इस खरीफ सीजन धान से आगे निकली मिलेट की बुआई, इन फसलों का घट गया रकबा

इस खरीफ सीजन धान से आगे निकली मिलेट की बुआई, इन फसलों का घट गया रकबा

मोटे अनाजों की बुआई पर सरकारों का खास ध्यान है. केंद्र सरकार ने इस बार के बजट में मोटे अनाजों के लिए खास प्रावधान किए हैं. इसके अलावा छत्तीसगढ़ और ओडिशा सरकार मिलेट के किसानों को इंसेंटिव दे रही हैं. इससे मोटे अनाजों के रकबे में अच्छी वृद्धि देखने को मिल रही है.

Advertisement
इस खरीफ सीजन धान से आगे निकली मिलेट की बुआई, इन फसलों का घट गया रकबाइस बार धान से अधिक मोटे अनाजों की बुआई हुई है

देश में इस बार खेती का नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है. नया ट्रेंड ये है कि धान से अधिक मिलेट की बुआई हो रही है. मिलेट यानी कि मोटा अनाज या श्रीअन्न. खरीफ बुआई से जुड़ी एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल के मुकाबले इस बार खरीफ की बुआई नौ परसेंट कम है जिसमें सबसे अधिक प्रभाव धान और दलहन पर देखा जा रहा है. यानी इन दोनों फसलों का रकबा इस खरीफ सीजन में घट गया है. दूसरी ओर, ज्वार और बाजरे की बुआई इस बार बढ़ गई है. बुआई के इस ट्रेंड के पीछे मॉनसून की बारिश को असली वजह बताया जा रहा है.

मध्य जून में देश में जहां 30 फीसद कम बारिश दर्ज की गई, वहीं मौजूदा समय में यह दो फीसद अधिक हो गई है. जून में कम हुई बारिश का प्रतिकूल असर कई फसलों की बुआई पर देखा जा रहा है. पूरे खरीफ की बात करें तो जून में कम बारिश की वजह से खरीफ का रकबा पिछले साल के मुकाबले नौ फीसद कम है. धान और दलहन की बुआई सबसे अधिक फिसड्डी साबित हुई है, यहां तक कि इनमें एक चौथाई की कमी देखी जा रही है.

क्या कहती है रिपोर्ट?

बैंक ऑफ बड़ौदा के एक अर्थशास्त्री ने 'बिजनेस इनसाइडर' से कहा, दालों की बात करें तो अरहर और उड़द का रकबा पहले से कम हुआ है. इसके अलावा, तिलहन, कपास और जूट का रकबा भी तेजी से गिरा है. इन सबके पीछे कम बारिश को असली वजह बताई जा रही है. HDFC के अर्थशास्त्रियों का कहना है, रकबा में कमी इसलिए हो सकती है क्योंकि देश के प्रमुख धान और तुर उत्पादक क्षेत्रों में कम बारिश हुई है. आगे जुलाई की बारिश बहुत मायने रखेगी क्योंकि इसी महीने में अधिक से अधिक बुआई का काम पूरा किया जाएगा.

ये भी पढ़ें: मिलेट से बने हेल्थ प्रोडक्ट पर अभी नहीं घटेगा GST, 18 परसेंट ही रह सकती है टैक्स की दर!

देश के पूर्वी क्षेत्र जैसे बिहार, झारखंड, ओडिशा, मध्य महाराष्ट्र, दक्षिण तेलंगाना, कर्नाटक और केरल में इस बार बारिश कम हुई है. इससे भी कुछ फसलों का रकबा घटा है. दूसरा बड़ा खतरा अल-नीनो का है जिससे पूरा मॉनसून प्रभावित हो सकता है और बुआई घट सकती है. इस बीच एक अच्छी खबर ये है कि मौजूदा सीजन में मोटे अनाजो का रकबा बढ़ा है. पिछले साल की तुलना में बाजरे की बुआई बढ़ी है. ज्वारा का रकबा भी बढ़ा है, साथ में कुछ अन्य मोटे अनाजों का क्षेत्रफल भी इस बार अधिक है. गन्ने की बुआई में हल्की सी तेजी है.

ये भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ बन रहा देश का मिलेट हब, इकलौता राज्य जहां MSP पर खरीदा जा रहा मोटा अनाज

मोटे अनाजों के रकबे में वृद्धि के पीछे एक वजह 2023 को मोटा अनाज वर्ष घोषित करना भी बताया जा रहा है. भारत की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने इस साल को मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है. इसके अलावा केंद्र सरकार ने अपने बजट में मोटे अनाजों को प्रोत्साहन दिया है. साथ ही, छत्तीसगढ़ और ओडिशा सरकार मिलेट उगाने वाले किसानों को इंसेंटिव दे रही है. इससे भी मोटे अनाजों का रकबा इस बार बढ़ा है.

कितना घटा-बढ़ा रकबा

फसल  रकबा (लाख हेक्टेयर) बदलाव (एक साल में)
मोटा अनाज 73.4 19.7%
ज्वार 6.1 44.8%
बाजरा 38.5 60.3%
धान 54.1 -23.9%
दाल 32.6 -25.8%
तिलहन 61.1 -14.3%
कपास 70.5 -10.9%
गन्ना 55.8 4.7%

(सोर्स- CEIC, बैंक ऑफ बड़ौदा)

रकबा घटने का असर

खरीफ फसलों का रकबा घटने का असर खाद्य महंगाई के रूप में देखा जा सकता है. इसी बीच सब्जियों के रेट पहले से बहुत बढ़ गए हैं जिनमें टमाटर, मिर्च और अदरक आदि शामिल हैं. दूध के दाम पहसे से ही बढ़े हैं. तुर, गेहूं और चावल के भाव धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं. इन सभी बातों का असर आने वाले दिनों में बढ़ी हुई खाद्य महंगाई के रूप में देखी जा सकती है. इसका सबसे बुरा असर रिजर्व बैंक के उस कदम पर देखा जा सकता है जिसमें लोगों को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में ब्याज दरों में कटौती होगी. अगर महंगाई यूं ही बनी रही तो रिजर्व बैंक शायद ही ब्याज दरों को कम करे.

POST A COMMENT