नीमनामा: संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण कार्यक्रम में नीम को साल 2012 में '21वीं सदी का वृक्ष' घोषित किया था. नीम का महत्व न केवल आज के समय में है, बल्कि सदियों से ग्रामीण समुदाय विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए नीम की पत्ती के काढ़े का उपयोग करता रहा है. भारत में इसे 'गांव की फार्मेसी' के रूप में जाना जाता है. कृषि वानिकी अनुसंधान संस्थान (CAFRI)झांसी के अनुसार, आज भी वैश्विक आबादी का 50 फीसदी से अधिक लोग पौधों पर आधारित दवाओं पर निर्भर हैं. इसमें नीम औषधीय गुणों से भरा एक पवित्र और बहुमुखी उपहार है. इसमें विभिन्न औषधि गुणों की यूएसपी है, जिसमें जीवाणुरोधी, एंटीवायरल, एंटी-प्रोटोजोअन, इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गुण पाए जाते हैं. साथ ही कीट-विनाशक गुण भी होते हैं.
इसके अलावा, इससे रोगों से रक्षा, त्वचा रोग, गैस्ट्रिक विकार रोग आदि का इलाज किया जा सकता है. वर्तमान में नीम के कई गुणों की पहचान की गई है. जैसे कि एजाडिराक्टिन, आइसोमार्गोलोनोन, मार्गोलोन, मार्गोलोनोन, निम्बिडिन, निम्बिन, निम्बोलाइड तत्व पाए जाते हैं. नीम ने ऐसा महत्व प्राप्त कर लिया है, जिससे वर्तमान में कृषि के साथ-साथ प्रभावी जैव-कीटनाशकों और उर्वरक के रूप में इसका उपयोग बड़े पैमाने पर किया जा सकता है. इससे किसानों को लाभ होने के साथ पर्यावरण और खेती में लागत में काफी कमी हो जाती है.
सीएएफआरआई झांसी के अनुसार, भारत नीम का दस लाख टन सालाना बीज उत्पादन, 88.4 हजार लीटर नीम का तेल और 354 हजार टन नीम केक उत्पादन के साथ अग्रणी उत्पादक है. आज अपने देश में लगभग 2 करोड़ नीम के पेड़ हैं. नीम में कई औषधीय और जैविक गुण होने के कारण इसमें प्रचुर पारंपरिक मूल्य मौजूद है. इसके अलावा, बीज तेल का एक अच्छा स्रोत है, जिसका उपयोग जैव-कीटनाशक के रूप में किया जाता है.
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नीम की पत्तियों का इस्तेमाल पशु आहार और लकड़ी के रूप में करते हैं. नीम की लकड़ी कीटों के प्रति प्रतिरोधी होती है. अब नीम के व्यावसायिक उपयोग के लिए प्राकृतिक वृक्षारोपण का व्यापक उपयोग किया जा रहा है. सरकार का जोर नीम कोटेड यूरिया (एनसीयू) पर भी है, जिसे नीम-लेपित यूरिया कहा जाता है. नीम आधारित उर्वरक काफी प्रभावी है, जो गेहूं और धान की वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक उर्वरक और कृषि योजना है. जनवरी 2015 में, यूरिया निर्माताओं को यह आदेश दिया गया था कि यूरिया को नीम कोटेड किया जाए ताकि पौधे ज्यादा से ज्यादा यूरिया उपयोग में ले सकें.
सरकार का किसानों के बीच नीम लेपित यूरिया को बढ़ावा देने पर जोर है, जिससे खेती की लागत कम होगी. नीम कोटेड यूरिया का लेप करने से नाइट्रोजन धीमी गति से निकलता है, जिससे पौधों को अधिक पोषक तत्व मिलते हैं और फसल की उपज बेहतर होती है. नीम का लेप लगाने से यूरिया का घुलना धीमा हो जाता है, जिससे यूरिया की बर्बादी नहीं होती. इससे यूरिया फसल पर प्रभावी ढंग से काम करता है, ताकि खेत में और कम यूरिया का उपयोग हो और पर्यावरण प्रदूषण भी कम हो.
इसके अलावा, नीम लेपित यूरिया मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन में सुधार करता है और एक साथ कीट और बीमारी के हमले के जोखिम को कम करता है. नीम के जैव-कीटनाशक, उर्वरक, सौंदर्य प्रसाधन और पशु आहार के रूप में कई उपयोग होते हैं. नीम के बीज के तेल के कई पारंपरिक महत्व हैं. यह कीट प्रतिरोधी, बैक्टीरिया, कवक और वायरस रोग के खिलाफ काम करता है. नीम जैव-कीटनाशक के रूप में एकीकृत कीट प्रबंधन का एक मुख्य घटक है. नीम के पाउडर का उपयोग खेत की जमीन में किया जाता है जो भूमि जनित रोगों और कीटों को रोकने का काम करता है. नीम हानिकारक कीटों को अंडों से निकलने वाले कीटों को भी रोकता है. आर्मीवर्म कीट को रोकने के लिए नीम की खली का प्रयोग प्रायः उर्वरक के रूप में किया जाता है.
नीम को प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में पहचान मिलने और इसके प्रति लोगों में आ रही जागरूकता के कारण देश में सालाना अनुमानित बाजार 100 करोड़ रुपये का है. नीम आधारित कीटनाशक बाजार सालाना 7-9 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है. अगर देश में नीम का उत्पादन 35 लाख टन निकल हो तो इससे लगभग 7 लाख टन नीम का तेल प्राप्त किया जा सकता है. भारत सरकार ने मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार के लिए 2017 से नीम लेपित यूरिया के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाई है.
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सीएएफआरआई झांसी के अनुसार, नीम के इस्तेमाल से फसल सुरक्षा में केमिकल कीटनाशकों का कम इस्तेमाल होने से किसानों की लागत में कमी आती है और विभिन्न फसलों की पैदावार में 6 से 17 फीसदी की बढ़ोतरी होती है. नीम अपने विभिन्न लाभकारी गुणों के कारण व्यावसायिक मान्यता प्राप्त कर लिया है और इसकी समय के साथ बड़े पैमाने पर खेती में उपयोग को लेकर शोध भी किए जा रहे हैं. नीम लेपित यूरिया के निर्माण के बाद नीम कीटनाशक पर काम हो रहा है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में अतिरिक्त रोजगार पैदा हो सकता है.
नीम केमिकल कीटनाशक की तुलना में, पर्यावरण के लिए बेहतर है और इसके उत्पादन के लिए भारत के किसान किसी कंपनी का निर्भर नहीं होते हैं. आमतौर पर केमिकल कीटनाशक पर्यावरण में बने रहते हैं और अत्यधिक जहरीले होते हैं. लेकिन नीम से बने कीटनाशक बायोडिग्रेडेबल होते हैं और कोई हानिकारक अवशेष नहीं छोड़ते हैं. खेती में जैव कीटनाशक का प्रयोग होने से नीम किसानों को बेहतर लाभ प्रदान कर सकता है, क्योंकि केमिकल कीटनाशकों की तुलना में नीम आधारित कीटनाशक सस्ता होता है.
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