खरीफनामा : इस समय पूरा विश्व मिलेट ईयर मना रहा है. मिलेट में ही एक फसल है मड़ुवा यानी रागी. जिसे अंग्रेजी में finger millets कहा जाता है. ये पोषक तत्वों से भरपूर मोटे अनाज की फसल है. बदलते मौसम में बाजरा अनाज की मांग बढ़ती जा रही है. ऐसे में finger millets की फसल उगाने वाले किसानों को कई फायदे हैं. खरीफ सीजन में देश के किसान इसे पहाड़ों से लेकर मैदानी इलाकों में उगाकर बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं. इसके लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार भी प्रोत्साहित कर रही है. इसे फिंगर मिलेट के अलावा अफ़्रीकी रागी, लाल बाजरा आदि नामों से भी जाना जाता है. इसे सबसे पुराना अनाज कहा जाता है. इसमें कैल्शियम की मात्रा बहुत अधिक होती है. साथ ही इसमें प्रोटीन, फाइबर और कार्बोहाइड्रेट प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. इसका इस्तेमाल रोटी, सूप, उपमा, डोसा, केक, चॉकलेट, बिस्किट्स, चिप्स औरआयुर्वेदिक दवा के रूप में किया जाता है. मड़ुआ के आटे को गेंहू के आटे में मिलाकर रोटी बनाकर खाई जाती है. मडुवा बच्चों और बड़ों के लिए एक बेहतर आहार है यह कम पानी वाली फसल है. खरीफनामा सीरीज में जानेंगे मड़ुआ की बेहतर किस्म की बुवाई के टिप्स.
कृषि विज्ञान केन्द्र बहराइच के हेड डॉ. बीपी शाही ने किसान तक से बातचीत में कहा कि हमारे केन्द्र पर मड़ुआ की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. उन्होंने मड़ुआ की बेहतर किस्मों की जानकारी देते हुए बताया कि किसानों को इन किस्मों का चुनाव करना चाहिए .
बीएल मड़ुआ 352 प्रति एकड़ 13.5 क्विंटल तक उपज क्षमता वाली सर्वोत्तम किस्म है. इसकी फसल 95 से 100 दिन में तैयार हो जाती है, इस किस्म को विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा द्वारा विकसित किया गया है. इसे 2012 में जारी किया गया था. इस किस्म की खेती देश के सभी हिस्सों में की जा सकती है.
बीएल मड़ुआ 376 किस्म उत्तम किस्म है. इसकी उपज क्षमता 12 क्विंटल प्रति एकड़ है. इसकी फसल 103 से 109 दिन में तैयार हो जाती है. इस किस्म को भी विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा द्वारा विकसित किया गया है. इसे साल 2016 में जारी किया गया था. इस किस्म की खेती देश के सभी हिस्सों में की जा सकती है.
बीएल मडुवा 146 किस्म अगेती की सबसे अच्छी किस्म है. इसकी उपज क्षमता 10-11 क्विंटल प्रति एकड़ तक है. इसकी फसल 95 से 100 दिनों में पक जाती है. इस किस्म को उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के लिए अनुशंसित है. इस किस्म की खोज विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोडा द्वारा की गई है. इसे वर्ष 1995 में जारी किया गया था.
बीएल 124 95 से 100 दिन में तैयार होने वाली अगेती किस्म है और इसकी उपज क्षमता 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ है. यह किस्म पहाड़ी राज्यों और उत्तर प्रदेश के लिए बेहतर मानी जाती है.
यह किस्म 95 से 100 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है और इसकी उपज 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है. यह किस्म पीसी यूनिट यूएस द्वारा विकसित की गई है और गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और झारखंड के लिए अनुशंसित है. इसके राज्य के अनुसार किसान इन किस्मों का चयन कर सकते है
झारखंड के लिए किस्में - ए 404, बीएम 2, वीएल 379
उत्तराखंड के लिए- पीआरएम-2, वीएल 315, वीएल 324, वीएल352, वीएल 149, वीएल 146
छत्तीसगढ़ के लिए- छत्तीसगढ़-2, बीआर-7, जीपीयू 28, पीआर 202, वीआर 708 और वीएल 149, वीएल 315
महाराष्ट्र के लिए- दापोली 1, फुले नाचनी, केओपीएन 235, केओपीएलएम 83, दापोली-2
गुजरात के लिए जीएन 4, जीएन 5, जीएनएन 6, जीएनएन 7
बिहार के लिए आरएयू 8, वीएल 379, ओईबी 526, ओईबी 532
मध्य प्रदेश के लिए- जेएनआर 852 पी.आर.-202 जे.एन.आर-981- जे.एन.आर-100
ये भी पढ़ें: खरीफ सीजन में बेहद ही फायदेमंद है बेबी कॉर्न की खेती, जानिए इसकी बेहतर किस्में
डॉ. बीपी शाही ने कहा कि किसानों को जहां तक संभव हो प्रमाणित बीज का प्रयोग करना चाहिए. बीज बुआई से पहले बीज उपचारित करें मडुवा बीज को फफूंदनाशी मेन्कोजेब, कार्बेन्डाजिमया कार्बोक्सिन इनके मिश्रण से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. उन्होंने बताया कि जैविक उर्वरकों एजोस्पाइरिलम ब्रेसीलेन्स एवं एस्परजिलस अवामूरी 25 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना फायदेमंद रहता है. मड़ुआ की बुआई दो प्रकार से की जाती है, पहली सीधी बुआई, दूसरी रोपाई विधि से की जाती है.
कृषि वैज्ञानिक डॉ शाही ने किसान तक को बताया कि रोपाई के लिये नर्सरी में बीज जून के मध्य से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक डाल देना चाहिये. एक एकड़ खेत में रोपाई के लिये बीज की मात्रा 2 से 3 किलोग्राम की जरूरत होती है. मड़ुआ की 25 से 30 दिन की पौध तैयार होने पर रोपाई करनी की जाती है. रोपाई के समय कतार से कतार व पौधे से पौधे की दूरी क्रमश 22.5 से.मी. व 10 से.मी. ऱखनी चाहिए.
कृषि वैज्ञानिक डॉ वीपी शाही के अनुसार अगर मड़ुआ को सीधी बुवाई करनी है तो जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई मध्य तक मानसून की बारिश होने पर की जाती है. छिंटकवा विधि की तुलना में सीधी बुवाई से कतारों में बोआई करना बेहतर होता है. लाइन में बुआई करने के लिए बीज दर 4 से 5 किलो एकड़ जरूरत होती है. सीधी बुवाई में दो लाइन के बीच की दूरी 22.5 से.मी और पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी रखें. वही छिंटकवा पद्धति से बुआई करने पर बीज दर 5-6 किलो प्रति एकड़ की जरूरत होती है.
मड़ुआ की फसल के लिए मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग सर्वोत्तम होता है. कम्पोस्ट खाद 40 क्विंटल प्रति एकड का उपयोग अच्छी उपज के लिये लाभदायक पाया गया है. असिंचित खेती के लिये 16 किलो नाइट्रोजन और 16 किलो फास्फोरस प्रति एकड की दर से प्रयोग कर सकते हैं. नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस की पूरी मात्रा बोआई पूर्व खेत में डाल दें. शेष मात्रा पौध अंकुरण के 3 सप्ताह बाद प्रथम निराई के उपरांत समान रूप से डालें .
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today