नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद ने कहा है कि मीडिल इनकम देश हमेशा फूड को प्राथमिकता देते हैं. उसके बाद आता है फीड और आखिरी में आता है फ्यूल. फसलें तो हमेशा प्राथमिकता पर फूड के लिए ही जाएंगी. यही सही है. जब हमारे पास फसलें सरप्लस थीं तब इथेनॉल के बारे में सोचा गया. पहले गन्ना और मक्का सरप्लस थे. लेकिन ये सब पिछले दो साल से सरप्लस नहीं हो पाए हैं इसलिए अभी फूड वर्सेज फ्यूल का क्राइसिस दिख रहा है. अगर इथेनॉल को नजर में रखते हुए अनाजों का ज्यादा प्रोडक्शन करना है तो टेक्नोलॉजी में इन्वेस्ट करना होगा. इसके लिए लैंड यूज भी ठीक से करना होगा. वो एरकस पॉलिसी रिसर्च की ओर से इंडिया हैबिटेट सेंटर में आयोजित एक पैनल डिस्कशन को संबोधित कर रहे थे.
इस मौके पर एरकस पॉलिसी रिसर्च की ओर से 'भारत में पेट्रोल में इथेनॉल ब्लेंडिंग: कच्चे माल की उपलब्धता का आकलन' विषय पर एक रिपोर्ट रिलीज की गई. रमेश चंद ने कहा कि वो न तो इस रिपोर्ट को स्वीकार करते हैं और न ही खारिज करते हैं. उन्होंने इथेनॉल को लेकर किए गए कार्यों की जानकारी दी. इस मौके पर केंद्रीय कृषि मंत्रालय के पूर्व सचिव सिराज हुसैन भी मौजूद रहे.
इसे भी पढ़ें: Paddy Variety: ज्यादा प्रोटीन वाला चावल चाहिए तो धान की इस किस्म की खेती करें किसान
इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली श्वेता सैनी ने कहा कि पिछले साल राइस कम रहा. गेहूं दो साल से खराब हो रहा है. अब अलनीनो आ रहा है तो उसका सरकार राइस और मक्का पर पड़ेगा. दूसरी बात यह है कि फीड इंडस्ट्री बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है. फसलों की खपत की दूसरी प्राथमिकता हमेशा फीड इंडस्ट्री रहेगी. जब फीड से बचेगा तब इथेनॉल तक आएगा. फसलों की पहली प्राथमिकता फूड, दूसरी फीड (चारा) और तीसरी फ्यूल है. अभी हमारे यहां 80 फीसदी इथेनॉल गन्ने से बन रहा है. जबकि गन्ना ज्यादा पानी खपत वाली फसल है.
इसी तरह एफसीआई के चावल से 11 फीसदी और पांच फीसदी से अधिक डैमेज राइस और मक्का से बन रहा है. मक्के के दाम में बहुत अनिश्चितता होती है. इसलिए किसान उसकी खेती नहीं बढ़ा रहे हैं. ऐसे में इथेनॉल के लिए मक्का कैसे उपलब्ध होगा.
सैनी ने बताया कि 2021-22 में पेट्रोल में 9.5 फीसदी इथेनॉल की ब्लेंडिंग हो रही थी. जबकि 2025-26 तक पेट्रोल में इथेनॉल की ब्लेंडिंग 20 फीसदी तक हो जाएगी. साल 2025-26 तक इथेनॉल की पूर्ति के लिए खेती के तहत अनुमानित लगभग 7.1 मिलियन हेक्टेयर जमीन की जरूरत होगी. गन्ने के लिए 3.3, मक्का के लिए 1.8 और चावल के लिए 2 मिलियन हेक्टेयर की और जरूरत होगी.
इथेनॉल बनाने के लिए रॉ मैटीरियल की कमी के बीच सैनी ने कहा कि भारत की ईंधन की मांग बढ़ रही है और साथ ही इसका कच्चा तेल आयात बिल भी बढ़ रहा है. साल 2021-22 में, भारत ने 120 बिलियन अमरीकी डालर मूल्य के कच्चे तेल का आयात किया, जो देश की पेट्रोलियम उत्पादों की कुल मांग का लगभग 86 प्रतिशत पूरा करता है. वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ती अस्थिरता और भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर इसके प्रभाव के साथ सरकार आयातित कच्चे तेल पर अपनी निर्भरता को कम करने की कोशिश कर रही है.
इसके लिए पहचाने गए तरीकों में से एक जैव ईंधन को बढ़ावा देना भी है. विशेष रूप से पेट्रोल के साथ इथेनॉल के मिश्रण से. नीति आयोग की ओर से 2021 में जारी किए गए इथेनॉल रोडमैप के अनुसार, देश सालाना पेट्रोल के साथ इथेनॉल के मिश्रण से विदेशी मुद्रा में लगभग 4 बिलियन अमरीकी डालर की बचत कर सकता है. साल 2018 के बाद से, भारत अपने इथेनॉल उत्पादन और ईंधन ब्लेंडिंग योजना के साथ तेजी से और प्रभावशाली ढंग से आगे बढ़ा है. जहां 2019-20 में 2 बिलियन लीटर से कम की ही ब्लेंडिंग हो रही थी वहीं 2021-22 में यह लगभग 4.1 बिलियन लीटर हो गई.
इसे भी पढ़ें: बासमती धान की वो किस्में जिनमें नहीं लगेगा रोग, एक्सपोर्ट से होगी बंपर कमाई
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today