मक्का की खेती पंजाब के किसानों के लिए दोधारी तलवार की तरह हो गइ है. पानी के संकट से जूझते इस राज्य के किसानों के लिए जहां इसकी खेती वरदान है तो वहीं अभिशाप भी है. मक्का की फसल दो विपरीत मौसमों में बोई जाती है, वसंत और गर्मी यानी फरवरी से लेकर जून तक जब पानी की खपत ज्यादा होती है. फिर पानी की कम खपत वाला खरीफ मौसम यानी जून से अक्टूबर, जो करीब-करीब धान की कटाई के बराबर चलता है. ऐसे में किसान इस बात को लेकर दुविधा में हैं कि इस फसल के फायदों को जल संसाधनों के संरक्षण की जरूरत के साथ कैसे संतुलित किया जाए.
अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में मक्का के बीज बेचने वाली प्राइवेट कंपनियों और पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (पीएयू) के अधिकारियों की शुरुआती रिपोर्ट्स के अनुसार, वसंत मक्का के तहत रकबा पिछले साल के करीब 1.50 लाख हेक्टेयर से बढ़कर इस साल 1.80-1.90 लाख हेक्टेयर हो गया है. वहीं पिछले एक दशक में इसके रकबा 30,000 से बढ़कर 35,000 हेक्टेयर तक हो गया है. दिलचस्प बात है कि पंजाब राजस्व विभाग आधिकारिक तौर पर वसंत मक्का की बुवाई पर नजर नहीं रखता है क्योंकि इसे प्राथमिक खरीफ फसल चक्र का हिस्सा नहीं माना जाता है.
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फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया के चेयरमैन अजय राणा ने बाजार सूत्रों के हवाले से बताया कि इस सीजन में राज्य में करीब 3,500 से 3,800 मीट्रिक टन वसंत मक्का के बीज बेचे गए. चूंकि एक एकड़ के लिए 8 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है तो ऐसे में इसका मतलब है कि पंजाब में इस फसल के तहत करीब 4.50 से 5 लाख एकड़ जमीन समर्पित हो गई है. फरवरी से जून तक मक्का की खेती में पानी की खपत बहुत होती है. ऐसे में इस मौसम में इसकी खेती में वृद्धि विशेषज्ञों को परेशान कर रही है.
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विशेषज्ञों के अनुसार मिट्टी के प्रकार और सिंचाई विधियों के आधार पर फरवरी से लेकर जून तक बोए जाने वाले मक्का को 5 से 19 सिंचाई की जरूरत होती है. ऐसे में यह पंजाब के घटते भूजल स्तर पर एक बड़ा बोझ है. कम अवधि वाली धान की किस्मों को करीब 20 से 21 सिंचाई की जरूरत होती है जो वसंत मक्का की फसलों के करीब है.
होशियारपुर जिले के फुगलाना गांव में 42 एकड़ में मक्का उगाने वाले किसान अमृतपाल सिंह रंधावा कहते हैं कि अगर फरवरी के पहले पखवाड़े में मक्का बोया जाए, जब मौसम ठंडा होता है, तो पानी की खपत कम होती है. हमारी मिट्टी नम है और पानी को बनाए रखने के कारण इसकी बनावट भारी है. हमें जून के खत्म होने तक सिर्फ पांच सिंचाई की जरूरत होती है. उसके बाद, मैं धान नहीं उगाता, बल्कि सब्जियां उगाता हूं. उनकी मानें तो ऐसा करके वह पानी की बचत कर रहे हैं.
उनका कहना है कि जब किसान रेतीली या हल्की बनावट वाली मिट्टी में मक्का बोते हैं तो उसे कई सिंचाई चक्रों की जरूरत होती है. अगर वो फिर धान की खेती करते हैं तो इससे भूजल पर भारी दबाव पड़ता है. रंधावा के मुताबिक मक्का की फसल की तरफ से पानी की खपत कई वजहों पर निर्भर करती है.
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वहीं विशेषज्ञों के अनुसार वसंत में मक्का उगाने वाले किसान 12 से 19 सिंचाई चक्रों का पालन करते हैं. गुरदासपुर के मुख्य कृषि अधिकारी डॉक्टर अमरीक सिंह के अनुसार वसंत मक्का भूजल भंडार पर बड़ा प्रभाव डालता है क्योंकि इसकी अधिकतम सिंचाई अवधि अप्रैल से जून के सबसे गर्म महीनों के साथ मेल खाती है. पीएयू के विशेषज्ञ लंबे समय से किसानों को वसंत मक्का की बुवाई करने से रोकते आ रहे हैं. उन्होंने चेताया है कि इसका विस्तार अस्थिर है. उनकी मानें तो इन महीनों के दौरान लंबे समय तक धूप के कारण वाष्पीकरण ज्यादा होता है और ऐसे में फसल को बार-बार पानी देने की जरूरत होती है.
वहीं इससे अलग मानसून के दौरान धान के साथ बोई जाने वाली और अक्टूबर के अंत से नवंबर तक काटी जाने वाली मक्का की फसल को पानी की अधिक खपत वाले धान का एक बेहतरीन विकल्प माना जाता है. पंजाब सरकार भी इसे बड़े पैमाने पर बढ़ावा देती है. लेकिन इसके बावजूद खरीफ के मौसम में बोए जाने वाले मक्का के रकबे में गिरावट आई है. एक दशक से कुछ ज्याद समय तक इसका रकबा 1.05 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 1.30 लाख हेक्टेयर हो गया है. जबकि साल 2024 में यह करीब 80,000 हेक्टेयर था.
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राज्य की फसल विविधीकरण रणनीति के हिस्से के रूप में पीएयू के वैज्ञानिकों सहित विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए मक्का की खेती के तहत 5.5 लाख हेक्टेयर से बहुत कम है. मक्का, विशेष तौर पर खरीफ सीजन में, धान की तुलना में काफी कम उपज देता है. जहां प्रति हेक्टेयर धान की उपज 30 क्विंटल और उससे ज्यादा होती है तो वहीं मक्का प्रति एकड़ करीब 20 से 22 क्विंटल तक ही होता है. इसके अलावा मक्का को धान की तरह सरकारी खरीद समर्थन की सुविधा भी नहीं मिली हुई है.
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