामले में भारत बहुत पीछे है. भारत में धान की खेती का दायरा चीन से बड़ा है, फ‍िर भी उत्पादन के मामले में हम व‍िश्व में दूसरे नंबर पर हैं. इसकी वजह उत्पादकता में कमी है. युनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर की र‍िपोर्ट इसकी तस्दीक करती है. 

केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय की एक र‍िपोर्ट के मुताब‍िक आजादी के बाद 1950-51 में हम प्रत‍ि हेक्टेयर स‍िर्फ 668 क‍िलो चावल पैदा करते थे, जो 1975-76 में 1235 क‍िलो तक पहुंच गया. क्यों‍क‍ि तब तक बौनी क‍िस्मों का धान आ चुका था और खाद का इस्तेमाल बढ़ने लगा था. साल 2000-01 में उपज 1901 क‍िलो प्रत‍ि हेक्टेयर थी और अब इसका आंकड़ा 2021-22 में 2809 क‍िलोग्राम तक पहुंचा है. हालांक‍ि, अब भी यह व‍िश्व औसत से काफी कम है जो हमारे ल‍िए च‍िंता की बात है. 

भारत से बासमती चावल का एक्सपोर्ट.

इस बारे में डबलिंग इनकम कमेटी की र‍िपोर्ट कृष‍ि मंत्रालय से थोड़ी अलग है. लेक‍िन, इस र‍िपोर्ट ने उत्पादकता में भारत के प‍िछड़ेपन को रेखांक‍ित करने की कोश‍िश की है. इसके मुताब‍िक विश्व में चावल की औसत पैदावार 4546 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. जबकि भारत व‍िश्व औसत से भी कम स‍िर्फ 3576 किलोग्राम पैदा करता है. चीन दुनिया में सबसे ज्यादा प्रति हेक्टेयर 6832 किलो उत्पादन लेता है. 

ताइवान का योगदान

भारत से करीब डेढ़ सौ देश चावल का इंपोर्ट कर रहे हैं. ज‍िनमें से एक देश ताइवान भी है. लेक‍िन खास बात यह है क‍ि इस देश ने अगर भारत की मदद न की होती तो हमारा देश आज चावल उत्पादन और एक्सपोर्ट में र‍िकॉर्ड नहीं बना रहा होता. दरअसल, 60 के दशक में भारत अन्न की कमी से जूझ रहा था. उस वक्त यहां लंबे तने वाली धान की पारंपरिक किस्में ही हुआ करती थीं. यहां अधिकतम 8 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार थी. ऐसे समय में हमें बौनी किस्म की ऐसी प्रजाति की जरूरत थी जो ज्यादा पैदावार दे. 

भार‍त से गैर बासमती चावल का एक्सपोर्ट.

कृष‍ि वैज्ञान‍िकों के अनुसार तब तक रासायन‍िक उर्वरक के तौर पर यूर‍िया आ चुका था. यूर‍िया और अध‍िक पानी के इस्तेमाल से उत्पादन बढ़ जाता था. लेक‍िन, खाद-पानी का फायदा उठाने के लिए बौनी और कड़े तने वाली किस्मों की जरूरत थी, जो हमारे पास नहीं थी. भारतीय क‍िस्मों में खाद और पानी का अच्छा इस्तेमाल करने पर धान जल्दी ग‍िर जाता था. तब बौने क‍िस्म की जरूरत लगने लगी, ताक‍ि उत्पादन बढ़े और खाद्यान्न संकट का समाधान हो. 

ताइवान भारत की इस जरूरत को पूरा करने के ल‍िए आगे आया. उसने अपने यहां उगने वाली बौनी धान की प्रजाति ताइचुंग नेटिव-1 (TN1-Taichung Native-1) दी. इसने भारतीय कृषि क्षेत्र की काया पलट दी. ताइचुंग नेटिव-1 ने हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. ताइवान में विकसित टीएन-1 को दुनिया में चावल की पहली अर्ध-बौनी किस्म माना जाता है.

इरी ने भी दी थी मदद 

इसके बाद देश में धान की दूसरी बौनी किस्म 'आईआर-8' आई. ज‍िसे 1968 में भारत को इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने द‍िया. इसके जर‍िए तेजी से उत्पादन उत्पादन बढ़ने की शुरुआत हो गई. उसके बाद 1969 में हमारे वैज्ञानिकों ने इन प्रजातियों से क्रॉस ब्र‍िड‍िंग की शुरुआत की. ओडिशा में चावल की एक किस्म थी टी-141, ज‍िसका ताइचुंग नेटिव-1 से क्रॉस ब्रिड‍िंग करके जया नाम का धान तैयार किया गया.

इसका तना 150 सेंटीमीटर से घटकर 90 का हो गया. इस कोश‍िश से उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई. इसके बाद भारत ने चावल के क्षेत्र में मुड़कर नहीं देखा. लेक‍िन, उत्पादकता का सवाल आज भी है और यह जब तक हल नहीं होगा, सरकार और कृष‍ि वैज्ञान‍िकों के सामने उठता रहेगा. 

भारत में चावल का उत्पादन.

जीआई टैग वाली चावल की क‍िस्में

आज भारत के बासमती चावल की क‍िस्म की एक अलग वैश्व‍िक मार्केट व‍िकस‍ित हो चुकी है. बासमती चावल के अतिरिक्त अन्य चावल की किस्में गैर बासमती चावल कहलाती हैं. हालांक‍ि, खुशबू और उससे अच्छी गुणवत्ता वाली क‍िस्में भी भारत में मौजूद हैं. देश के सात राज्यों को बासमती चावल का जीआई टैग म‍िला हुआ है. इसके अलावा भी कम से कम 15 और चावल की खास क‍िस्में हैं ज‍िन्हें जीआई टैग हास‍िल है. हालांक‍ि, मार्केट‍िंग की कमी और लंबा दाना न होने की वजह से उनकी मार्केट बहुत अध‍िक नहीं बन पाई है.  

भारत के चावल उत्पादक राज्य

चावल भारत सहित कई एशियाई देशों की मुख्य खाद्य फसल है. यह मुख्यतौर पर खरीफ फसल है. लेकिन कुछ राज्यों में रबी सीजन में भी इसकी खेती होती है. हालांकि रबी सीजन में इसका उत्पादन बहुत कम है. पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, तेलंगाना, ओड‍िशा, तम‍िलनाडु, आंध्र प्रदेश, असम, ब‍िहार, छत्तीसगढ़, हर‍ियाणा, कर्नाटक और झारखंड आद‍ि भारत के सबसे बड़े चावल उत्पादक राज्य हैं. तेलंगाना धान उत्पादन में काफी तेजी से आगे बढ़ा है.

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