'एकर अनार, सौ बीमार' की कहावत तो आप सबने सुनी होगी. ये कहावत अनार के गुणों और उसकी मांग समेत लोकप्रियता को बताने के लिए काफी है. असल में अनार काफी पौष्टिक फल है. अनार में विटामिन, फाइबर, आयरन, पोटैशियम, और जिंक पाया जाता है. इन्हीं वजहों से बाजारों में अनार की मांग सालों भर बनी रहती है, जिसकी पूर्ति के लिए देशभर के कई राज्यों में किसानों के बीच अनार की खेती का क्रेज भी बढ़ा है. लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि अनार की खेती में अंबे बहार का मतलब क्या होता है, जो अनार की उपज को बढ़ाने में मदद करता है. अगर नहीं जानते हैं तो आज हम आपको बताएंगे कि अनार की खेती में अंबे बहार क्या होता है.
दरअसल अनार के पौधों में पूरे साल फूल आते रहते हैं. वहीं इसके तीन मुख्य मौसम होते हैं जिन्हें अंबे बहार कहा जाता है. जिसमें जनवरी से फरवरी में अंबे बहार, जून से जुलाई को मृग बहार और सितंबर से अक्टूबर को हस्त बहार कहा जाता है. वहीं साल में कई बार फूल आना और फल आते रहना उपज और क्वालिटी के दृष्टि से ठीक नहीं होता है. ऐसे में किसानों को शुष्क क्षेत्र में पानी की कमी और जलवायु के अनुसार मृग बहार की फसल को लेना बेहतर माना जाता है. इसमें जून-जुलाई में फूल आते हैं और दिसंबर-जनवरी में फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. यानी इस अंबे बहार में किसानों को सबसे बेहतर अनार का उत्पादन मिलता है.
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अनार की खेती सबसे अधिक महाराष्ट्र में होती है. यहां की जलवायु और मिट्टी अनार उत्पादन के लिए बेहतर है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि अनार की खेती के लिए कौन सी मिट्टी और जलवायु बेहतर है. दरअसल अनार की खेती के लिए गहरी बलुई-दोमट मिट्टी सबसे बेहतर मानी जाती है. वहीं शुष्क जलवायु अनार की खेती के लिए अच्छी होती है.
अनार की खेती यानी बगीचा लगाने के लिए गड्ढा खोदने का काम मई महीने में पूरा कर लेना चाहिए. इसके बाद किसानों को ये ध्यान देना चाहिए की पौधा लगाने के लिए गड्ढों के बीज दूरी होनी चाहिए. इसके बाद गड्ढों को 1 फीसदी कार्बेन्डाजिम के घोल से अच्छी तरह से भिगा लेना चाहिए. फिर गड्ढों में गोबर या नीम की खली डालनी चाहिए. उसके बाद उसमें पौधों के कलम को लगाना चाहिए.
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