यह मक्का की बुवाई का वक्त है. इसकी फायदे वाली खेती के लिए उसका तौर-तरीका भी वैज्ञानिक होना चाहिए. इसकी बुवाई जोर-शोर से चल रही है. अगर आपने अब तक बुवाई नहीं की है तो इसे समझ लीजिए कि मक्का की खेती के करने के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखा चाहिए. जानिए कैसी होनी चाहिए मिट्टी और बुवाई से पहले क्या करना चाहिए. बुवाई से पहले यह जानना बहुत जरूरी है कि सामान्य मक्का, क्वालिटी प्रोटीन मक्का, बेबीकॉर्न, स्वीटकॉर्न, पॉपकॉर्न और चारे के लिए इसकी बीज दर अलग-अलग है. मक्का एक बहुपयोगी फ़सल है. यह इंसानों और पशुओं के आहार का प्रमुख स्रोत है. मक्का औद्योगिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण है. एक प्रमुख खाद्य फसल है, जो मोटे अनाजो की श्रेणी में आती है. देश के पहाड़ी और मैदानी दोनों क्षेत्रों में इसे उगाया जाता है.
यह मुख्य रूप से खरीफ सीजन की फसल है, लेकिन इसे रबी में भी उगाया जाता है. मक्का की खेती भारत में मुख्य रूप आंध्र प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र,कर्नाटक, राजस्थान, एमपी, छ्त्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है. मक्का की मांग साल भर बाज़ार में बनी रहती है. अब इससे इथेनॉल भी बनने लगा है. इस समय इसका भाव अच्छा है इसलिए किसान इसकी खेती से अच्छी आय कमा सकते हैं.
पूसा के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मक्के की खेती उचित जल निकासयुक्त बलुई मटियार से दोमट मिट्टी में हो सकती है. जिसमें वायु संचार एवं पानी के निकास की उत्तम व्यवस्था हो. जिसका पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच हो उसमें मक्का की खेती अच्छी होगी. जिस जमीन में नमकीन पानी की समस्या है वहां मक्का की बिजाई मेड़ के ऊपर के बजाय साइड में करें, जिससे जड़े नमक से प्रभावित न हों.
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक किसान खेत की तैयारी जून से अगस्त तक के दूसरे सप्ताह में शुरू कर देनी चाहिए. खरीफ की फसल के लिए एक गहरी जुताई (15-20 सेमी) मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए. अगर खेत गर्मियों में खाली है तो जुताई गर्मियों में करना अधिक लाभदायक रहता है. इस जुताई से खरपतवार, कीट पतंगें व बीमारियों की रोकथाम में काफी सहायता मिलती है.
खेत की नमी को बनाए रखने के लिए कम से कम समय में जुताई करके तुरन्त पाटा लगाना लाभदायक रहता है. जुताई का मुख्य उद्देश्य मिट्टी को भुरभुरी बनाना है.अगर किसान नवीनतम जुताई तकनीक जैसे शून्य जुताई का उपयोग न कर रहे हों तो कल्टीवेटर एवं डिस्क हैरो से लगातार जुताई करके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लें.
मक्के की बुवाई वर्ष भर कभी भी खरीफ, रबी एवं जायद ऋतु में कर सकते हैं. लेकिन खरीफ ऋतु में बुवाई बारिश पर निर्भर करती है. अधिकतर राज्यों में जहां पर सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो वहां पर खरीफ में बुवाई का उपयुक्त समय मध्य जून से मध्य जुलाई और अगस्त है. पहाड़ी एवं कम तापमान वाले क्षेत्रों में मई के अंत से जून की शुरुआत में मक्का की बुवाई की जा सकती है.
मक्का के बीज को 3.5-5.0 से.मी. गहरा बोना चाहिए, जिससे बीज मिट्टी से अच्छी तरह से ढक जाए तथा अंकुरण अच्छा हो सके. सामान्य मक्का के लिए प्रति एकड़ 8 से 10 किलो, क्वालिटी प्रोटीन मक्का के लिए 8 किलो, बेबीकॉर्न के लिए 10 से 12 किलो, स्वीटकॉर्न के लिए 2.5 से 3 किलो, पॉपकॉर्न के लिए 4-5 किलो और चारे के लिए 25 से 30 किलो बीज की जरूरत होती है. बुवाई से पहले मृदा जनित रोगों एवं कीट-व्याधियों से बचाने के लिए इसका कवकनाशी या कीटनाशियों से उपचार जरूर करें.
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पौधों की जड़ों को पर्याप्त नमी मिलती रहे और जल भराव से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए यह उचित है कि फसल को मेड़ों पर बोया जाए. बीज को उचित दूरी पर लगाना चाहिए. आजकल विभिन्न बीज माप प्रणालियों के प्लान्टर उपलब्ध हैं, किन्तु एन्कलाइंड प्लेट, कपिंग या रोलर टाइप के सीट मीटरिंग प्रणाली सर्वोत्तम पाई गई है. प्लांटर का उपयोग करना चाहिए, क्योंकि इससे एक ही बार में बीज व उर्वरकों को उचित स्थान पर डालने में मदद मिलती है. चारे के लिए बुवाई सीडड्रिल द्वारा करनी चहिए. मेड़ों पर बुवाई करते समय पीछे की ओर चलना चाहिए.
फसल अवधि पूरी होने के पश्चात अर्थात् चारे वाली फसल बोने के 60-65 दिन बाद, दाने वाली देसी किस्म बोने के 75-85 दिन बाद व संकर किस्म बोने के 90-115 दिन बाद काटें. दाने में लगभग 25 प्रतिशत तक नमी रहने पर ही फसल की कटाई करनी चाहिए.
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