Siddharth Nagar News: आमतौर पर लौकी की खेती कई किसान करते हैं, लेकिन यूपी के सिद्धार्थनगर के किसानों की चर्चा हो रही है. वह लौकी और दूसरी सब्जियों की खेती देसी जुगाड़ से करके दोगुना मुनाफा कमा रहे हैं. भारत- नेपाल बॉर्डर से सटे सिद्धार्थनगर के बांसी तहसील क्षेत्र में स्थित मराठा और पिडारी गांव के किसानों ने सब्जियों की खेती का अलग फार्मूला तैयार किया. इस देसी तकनीक से जहां फसल सुरक्षित है, वहीं आमदनी दोगुनी हो रही है. लौकी की खेती में अच्छा उत्पादन पाने के लिए मराठा गांव के किसान देवी लाल बांस से मचान बनाकर लौकी की खेती कर रहे है.
किसान तक से बातचीत में देवी लाल कहते हैं कि वो बीते 10 सालों से इस पद्धति से लौकी की खेती कर रहे है. उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी खासियत है कि इसमें नुकसान कम होता है, जिससे पैदावार बढ़ जाती है. बारिश के दौरान फसल सड़ती नहीं है. देवी लाल ने कहा कि पहले की खेती और अब में बहुत अंतर आ गया है. पहले हम लोग जमीन पर लौकी की खेती करते थे, लेकिन बरसात में फसल खराब हो जाती थी, हम लोगों की लागत भी नहीं निकल पाती थी. प्रगतिशील किसान
देवी लाल ने कहा कि इस देसी जुगाड़ से खेती करने में पैसा ज्यादा खर्च होता है, क्योंकि बांस, सूद और रस्सी के जरिए हम खेतों में मचान बनाते हैं. आज हम लोगों की फसल बारिश में सुरक्षित रहती है.
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इसी कड़ी में पिडारी गांव के स्मार्ट किसान गोरख सिंह ने बताया कि बांस के जरिए हम लौकी, करेला और नेनुआ की खेती कर रहे है. हम लोगों की फसल की अच्छी पैदावार हो रही है. वहीं मोटा मुनाफा कमा रहे हैं. उन्होंने कहा कि अभी ढाई बीघे खेत में लौकी लगाई है. पिछले एक महीने से रोजाना 200-300 लौकियां निकल रही हैं, अभी ये एक महीना कम से कम और चलेंगी. कुछ किसान सब्जियों की खेती करते भी हैं, लेकिन उन्हें इस बार बाढ़ से नुकसान हुआ है.
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'स्मार्ट किसान' गोरख सिंह ने बताया कि पहले ज्यादातर किसान सब्जियों को समतल खेत में सीधे बो देते हैं. अगर ज्यादा बारिश होती है तो पूरी फसल चौपट हो जाती है, जैसा आपने कई खेतों में देखा होगा. मैंने बांस गाड़ कर तारों का झाल बना दिया था, इससे मेरे हर पौधे को अच्छी बढ़त मिली है और पर्याप्त हवा-पानी मिलने के साथ एक-एक फल ताजा और स्वस्थ है. लौकी की पैदावार सीधी होती है और तेड़ी मेड़ी लौकी नहीं होती. यही वजह है कि लौकी, कद्दू, तरोई और करेला जैसी सब्जियों से एक ही सीजन में अच्छी कमाई की जा सकती है.
बता दें कि मचान से फसलों को तैयार करने की उत्तम विधि है. इसमें फसल जमीन की सतह पर ना फैलकर तार और रस्सियों के सहारे खुले वातावरण में फैलाकर विकास करते हैं, जिससे फसलों में रोग नहीं लगते. मचान में लौकी, खीरा, करेला जैसी बेल वाली फसलों की खेती की जा सकती है. इसमें खेत में बांस, रस्सी या तार का जाल बनाकर सब्जियों की बेल को जमीन से ऊपर पहुंचाया जाता है. इसका सबसे बड़ा फायदा है कि किसान अपनी फसल 90-95 प्रतिशत तक बचा सकते हैं. इससे अधिक उत्पादन प्राप्त होता है. मचान पद्धति से खेती वर्तमान समय की जरूरत बन गई है.
लौकी की खेत में लाल कीड़े जिसे हम रेड पंम्पकीन बीटल भी कहते हैं का प्रकोप बहुत अधिक भी होता है. इससे बचने के लिए किसान भाई डाईक्लोरोफाँस की मात्रा 200 एमएल को 200 मिली लीटर पानी में घोल बनाकर 1 एकड़ की दर से सूर्योदय से पहले ही छिड़काव करें.
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