पंजाब में गिरते ग्राउंड वाटर में सुधार लाने के लिए सरकार चिंतित है, लेकिन किसान हैं कि अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे हैं. सरकार के अनुरोध करने के बावजूद भी किसान ऐसी फसलों की खेती कर रहे हैं, जिसमें सिंचाई के लिए अधिक पानी की जरूरत होती है. इस बार जालंधर जिले में किसानों ने बड़े स्तर पर वसंत मक्के की खेती की है. लेकिन रकबे में वृ्द्धि से कृषि विशेषज्ञों की परेशानी बढ़ गई है. कृषि विशेषज्ञों की माने तो वसंत मक्के की बहुत अधिक सिंचाई करनी पड़ती है. इसलिए इसकी खेती में पानी का बहुत अधिक दोहन होता है.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, जालंधर जिले में किसानों ने साल 2020-21 में 9,000 हेक्टेयर में वसंत मक्के की खेती की थी पिछले साल इसका रकबा बढ़कर लगभग 25,000 हेक्टेयर पर पहुंच गया. इस साल अब तक 17,000 हेक्टेयर में वसंत मक्के की फसल बोई जा चुकी है. कृषि विभाग के अधिकारियों को उम्मीद है कि फसल का रकबा पिछले साल की तुलना में अधिक होगा. खास बात यह है कि कपूरथला में भी कुछ ऐसे ही हालात हैं. वहीं, पीएयू कृषि कॉलेज की एक इमारत का उद्घाटन करते हुए मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि पंजाब में ग्राउंड वाटर लेवल काफी नीचे चला गया है. ऐसे में किसानों को धान की जगह अन्य फसलों की खेती करनी चाहिए. उनकी माने तो धान की खेती में बहुत अधिक पानी का दोहन होता है. इससे भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है.
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जानकारी के अनुसार बसंत मक्के की प्रति एकड़ लगभग 40 क्विंटल उपज होती है. पानी की अधिक खपत के कारण कृषि विभाग और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय इस फसल को बोने की सलाह नहीं देते हैं. कई किसान, जो पहले जालंधर के शाहकोट क्षेत्र और कपूरथला के डोना क्षेत्र में खरबूजा उगा रहे थे, अब उन्होंने अपने खेतों में वसंत मक्का उगाना शुरू कर दिया है और खरबूजा का क्षेत्र कम कर दिया है. इससे ग्राउंड वाटर का दोहन तेजी से हो रहा है. क्योंकि अधिकांश किसान ट्यूबवेल से ही फसलों की सिंचाई करते हैं.
इससे पहले द ट्रिब्यून से बात करते हुए, शाहकोट के एक किसान अमर सिंह ने कहा था कि पिछले कई वर्षों में लाभ में गिरावट के कारण उन्होंने खरबूजे का क्षेत्रफल 50 एकड़ से घटाकर 10 एकड़ से भी कम कर दिया है. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के प्रिंसिपल मक्का ब्रीडर डॉ. सुरिंदर संधू ने कहा कि इस साल भी स्थिति वैसी ही है. गेहूं के बाद मक्का बोने की प्रथा विनाशकारी है, क्योंकि हर तीसरे दिन किसान अपने खेतों में पानी लगा रहे हैं. यह धान की तरह तबाही मचाएगा. अजीब बात है कि डार्क जोन के अंतर्गत आने वाले जिलों के किसान भी उन्हीं फसलों की खेती कर रहे हैं, जिसे अधिक सिंचाई की जरूरत पड़ती है.
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