फरवरी के बढ़ते तापमान का असर गेहूं और सब्जी की खेती पर दिखाई दे रहा है. किसानों का कहना है कि खेतों से नमी खत्म हो रही है, जिसकी वजह से बार-बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ रही है. बता दें कि लगातार बढ़ता तापमान खेती की उत्पादकता को प्रभावित कर सकता है, जिससे किसानों की चिंता बढ़ गई है. यदि तापमान में इसी तरह वृद्धि होती रही, तो आने वाले दिनों में फसलों के विकास पर गंभीर असर पड़ सकता है.
गर्मी के कारण मिट्टी की नमी भी तेजी से कम हो रही है, जिससे पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ सकता है. यह स्थिति न केवल उत्पादन को प्रभावित करेगी, बल्कि फसलों की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगी.
मौसम विज्ञान केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष फरवरी में तापमान में 1 से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है. पहले जहां अधिकतम तापमान 26-27 डिग्री सेल्सियस रहता था, वहीं इस बार यह 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है. यह स्थिति जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दर्शाती है, जिससे गेहूं, चना, मक्का, तिलहन, दलहन और विभिन्न सब्जियों की खेती प्रभावित हो रही है. तापमान में लगातार हो रही वृद्धि से कृषि उत्पादन में गिरावट का खतरा बढ़ रहा है, जिससे किसानों की परेशानी बढ़ गई है.
भोजपुर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख प्रवीण कुमार द्विवेदी के अनुसार, यदि मार्च में तापमान 32 डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुंचता है, तो गेहूं के उत्पादन पर सीधा असर पड़ेगा. वर्तमान में औसत तापमान 28 डिग्री सेल्सियस है, जबकि गेहूं के लिए आदर्श तापमान 20-22 डिग्री सेल्सियस माना जाता है. अधिक गर्मी के कारण गेहूं के दाने सिकुड़ सकते हैं, जिससे पैदावार में कमी आ सकती है. अगर ऐसे स्थिति किसानों को दिखे तो वे गेहूं के खेत में बोरोन और 0050 का स्प्रे जरूर करें या बोरोन के साथ पोटेशियम नाइट्रेट का छिड़काव करें. इससे फसल को गर्मी के प्रभाव से कुछ हद तक बचाया जा सकता है.
सब्जी की खेती भी तेजी से प्रभावित हो रही है. रोहतास जिले के प्रगतिशील किसान अर्जुन सिंह का कहना है कि गर्मी के कारण पछेती गोभी का रंग पीला हो रहा है और वजन कम हो गया है. टमाटर का साइज छोटा हो रहा है और उत्पादन घटा है. लौकी में फल कम आ रहे हैं और उकठा रोग का प्रभाव बढ़ गया है. उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष स्थिति अधिक गंभीर है, जिससे उत्पादन लागत में वृद्धि हो रही है. अधिक गर्मी के कारण सिंचाई की जरूरत बढ़ रही है, जिससे किसानों पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है.
बढ़ते तापमान के कारण किसानों पर सिंचाई और दवा का अतिरिक्त खर्च बढ़ गया है. संतोष सिंह और अर्जुन सिंह के अनुसार, इस बार गेहूं के खेत में चौथी बार सिंचाई करनी पड़ रही है, जिससे प्रति एकड़ 600 रुपये का अतिरिक्त खर्च आ रहा है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल ओस न गिरने के कारण खेतों में नमी तेजी से खत्म हो रही है, जिससे अतिरिक्त सिंचाई की आवश्यकता पड़ रही है. यदि तापमान इसी तरह बढ़ता रहा, तो किसानों की लागत में और वृद्धि हो सकती है.
मौसम विज्ञान केंद्र पटना के पूर्वानुमान के अनुसार, अगले कुछ दिनों में तापमान में 2-3 डिग्री सेल्सियस की और वृद्धि हो सकती है, हालांकि कुछ जिलों में हल्की बारिश से तापमान में मामूली गिरावट आने की संभावना है. इसके बावजूद, किसानों को सतर्क रहने और फसलों की उचित देखभाल करने की सलाह दी गई है. यदि बारिश नहीं होती है और तापमान इसी तरह बढ़ता रहता है, तो कृषि उत्पादन में गिरावट देखने को मिल सकती है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर भी असर पड़ सकता है. किसानों को इस बदलते मौसम के अनुरूप अपनी कृषि तकनीकों को अपडेट करने की जरूरत है ताकि संभावित नुकसान को कम किया जा सके.
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