
बागवानी फसलें खाद्य सुरक्षा में अहम भूमिका निभा सकती हैं. इसमें किसानों की आय बढ़ाने की भी क्षमता है. बढ़ती जनसंख्या के साथ इसकी भी जरूरतें बढ़ रही हैं. लेकिन हमारे यहां प्रति हेक्टेयर इसका उत्पादकता कई देशों से कम है. ऐसे में अनाजों की बजाय फल और सब्जियों की खेती में किसानों के लिए एक बड़ा अवसर है. इन्हीं मुद्दों को लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनी बेयर ने दिल्ली में इंडिया हॉर्टिकल्चर फ्यूचर फोरम का आयोजन किया. इसमें कहा गया कि देश के अंदर बागवानी में काम करने का बड़ा अवसर है. इसमें तकनीक के जरिए गुणवत्ता, उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाकर हम घरेलू और निर्यात दोनों की जरूरतें पूरी कर सकते हैं.
इस मौके पर बागवानी इकोसिस्टम से जुड़े लोगों ने बताया कि भारत में बागवानी फसलों से करीब 4 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं. लगभग 28 मिलियन हेक्टेयर में इसकी खेती होती है और हम सालाना अब 340 मिलियन टन उत्पादन कर रहे हैं. जबकि 2050 तक हमें 900 मिलियन टन की जरूरत होगी. हमारी उत्पादकता 12 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर के आसपास है, जो दुनिया की बागवानी उत्पादकता से काफी कम है. इसके बावजूद चीन के बाद हम दूसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं. ऐसे में किसान उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाकर इसे एक्सपोर्ट करके अच्छी कमाई कर सकते हैं. उत्पादकता बढ़ाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करने की जरूरत.
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फोरम के एक पैनल डिस्कशन में साउथ एशिया बायो टेक्नॉलोजी सेंटर के संस्थापक निदेशक भागीरथ चौधरी ने कहा कि बागवानी फसलों का उत्पादन हमारे छोटे किसान ज्यादा करते हैं. नई तकनीक से उनकी उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत है. साथ ही किसानों को उपभोक्ताओं से सीधे जोड़ने की जरूरत है. गुणवत्ता ठीक करने की जरूरत है, ताकि बागवानी उत्पाद एक्सपोर्ट लायक हो सकें. बागवानी फसलों की खेती करने वाले किसानों को प्राइस प्रोटक्शन भी मिलना चाहिए. फार्म गेट प्राइस और रिटेलर के प्राइस में कम कम चार गुना का अंतर होता है.
हमारे देश में फल और सब्जियां विटामिन, मिनरल्स और प्रोटीन के प्रमुख सोर्स हैं. ऐसे में कुपोषण की समस्या से निजात दिलाने के लिए बागवानी फसलों का अहम रोल हो सकता है. निर्यात बढ़ाने के लिए सरकार फ्री ट्रेड एग्रीमेट करे और साथ ही उसके अंदर किसानों को और प्रोटक्ट किया जाए. अभी हम 340 मिलियन टन का उत्पादन कर रहे हैं, जबकि 2050 तक 900 मिलियन टन की जरूरत होगी. यह बहुत बड़ा लक्ष्य है और किसानों के लिए उतना ही बड़ा अवसर भी.
चौधरी ने कहा कि अब तक हम बागवानी को फल और सब्जियों तक ही सीमित रखते आए हैं. जबकि इसका एक महत्वपूर्ण कंपोनेंट मसाला फसलें भी हैं. मसाला और फूलों का बहुत बड़ा योगदान है. ऐसे में इनकी भी गुणवत्ता और उत्पादन को बढ़ाने की जरूरत है. कुल मसाला एक्सपोर्ट सालाना 29 हजार करोड़ रुपये तक पहुंचने वाला है. मसाला बोर्ड है लेकिन वो किसानों को सिर्फ इलाइची के लिए डेवलपमेंट फंड देता है. इसमें बदलाव करने की जरूरत है.
इस मौके पर डबलिंग फार्मर्स इनकम कमेटी के चेयरमैन डॉ. अशोक दलवई ने कहा कि भारत ने पिछले 70 साल में बागवानी उत्पादन के मामले में काफी तरक्की की है. इसके जरिए पोषण का मामला हल किया जा सकता है और किसानों की आय बढ़ सकती है. लेकिन, क्लाइमेट चेंज की वजह से जो उत्पादन प्रभावित हो रहा है उस चुनौती से निपटने की जरूरत है. इस मौके पर बायर के डिवीजनल हेड साइमन वीबुक स्माल होल्डर फार्मर्स को मदद देने वाली योजना के बारे में बताया. नीदरलैंड ऐंबेसी
के एग्रीकल्वर काउंसलर माइनल वेन एरिकल ने इंडो-डच सेंटर ऑफ एक्सीलेंस एंड वेजिटेबल्स की जानकारी दी. इस मौके पर बेयर क्रॉप साइंस में पब्लिक अफेयर्स के डायरेक्टर राजबीर सिंह राठी भी मौजूद रहे.
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