इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट खत्म होते ही मोटे अनाजों को लेकर किसानों का मोहभंग होने लगा है. इस बात की तस्दीक केंद्रीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट खुद कर रही है. मोटे अनाजों यानी मिलेट्स की बुवाई के एरिया में पिछले साल के मुकाबले रिकॉर्ड 11.20 लाख हेक्टेयर की कमी दर्ज की गई है. दरअसल, वर्ष 2023 के दौरान मोटे अनाजों को लेकर दिल्ली और दूसरे शहरों में जो पार्टियां हुईं, जो 'प्रपंच' हुए उसका फायदा किसानों तक नहीं पहुंचा. पूरे साल चले सेलिब्रेशन में कृषि मंत्रालय किसानों के नाम पर करोड़ों रुपये का पर्चा फाड़ता रहा और कभी नेताओं तो कभी ब्यूरोक्रेट्स को मिलेट्स से बने व्यंजनों की पार्टी देता रहा. लेकिन, इस पूरे जश्न से किसान बाहर रहा.
किसानों से मोटे अनाजों की एमएसपी पर खरीद तक नहीं की गई. राजस्थान, जो देश में बाजरा का सबसे बड़ा उत्पादक है, वहां से एक दाना भी बाजरा एमएसपी पर नहीं खरीदा गया. ऐसे में इसका एरिया भला कैसे बढ़ेगा? क्या सिर्फ मोटे अनाजों से बने पकवानों की पार्टी देने से ही किसानों का भला हो जाएगा. असल में किसानों का भला तो तब होगा जब एमएसपी या उससे अधिक कीमत पर उपज की खरीद सुनिश्चित होगी. वरना जो हाल दलहन और तिलहन का हुआ है वही मोटे अनाजों का हो जाएगा.
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केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार इस साल यानी 2024 में 19 जुलाई तक पूरे देश में 123.72 लाख हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई हुई है, जबकि पिछले साल इसी अवधि में 134.91 लाख हेक्टेयर में मोटे अनाज बोए जा चुके थे. बाजरा की बुवाई में सबसे अधिक 15.90 लाख हेक्टेयर की कमी दर्ज की गई है. वजह एक ही है कि सरकार इसका एमएसपी तो हर साल घोषित करती है लेकिन खरीद नहीं करती. ऐसे में किसानों को औने-पौने दाम पर उसे व्यापारियों को बेचना पड़ता है.
कृषि मंत्रालय और भारत सरकार से पूछा जाना चाहिए कि मिलेट ईयर में सिर्फ कंज्यूमर के लिए ही क्यों काम किया गया, क्यों पूरे साल हुए सेलिब्रेशन से किसान गायब रहे. मोटे अनाजों पर इतना ही प्यार उमड़ रहा था तो सरकार उसकी खरीद की गारंटी दे देती.
मंत्रालय के अनुसार इस साल 19 जुलाई तक 42.09 लाख हेक्टेयर में बाजरा की बुवाई हुई है, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में 57.99 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई हुई थी. ज्वार की बुवाई में भी कमी आई है. खरीफ सीजन के दौरान देश में करीब 180 लाख हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई होती है.
भारत की पहल पर 2023 को पूरी दुनिया ने इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट के तौर पर मनाया. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन यानी एफएओ ने 7 दिसंबर 2022 को ही इटली की राजधानी रोम में आयोजित एक कार्यक्रम के जरिए 'अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष-2023 की शुरुआत कर दी थी. भारत ने इससे जुड़ी गतिविधियों में मदद के लिए एफएओ को 5,00,000 अमेरिकी डॉलर दिए थे. अपने देश में भी मिलेट ईयर के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए.
दरअसल, मिलेट ईयर के जरिए भारत ने पूरी दुनिया को अच्छी सेहत के लिए पौष्टिक खानपान और पर्यावरण अनुकूल खेती का संदेश दिया. क्योंकि मोटे अनाजों की खेती में पानी की बहुत कम जरूरत पड़ती है. हालांकि, इस सेलिब्रेशन से भारत के किसानों को बहुत फायदा नहीं मिला. क्योंकि एमएसपी पर इन अनाजों की खरीद को लेकर सरकार का रवैया नहीं बदला. एमएसपी घोषित तो हुई लेकिन खरीद नाम मात्र की हुई. नतीजा यह है कि मोटे अनाजों का एरिया बढ़ने की बजाय अब घट रहा है.
केंद्र सरकार ने मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए बाजरा का एमएसपी 2500 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है. लेकिन ओपन मार्केट में किसानों को क्या इतना दाम मिल रहा है? जवाब नहीं में है. कृषि मंत्रालय की एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार 12 से 19 जुलाई 2024 के बीच देश में बाजारा का दाम 2193.56 रुपये प्रति क्विंटल रहा.
यह पिछले वर्ष की इसी अवधि से भी कम है. पिछले साल यानी 2023 में इन्हीं तारीखों के दौरान बाजरे का दाम 2211.28 रुपये क्विंटल था. मैं बाजरे की बात इसलिए कर रहा हूं क्योंकि खरीफ सीजन के मोटे अनाजों में बाजरा सबसे अहम है.
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