सरसों के गिरते दाम से परेशान राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब के किसानों ने बृहस्पतिवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर 'सरसों सत्याग्रह' किया. इस दौरान उपवास रखकर किसानों ने सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की. किसानों ने कहा कि अगर सरसों का दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम हो गया तो उनकी आर्थिक स्थिति और खराब हो जाएगी. इस दौरान सत्याग्रही किसानों ने फैसला लिया कि किसान अपने कृषि उत्पादों के दाम खुद तय करेंगे. इसकी शुरुआत तिलहन और दलहन से की जाएगी, जिसमें देश आत्मनिर्भर नहीं है. यही स्थिति हर कृषि उत्पाद में लाने की जरूरत है. सरसों उत्पादक किसानों से आग्रह किया गया कि वो अपनी उपज को एमएसपी से कम दाम पर न बेचें.
किसानों ने केंद्र सरकार की खाद्य तेल आयात और तिलहन फसलों की खरीद नीति की आलोचना करके हुए उसके खिलाफ जमकर नारेबाजी की. सरसों सत्याग्रह के आयोजक रामपाल जाट ने कहा कि खाद्य तेलों पर आयात शुल्क जीरो कर देने की वजह से पाम ऑयल का आयात ज्यादा हो गया है. ऐसे में सरसों का तेल सस्ता हो गया है. इस पॉलिसी से भारत के किसानों को नुकसान और दूसरे देशों के किसानों को फायदा हो रहा है. कुल उत्पादन का सिर्फ 25 फीसदी तिलहन फसलें खरीदने की नीति से एमएसपी पर पूरी उपज नहीं खरीदी जाती. जिससे बाजार में अच्छे दाम का माहौल नहीं बनता है, जिसका फायदा व्यापारियों को होता है.
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किसान महापंचायत में राजस्थान प्रदेश के अध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद चौधरी ने कहा जिस तरह से महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाते हुए विदेशी कपड़ों की होली जलाकर स्वदेशी का नारा बुलंद किया उसी तरह अब पाम ऑयल के खिलाफ भी आंदोलन करने की जरूरत है. पाम ऑयल की होली जलाने का वक्त आ गया है क्योंकि इसकी वजह से भारत की जनता का स्वास्थ्य खराब हो रहा है और किसान बर्बाद हो रहे हैं. पिछले साल हमने इंडोनेशिया, मलेशिया, रूस, यूक्रेन और अर्जेंटीना से 1 लाख 40 हजार करोड़ रुपये का खाद्य तेल मंगाया है. इसमें ज्यादातर हिस्सा पाम ऑयल का है जो सेहत के लिए खतरनाक माना जाता है.
किसान नेता रामपाल जाट ने कहा कि कृषि उत्पादों का मूल्य निर्धारण वो लोग करते हैं जिनका कृषि क्षेत्र से संबंध नहीं है. इसी की वजह से किसानों की आर्थिक स्थिति खराब है. जो कृषि उपज का व्यापार करते हैं वो जमकर कमाई कर रहे हैं. कृषि उत्पादक बेचारा बना हुआ है, इसलिए अब किसानों को खुद अपने उत्पाद का दाम तय करना होगा. पिछले साल सरसों 7500 रुपये प्रति क्विंटल के रेट पर बिक रहा था, जो अब घटकर 4500 रुपये रह गया है. एक क्विंटल में 3000 रुपये की गिरावट है. यह एमएसपी यानी 5450 रुपये से भी कम है. नेता जब विपक्ष में रहते हैं तब उन्हें किसान याद आते हैं और जब सत्ता में आते हैं तो उन्हीं किसानों से मुंह फेर लेते हैं.
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