Fruits Orchard : केले की खेती बन जाएगी कमाई का खजाना, ये तकनीक और गणित आएगा बहुत काम

Fruits Orchard : केले की खेती बन जाएगी कमाई का खजाना, ये तकनीक और गणित आएगा बहुत काम

केले की बागवानी में आधुनिक तकनीकों को जानना बहुत जरूरी है, अगर इसकी बागवानी टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों से की जाए तो किसानों को काफी उपज मिलेगी, साथ ही अच्छे फल मिलने से उनकी आर्थिक सेहत भी बेहतर होगी. आज बाग बगीचा सीरीज में जानेंगे केले की बागवानी कैसे करें ताकि बेहतर लाभ मिल सके

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Fruits Orchard : केले की खेती बन जाएगी कमाई का खजाना, ये तकनीक और गणित आएगा बहुत कामकेले की खेती से जुड़ी जरूरी बातें

बाग- बगीचा- खेती में एक बने बनाए ढर्रे पर चलते रहने से उससे होने वाले फायदे का दायरा सिमट जाता है. जैसे हर क्षेत्र में नई तकनीकों के और नए मैनेजमेंट के इस्तेमाल से उसकी क्षमता, उत्पादकता बढ़ती है. फलों की बागवानी में केला देश के किसानों में रचा-बसा है, हर किसान केले की खेती कर मालामाल होना चाहता है, इसके बगीचे लगाने का  सही समय चल रहा है. केले की खेती में भी नए तरीक़ों को अपनाना होगा तभी आप वक्त के साथ आए बदलावों के अनुरूप आगे बढ़ पाएंगे .केले की बागवानी में आधुनिक तकनीकों को जानना बहुत जरूरी है, अगर इसकी बागवानी टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों से की जाए तो किसानों को काफी उपज मिलेगी, साथ ही अच्छे फल मिलने से उनकी आर्थिक सेहत भी बेहतर होगी,आज बाग- बगीचा सीरीज में जानेंगे केले की बागवानी कैसे करें ताकि बेहतर लाभ मिल सके.

केले में पानी जरूरी है लेकिन जलभराव नहीं

बांदा कृषि एवं प्रौद्योगकी विश्वविद्यालय के सब्जी विज्ञान के प्रोफेसर और बागवानी विशेषज्ञ डॉ अजीत सिंह के किसान तक को बताया कि अच्छी बारिश वाले इलाक़ों में केले की खेती सफल रहती है.खेत की उपजाऊ ताक़त यानी उस खेत में जीवाश्म की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए. खेत की पानी को सोखने की क्षमता भी ज्यादा होनी चाहिए, जिससे बारिश का पानी ज्यादा समय तक खेत में जमा न रह सके.केला उष्ण जलवायु का पौधा है,.लेकिन इसकी खेती नम उपोष्ण जलवायु से लेकर सूक्ष्म उपोष्ण जलवायु तक में की जा सकती है,अगर हम पीएच की बात करें तो 6-7 पीएच मान वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे बेहतर होती है,..लेकिन 5.5-8 पीएच मान वाली मिट्टी में इसकी खेती की जा सकती है.

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जानिए केले की बेहतर किस्में

बागवानी विशेषज्ञ के अनुसार अपने इलाके की आबोहवा और खेत की उपजाऊ ताकत के आधार पर उम्दा किस्म के केले की बुआई करनी चाहिए. केले की उम्दा किस्में हरी छाल, बसराई ड्वार्फ, G-9 वगैरह हैं रोबेस्टा फैमिली की दो प्रजातियां फेमस हैं.हरिछालऔर बांबे ग्रीन, दूसरी फैमिली है डवार्फ क्वैंडिस जिसके पौधे छोटे होते हैं,.इनमें भुसावल और बसराई किस्में आती हैं.तीसरी फैमिली है,ज्वायंट क्वैंडिस जिसकी एक प्रजाति हैजी-9,जिसे टिश्यू कल्चर तकनीक से बहुत पहले से तैयार किया जाता है,

केले की जी-9 किस्म हर नजरिये से बेहतर

डॉ अजीत सिंह के अनुसार ये देश के अधिकतर हिस्सों में व्यवसायिक दृष्टिकोण से सबसे पॉपुलर  किस्म  जी-9 है,दरअसल केले की जी नाइन किस्म को टीशू कल्चर से तैयार किया गयाहै, केले की इस किस्म की विशेषता है कि ये महज नौ-से-दस महीने में तैयार हो जाता है, साथ ही पकने के बाद सामान्य तापक्रम पर 12 से 15 दिन तक, और उपचार के बाद एक महीने तक, इनके फलों को संरक्षित रखा जा सकता है. इतना ही नहीं, इस केले का फल बीजरहित, आकार में बड़ा और काफी मिठास वाला होता है.

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केला के पौधे को कैसे लगाएं ?

बागवानी विशेषज्ञ के अनुसार पौधे से पौधे के बीच की दूरी साढ़े 6 बाई साढ़े पांच फीट रखी जाती है. जिससे उनके पौधों का भरपूर विकास हो और केले की क्वालिटी वाली भरपूर उपज मिल सके इसके बाद 50 सेंटीमीटर गहरा, 50 सेंटीमीटर लंबा और 50 सेंटीमीटर चौड़ा गड्ढा खोदा जाता है,.महीने में खोदे गए गड्ढों में 8 किलो कंपोस्ट खाद, 150-200 ग्राम नीम की खली, अगस्त के महीने में इन गड्ढों में केले के पौधों को लगाया जाता है.एक एकड़ में 1200 से 1250 पौधे लगते है. आजकल एक नई टेक्नोलॉजी आई है,अब बेड के ऊपर केले के पौधे लगाते हैं,जिसका परिणाम बेहतर हैं.

उर्वरकों को कब और कितना देना है?

डॉ अजीत सिहं ने बताया कि केले की खेती में भूमि की ऊर्वरता के अनुसार प्रति पौधा 600  ग्राम यूरिया, 225  ग्राम डीएपी तथा 400  ग्राम म्यूरेट ऑफ ्पोटाश की जरूरत पड़ती है. डीएपी  और पोटाश की आधी मात्रा पौधरोपण के समय और बाकी आधी मात्रा रोपाई के बाद देनी चाहिए युरिया  की पूरी मात्रा पांच भागों में बांटकर अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर और फरवरी-अप्रैल में देनी चाहिए.

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नई तकनीकों से लागत कम- उपज ज्यादा

महाराष्ट्र के जलगांव जिले के आतोड़ा के रहने वाले नितिन अग्रवाल  केले की खेती सफल किसान है  अपने खेत में  जीन- 9 केले की खेती करते है उन्होंने बताया कि  ऑटो ड्रिप,फर्टिगेशन के साथ केला फसल में मल्चिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हैं.नितिन अग्रवाल बताते हैं कि पहले वह केले के कंद से फसल की रोपाई किया करते थे और फ्लैट इरीगेशन से पानी फसलों को देते थे, जिससे खेती में उनको मजदूरी अधिक लगती थी और बारिश के मौसम में खेतों में बहुत अधिक घास भी हो जाती थी .इससे निजात पाने के लिए नितिन अग्रवाल ने मल्चिंग टेक्निक का इस्तेमाल किया मल्चिंग टेक्निक लगाने से खेतों में घास की समस्या समाप्त हो गई और मजदूरी भी नहीं लगती है.मल्चिंग टेक्निक से फसलों का रूट जोन अच्छा फैलता है और बारिश, ठंड और गर्मी के मौसम में फसलों पर होने वाली बीमारियां भी नहीं आती

केले की खेती के गणित को समझिए

नितिन अग्रवाल बताते हैं कि फसलों में खाद देने के लिए वह ऑटो फर्टिगेशन का इस्तेमाल करते हैं जिससे फसलों में पानी के साथ-साथ खाद भी पहुंच जाती है इस तकनीक के इस्तेमाल से समय पर खाद और पानी दिया जाता है. नितिन अग्रवाल केलेकी खेती में प्रति पौधा खर्च 90 से 110 रूपये तक का आता है=.इसमे एक पौधे औसत उपज 25 - किलो आता है एक पौधे से कम से कम  लगभग 200 से 250  रूपये तक  फायदा होता है इस तरह  प्रति एकड़  2 से 2.5 लाख का शुद्ध मुनाफ़ा हो जाता है .

 

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