भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने गुरुवार के लिए ऑरेंज अलर्ट और 14 जून से 18 जून तक के लिए येलो अलर्ट जारी किया है. साथ ही लोगों से अपील की गई है कि वे किसी जरूरी काम के बिना घर से निकलने से बचें. उत्तर भारत में पिछले कुछ दिनों से आसमान से आफत बरस रही है और कई शहरों में तापमान एक बार फिर 45 डिग्री के पार पहुंच गया है. IMD की भविष्यवाणी के अनुसार, आने वाले दिनों में तापमान और भी बढ़ सकता है. ये परिवर्तन विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे हैं. जलवायु परिवर्तन धीरे-धीरे एक वास्तविकता बन रहा है और इसका सबसे बड़ा प्रभाव खेती पर पड़ेगा क्योंकि खेती तो खुले आकाश के नीचे होती है जहां मौसम का सीधा प्रभाव होता है. आधुनिक सभ्यता की गतिविधियों के कारण आज पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से चिंतित हो चुकी है. भारत में गर्मी के बढ़ते स्वरूप को लेकर अब किसी भी तरह का संदेह नहीं रह गया है. इसका दुष्प्रभाव वन्य-जीवन, कृषि, रोग वृद्धि, स्थानीय मौसम, समुद्र तल में वृद्धि, आदि पर पड़ रहा है.
कृषि विज्ञान केंद्र, नरकटियागंज, बिहार के हेड डॉ.आर.पी. सिंह ने बताया कि एक अनुमान के अनुसार, पिछले 100 वर्षों में वातावरणीय तापमान में 0.74 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है. इस वृद्धि के पीछे कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, ओजोन जैसी प्रमुख गैसें जिम्मेदार हैं. कार्बन डाइऑक्साइड प्रमुख गैस है जिसका उत्सर्जन भू-उपयोग पद्धतियों, वनों के नष्ट होने, भूमि साफ करने और कृषि जैसी गतिविधियों से बढ़ा है. मीथेन भी एक महत्वपूर्ण गैस है जिसका उत्सर्जन पालतू पशुओं और धान की खेती से होता है. साथ ही कूड़े-करकट से भी यह गैस निकलती है. नाइट्रस ऑक्साइड भी उर्वरकों में मौजूद होती है और इससे भी मीथेन गैस उत्सर्जित होती है. औद्योगिकरण, भौतिक सुविधाओं की पूर्ति, और यातायात संसाधनों के बढ़ने से इन हानिकारक गैसों की मात्रा में वृद्धि हो रही है.
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डॉ. आर.पी. सिंह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे ज्यादा खेती को नुकसान हो रहा है. तापमान बढ़ने से फसलों में समय से पूर्व परिपक्वता आने से दाना छोटा और सिकुड़ जाता है. फूल आने की अवस्था में फूल सूख जाते हैं और फसलों की जल मांग बढ़ जाती है. तापमान बढ़ने से प्रमुख फसलों में कीट और रोगों के द्वारा तकरीबन 50 परसेंट तक नुकसान हो जाता है. वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ने से धान में झुलसा रोग और शीथ झुलसा रोग अधिक लगते हैं. तापमान में नमी की वृद्धि से रोगों और कीटों का प्रकोप बढ़ता है, जिससे नए प्रकार के रोग और कीट फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं. तापमान परिवर्तन के कारण खरीफ के खरपतवार रबी मौसम में भी पनप सकते हैं, जिससे फसलों का उत्पादन प्रभावित हो सकता है. इसके अलावा, तापमान परिवर्तन के कारण जीवाणु रोग, फफूंद जनित रोग और विषाणु जनित रोग भी फसलों पर अधिक लगते हैं.
डॉ. सिंह के अनुसार, वर्तमान में पर्यावरण परिवर्तन के प्रभाव से असंतुलित होकर प्राकृतिक संपदाओं का संतुलन बिगड़ गया है और इसका कृषि और जनजीवन पर भी प्रभाव देखने को मिल रहा है. डॉ. सिंह ने यह भी बताया कि पिछले 2 दशकों से तापमान में वृद्धि, वर्षा का बहुत कम या बहुत ज्यादा होना, तूफानों की संख्या बढ़ना (जैसे यास, ताऊते, निसर्ग, अफान, हुदहुद, फैलिन आदि) जलवायु परिवर्तन के संकेत हैं. उन्होंने कहा कि कार्बन डाइऑक्साइड, नमी और तापमान में वृद्धि से फफूंदनाशी और जीवाणुनाशी दवाओं की क्षमता प्रभावित होती है. अधिक नमी की दशा में मृदा जनित रोग जैसे उकठा, कालर सड़न, तना गलन, बीज गलन आदि का प्रकोप अधिक होता है. वातावरण के परिवर्तन के कारण मिट्टी की स्थिति में परिवर्तन होता है. साथ ही सूक्ष्मजीवों और कीटों की संख्या में भी परिवर्तन देखा गया है.
जलवायु परिवर्तन से हृदय संबंधी बीमारियां, निर्जलन (डिहाइड्रेशन), संक्रामक बीमारियों के फैलने जैसी समस्याएं आ रही हैं. गर्म हवाओं के तेज होने से मृत्यु दर में वृद्धि होती है. वृद्ध, बच्चे और जो सांस की बीमारी से पीड़ित हैं, उन पर इसका अधिक असर होता है. तापमान में वृद्धि का असर नगर में रहने वाले लोगों पर गांव में रहने वाले लोगों की तुलना में अधिक पड़ता है, क्योंकि कंकड़ और तारकोल से बनी सड़कें, प्रत्येक जगह पर कंक्रीट से बने मकान ऊष्मा को बढ़ा देते हैं. तापमान बढ़ने से जल स्तर नीचे जाना और भूमिगत जल तंत्र में परिवर्तन भी स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं.
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तापमान बढ़ने से वातावरण में मौजूद समताप मंडलीय ओजोन परत में क्षय होता है, जिससे सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी तक पहुंच रही हैं जो त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद बीमारियों और प्रतिरक्षा तंत्र को भी प्रभावित करती हैं. बाढ़ की वजह से मृत्यु, प्रदूषित पानी से होने वाली बीमारियां, बीमारी फैलाने वाले कीड़ों में बदलाव और कृषि भूमि में क्षय से पोषक तत्व प्रभावित होते हैं, जिससे पोषण और जीवन यापन स्तर भी प्रभावित होता है.
गर्मी बढ़ने से शरीर पर बुरा असर पड़ता है, इसलिए आपको ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए. एसी में बैठने के बाद तुरंत धूप में न जाएं. धूप में निकलने से पहले सर पर कपड़ा रखें. अगर धूप से आ रहे हैं, तो घर आकर पानी पीने का प्रयास करें, खासकर ठंडा पानी. शरीर को हमेशा हाइड्रेटेड रखने के लिए समय-समय पर जूस, पानी और नींबू पानी पीते रहें.
• मनुष्यों द्वारा उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों को कम करना होगा.
• पानी को जरूरत से ज्यादा उपयोग में न लें.
• बूंद-बूंद सिंचाई और जल छिड़काव विधियों का प्रयोग करें, मल्चिंग बेड, पौधरोपण, चेक डैम बनाना होगा जिससे जल संरक्षण हो सके.
• सूखा/गर्मी प्रतिरोधक, कम पानी वाली प्रजातियों को खेती में शामिल करें.
• फसलों के लिए सहनशील किस्में, रोग और कीटों के प्रति ध्यान रखें.
• कम पानी की दशा में मोटे अनाजों का उपयोग करें.
• फसलों की बुवाई का समय और अन्य कृषि कार्यों पर ध्यान दें.
• जैविक खेती का प्रयास करें जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम किया जा सके.
• घरेलू यंत्रों का उपयोग करें जो अधिक फैलाव नहीं करते, जैसे सोलर लाइट्स, सोडियम वेपर लाइट.
• पड़ोस या नजदीकी बाजार में साइकिल या पैदल जाने का प्रयास करें.
• अपने पड़ोस में पौधे लगाएं और उनका खयाल रखें.
• कूड़ा-रद्दी को न्यूनतम करें क्योंकि इससे मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है.
• सभी लाइट्स, टेलीविजन, वातानुकूलन मशीनों, कंप्यूटर और विद्युत यंत्रों को बंद रखें जब उनकी जरूरत ना हो.
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