आजकल औषधीय खेती का चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है. जागरूक किसान अपनी आय बढ़ाने के लिए ना सिर्फ पारंपरिक खेती कर रहे हैं बल्कि औषधीय फसलों की भी खेती कर रहे हैं ताकि मुनाफा कमा सकें. ऐसे में ईसबगोल की खेती किसानों के लिए एक बेहतर विकल्प है. खराब दिनचर्या, समय पर और सही ढंग का खाना ना खाने की वजह से पाचन शक्ति धीरे-धीरे कमजोर हो जाता है जिस वजह से लोगों को कई सवास्थ्य समस्याएँ होने लगती हैं. ऐसे में ईसबगोल का सेवन लोग बड़े पैमाने पर करते हैं. इसका कोई साइड इफैक्ट भी नहीं होता है. ईसबगोल एक औषधीय प्रजाति का पौधा है. यह पौधा झाड़ी जैसा दिखता है. फसल के रूप में इसमें गेहूँ जैसी बालियाँ होती हैं. ईसबगोल की भूसी में अपने वजन से कई गुना पानी सोखने की क्षमता होती है. ऐसे में इसकी उन्नत खेती कैसे की जाती है आइये जानते हैं:
भारत में इसबगोल की खेती राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे इलाके में की जाती है. ईसबगोल का इस्तेमाल जहां बीमारियों को दूर करने के लिए किया जाता है, वहीं इसकी पत्तियों का इस्तेमाल पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है. इस तरह किसानों को दोहरा लाभ मिलता है. पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था अलग से नहीं करनी पड़ती है. ईसबगोल की फसल तैयार हो जाती है तो बाजार में उसकी अच्छी कीमत मिल जाती है.
गुजरात ईसबगोल 2 : इसबगोल की यह किस्म गुजरात क्षेत्र के लिए उपयुक्त और सर्वोत्तम मानी जाती है. यह किस्म 118 से 125 दिनों में पक जाती है. वहीं इसकी उपज 5 से 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है. इसमें भूसे की मात्रा 28 से 30 प्रतिशत तक पाई जाती है.
आर.आई. 89 ईसबगोल : इसबगोल की एक और अच्छी किस्म है आर.आई. 89: हाँ. यह राजस्थान के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है. इसमें फसल तैयार होने की अवधि 110 से 115 दिनों की होती है. इसकी उपज क्षमता 4.5 से 6.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है. यह किस्म रोगों और कीटों के आक्रमण से कम प्रभावित होती है. साथ ही यह उच्च गुणवत्ता का है.
आर.आई.1 ईसबगोल : ईसबगोल की आर.आई.1 किस्म भी राजस्थान में अधिक बोई जाती है. इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 29 सेंटीमीटर से 47 सेंटीमीटर तक होती है. यह किस्म 112 से 123 दिनों में पक जाती है. जबकि उपज क्षमता 4.5 से 8.5 क्विंटल प्रति एकड़ है.
जवाहर ईसबगोल 4: इसबगोल की यह प्रजाति मध्य प्रदेश की जलवायु के लिए उपयुक्त मानी जाती है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार इसका उत्पादन 5. से 6 क्विंटल प्रति एकड़ तक लिया जा सकता है.
हरियाणा ईसबगोल 5 : उल्लेखनीय है कि इस किस्म की खेती हरियाणा क्षेत्र में अधिक होती है. इसलिए इसे हरियाणा इसबगोल 5 किस्म के नाम से जाना जाता है. इसका उत्पादन प्रति एकड़ 4 से 5 क्विंटल लिया जा सकता है.
किसानों की जानकारी के लिए बता दें कि इसकी खेती उष्ण जलवायु में भी आसानी से की जा सकती है. इसके पौधों को विकास करने के लिए भूमि का पीएच मान सामान्य होना चाहिए. यदि जमीन नमी वाली हो तो इसके पौधों का सही तरीके से विकास नहीं होता. इसीलिए ईसबगोल की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है जिसमें जीवाश्म की मात्रा अधिक हो.
ईसबगोल की खेती के लिए किसानों को सही समय का ज्ञान होना चाहिए. बता दें कि ईसबगोल की बुआई अक्टूबर से नवंबर माह के बीच होनी चाहिए. इसके बीजों की बुआई कतारों में की जाती है. इनकी कतार से कतार की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर होना जरूरी है. बीज को करीब 3 ग्राम थाईरम प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपचारित कर लें और मिट्टी में मिला लें. इसके बाद ही बुआई की जानी चाहिए.
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