आज हम आपकों फलों के राजा आम से मिलाएंगे, सुनाएंगे कहानी आम की. भारत भूमि पर शायद ही कोई ऐसा होगा जो आम का दीवाना न हो. बंगाल के माल्दा, उत्तर प्रदेश का लंगड़ा और दशहरी, गुजरात का केसर, महाराष्ट्र का ऐल्फान्सो नाम बदल जाते हैं लेकिन हर खास-ओ-आम की जुबां पर आम के स्वाद का जादू बरकरार रहता है. आज हम आपको ले चलेंगे आम के बागीचों में, जहां से आम पेड़ों से होता हुआ आपकी प्लेट तक पहुंचता है. आम वह फल, जो खाए वो ललचाए जो न खाए वो पछताए. भीनी-भीनी खुशबू आए जो सबके ही मन को भाए लंगड़ा चौसा और दशहरी कोई नहीं है इनका बैरी.
यूं तो आम कई रूपों में आपकी प्लेट तक पहुंचता है. आज हम आपको मिलवाते हैं उन आमों से जो आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं. जरदालू और माल्दा आम के लिए मशहूर बिहार के मुजफ्फरपुर में किसान राम किशोर सिंह की बाग में मिया जाकी, अमेरिकन ब्यूटी, रेड रॉयल, काटी मून समेत दस से ज्यादा विदेशी वैरायटी के आम लगे हुए हैं. इन आमों को देखने न सिर्फ दूर-दूर से किसान देखने आ रहे हैं बल्कि पौधा खरीदने भी आ रहे हैं. मियांजाकी ( Miyazaki) की कीमत 2 लाख 70 हजार रुपए प्रति किलो है. ये पूरी दुनिया में अपनी कीमत के लिए जानी जाती है. वहीं अमेरिकन ब्यूटी शुगर फ्री है और एक पेड़ पर काफी ज्यादा फल लगते हैं. एक पेड़ पर तो 100 किलो तक आम लगा हुआ है. इसकी कीमत चार हजार रुपए प्रति किलो है.
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रेड रॉयल भी स्वाद में काफी बेहतरीन होता है. इसका वजन 600 ग्राम है. इसकी कीमत 1 हजार रुपए प्रति किलो है. काटी मून का पेड़ काफी छोटा होता है और फल काफी बड़ा यानी आधा किलो से 700 ग्राम तक होता है. किसान राम किशोर सिंह के मुताबिक सिर्फ बिहार ही नहीं गुजरात के राजकोट में एक किसान ने ऐसे आम का उत्पादन किया है जिसे हर कोई नहीं खरीद सकता. इसकी कीमत ही इतनी ज्यादा है. इसकी कीमत कोई दो, चार, दस हजार नहीं लाखों में है. मियाजाकी आम का उत्पादन केवल जापान में होता है. इसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 2.5 लाख से 3 लाख के बीच है. गुजरात के एक किसान ने उसका उत्पादन किया है. मिया जाकी आम जापान के मियाजाकी शहर में उगाया जाता है. दरअसल इस आम को खाने के कई फायदे हैं.
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इस आम में विटामिन A,C और कैंसर रोधी तत्व पाए जाते हैं. यह 300 से 400 ग्राम तक होता है और इसकी मिठास भी दूसरे आमों से अलग होती है. इसकी एक खासियत इसका रंग भी है जो दूसरे आमों से अलग होता है. इसका रंग बैंगनी रंग से मिलता है. आम सिर्फ आम लोगों के लिए ही नहीं है. आम राम के लिए है और साईं के लिए भी. प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या में राम जन्मभूमि पर बने मंदिर में पहली बार अक्षय तृतीया का उत्सव मनाया गया तो इसमें आम को भी शामिल किया गया. पूरे मंदिर परिसर को फूलों से सजाया गया था तो फलों की लड़ियां भी भव्यता को बढ़ा रही थीं.
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अक्षय तृतीया कर रामलला का विशेष पूजन अर्चन हुआ और 11 हजार आम के फलों का विशेष भोग भी लगाया गया. लोगों ने अपने आराध्य के मंदिर की इस भव्यता को देखा. रामलला के भोग में आम को विशेष रूप से शामिल किया गया है. कहा जाता है कि इस मौसम में आम का विशेष महत्व है. वहीं साई बाबा के दरबार में उनके एक भक्त रविकिरण ने सवा तीन टन केसर आम अर्पित किया. इस आम का रस प्रसाद स्वरूप साईं के 40 हजार भक्तों ने ग्रहण किया.
आम की बात को और आम के सबसे ख़ास बागवान को बात न जो तो बात कुछ अधूरी रह जाती है. मैंगो बेल्ट कहे जाने वाले मलिहाबाद में पद्मश्री हाजी कलीमुल्लाह खान रहते हैं जिन्होंने एक ही पेड़ में 300 तरह के आम लगाने का करिश्मा किया है. उन्हें यहां लोग आम के जादूगर और आम के वैज्ञानिक भी कहते हैं. इसी तरह से जूनागढ़ में आम के म्यूजियम में गीर केसर आम की अपनी पहचान है. क्या आपको पता है कि यहां 80 से 120 तरह के आम के पौधे हैं. किसानों ने केसर के साथ देश विदेश में उगाए जाने वाले सभी तरह के आम की किस्मों को यहां लगाया है. सुमित मैंगो फर्म में ये किस्में देखने को मिलीं. फार्म के मालिक सुमित ने बताया कि देश विदेश के 120 किस्मों तक के आम यहां हैं.
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दुनिया भर से पौधे ला कर यहां कलम तैयार की जाती है जो विदेशों में भेजी जाती है. इनमें बारामासी, तोतापुरी, नीलम, दूधपेंडा, जामनगरी जैसी देशी किस्में और अफ्रीका की केंट, शैली, हैडी, अमरीका के टॉमी एटकिन, ऐल्फान्सो, पालमर भी शामिल हैं. यहां आइए तो लगेगा जैसे आम के म्यूजियम में आ गए हों. आम सिर्फ स्वाद के लिए नहीं है बल्कि किसानों के साल भर की कमाई है. कमाई भी ऐसी जो विदेशों तक पहुंचती है.
गुजरात के जूनागढ़ के केसर आम की मांग देश-विदेश में बढ़ती जा रही है. अमेरिका, साउथ अफ्रीका, कनाडा, सउदी अरब में हर साल केसर निर्यात किया जाता है. इस साल आम का उत्पादन 40 फीसदी कम होने के बावजूद विदेशों में आम की मांग बढ़ रही है. अभी तक 40 से 50 मीट्रिक टन निर्यात हो चुका है. इस साल ग्लोबल वॉर्मिंग का असर आम की पैदावार पर पड़ा है. कड़कड़ाती ठंड न होने की वजह से पेड़ों में फूल नहीं बैठे और गर्मी की वजह से जो फूल बैठे थे वो भी जल गए. इसलिए आम का उत्पादन कम हुआ है. इस बार केसर आम की कीमत ज्यादा होगी जिसका फायदा किसानों को होगा पर लोगों के लिए काफी महंगा होगा.
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आम सिर्फ अपने रूप में ही किसानों को फायदा नहीं देता और उनकी कमाई का जरिया नहीं बनता. बल्कि उसके कई खट्टे-मीठे स्वाद लोगों को खूब भाते हैं जिससे छोटे-बड़े स्तर के कई गृह उद्योग भी चलते हैं. महिलाओं के तो कई ऐसे समूह हैं जो आम के अचार, आम पापड़ या यूं कहें कि अमावट की बदौलत अपनी और समाज की तरक्की कर रहे हैं. यहां पर ऐसी कई महिलाएं हैं जिनके हाथ के बने आम के अचार और आम पापड़ को लोग खूब पसंद करते हैं. ये आपको बड़े बड़े स्टोर्स और मॉल्ज में मिल जाएंगे जो दीदीस फूड के नाम से हैं.
(लखनऊ से शिल्पी सेन की रिपोर्ट)
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