धान सबसे सबसे ज्यादा पानी की खपत करने वाली फसलों में शामिल है. इसलिए भू-जल संकट का सामना कर रहे राज्यों की सरकारें धान की खेती को डिस्करेज कर रही हैं. हरियाणा में तो धान की खेती छोड़ने पर बाकायदा किसानों को प्रलोभन के तौर पर पैसे दिए जा रहे हैं. ऐसे में एक नया रास्ता निकला धान की सीधी बिजाई (DSR-Direct Seeding of Rice) करने का. जिसमें न सिर्फ पानी का खर्च बहुत कम होता है बल्कि किसानों को सरकारें सब्सिडी भी देती हैं. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इन फायदों के बावजूद क्यों अधिकांश किसान धान की सीधी बिजाई की बजाय रोपाई करते हैं, जिसमें पानी का खर्च सबसे अधिक होता है. इसकी वजह सीधी बिजाई में खरपतवारों की समस्या है. जिसे खेत से बाहर निकलवाने में किसानों को मजदूरों पर अच्छी खासी रकम खर्च करनी पड़ती है. लेकिन अब पूसा के कृषि वैज्ञानिकों ने इस समस्या का हल खोज लिया है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह ने बताया कि पूसा ने देश की पहली हर्बिसाइड टॉलरेंट (खरपतवार नाशक-सहिष्णु) धान की दो किस्में विकसित की हैं, जिन्हें सीधे बोया जा सकता है. ये किस्में पूसा बासमती- 1979 और पूसा बासमती-1985 हैं. इन किस्मों के धान के खेत में खरपतवार नाशी दवा का प्रयोग करने से धान को कोई नुकसान नहीं होगा, धान बिल्कुल ठीक रहेगा लेकिन खरपतवार यानी घास खत्म हो जाएगी. इसे रिलीज कर दिया गया है. किसान धान की सीधी बिजाई के लिए बासमती धान की इन किस्मों का इस्तेमाल कर सकते हैं.
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डॉ. सिंह ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के दूसरे शोध संस्थान भी गैर बासमती धान की किस्मों में हर्बिसाइड टॉलरेंट जीन को डालने की कोशिश कर रहे हैं. एक किस्म रिलीज हुई है और एक जल्द ही आने वाली है. इससे पूरे देश में धान की सीधी बिजाई को बढ़ावा मिलेगा. जिसमें पारंपरिक रोपाई की तुलना में पानी और श्रम की काफी बचत होती है.
धान की रोपाई विधि से खेती करने पर एक किलो चावल पैदा करने में 3000 लीटर पानी लगता है. इसके बावजूद धान की खेती होती है और यह जरूरी भी है. विशेष रूप में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी में पैदा हुआ चावल पीडीएस में जाता है. यहां का चावल पीडीएस की रीढ़ है. जो भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए जरूरी है. लेकिन अगर धान की खेती में इतना पानी लगेगा तो हम कितने दिन खेती कर पाएंगे. इस समस्या का निदान सीधी बिजाई है.
पूसा के निदेशक ने बताया कि हर्बिसाइड टॉलरेंट पूसा बासमती-1979 और पूसा बासमती-1985 को बासमती धान की सबसे लोकप्रिय किस्मों को सुधार करके बनाया गया है. जिनके स्वाद और खुशबू में कोई अंतर नहीं है. पूसा बासमती-1509 को सुधार कर 1985 को बनाया गया है और पूसा बासमती-1121 को सुधार कर 1979 बनाई गई है. पूसा बासमती-1121 भारत का सबसे लोकप्रिय किस्म है. जिसका सबसे ज्यादा एरिया, उत्पादन और एक्सपोर्ट है. बहरहाल, अब धान की सीधी बिजाई करने वाले किसानों को खरपतवारों की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा. इसके लिए वैज्ञानिकों ने पूसा कैंपस में लंबे समय तक ट्रॉयल किया था.
मशहूर राइस साइंटिस्ट डॉ. सिंह ने बताया कि धान की सीधी बिजाई में रोपाई विधि के मुकाबले पानी की 35 फीसदी बचत होती है. किसानों को रोपाई पर लगने वाले 4000 रुपये प्रति एकड़ के खर्च की बचत होती है. ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 30 फीसदी की कमी होती. इस तरह से धान की खेती करने वाले किसान कार्बन क्रेडिट का भी लाभ उठा सकते हैं. हरियाणा और पंजाब में किसानों को डीएसआर विधि से धान की खेती करने पर प्रोत्साहन राशि भी मिल रही है. हरियाणा सरकार ऐसे किसानों को 4000 रुपये प्रति एकड़ दे रही है.
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