गर्मी का मौसम और उसमें तरबूज न खाएं तो मजा नहीं आता. तरबूज गर्मियों में सबसे ज्यादा पसंद किया और खाया जाने वाला फल है. गर्मियों में इसकी डिमांड भी काफी अधिक होती है. तरबूज की खेती हिमालय की तराई क्षेत्रों से लेकर दक्षिण भारत के राज्यों तक काफी अधिक मात्रा में होती है. वहीं भारत में तरबूज की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और राजस्थान में की जाती है. ऐसे में इस सीजन में तरबूज की खेती काफी फायदेमंद मानी जाती है.
इसी में एक तरबूज है मतीरा जो राजस्थान में पाया जाता है. राजस्थान के किसान इस तरबूज की खेती करके बंपर पैदावार और मुनाफा कमा सकते हैं. आइए जानते हैं मतीरा तरबूज के बारे में.
मतीरा तरबूज की खेती के लिए गर्म और नमी वाले क्षेत्र सबसे बेहतर माने जाते हैं. इसके बीज के जमाव और पौधों के बढ़वार के लिए 25 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है. वहीं तरबूज की खेती कई प्रकार की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है. इसकी खेती के लिए 5.5 से लेकर 7 पीएच मान वाली मिट्टी बेहतर उपज वाली होती है.
तरबूज की खेती के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और बाद की जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से करना चाहिए. पानी कम या ज्यादा न लगे इसके लिए खेत को समतल कर लें. इसके बाद खेत में गोबर और खाद को मिला लें. इस मिश्रण को मिलाने से तरबूज की उपज बढ़ जाती है.
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मतीरा तरबूज की खेती के लिए 65 किलो नाइट्रोजन, 56 किलो फास्फोरस और 40 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर की जरूरत होती है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा को खेत में मिट्टी तैयार करते समय ही डालना होता है. इसके अलावा नाइट्रोजन की आधी मात्रा दो भागों में बांटकर खड़ी फसल में जड़ों के पास गुड़ाई के समय और दूसरी खेप फसल लगाने के 45 दिनों के बाद डालना चाहिए.
मतीरा तरबूज की बुवाई राजस्थान में जून-जुलाई में की जाती है. जबकि इस किस्म की बुवाई दक्षिण भारत में अगस्त से लेकर जनवरी के महीने तक की जाती है. साथ ही तरबूज की बुवाई चौड़ा गड्ढा बनाकर करते हैं. वहीं गड्ढे में बीज की बुवाई करने के बाद उसमें मिट्टी, गोबर की खाद और बालू का मिश्रण भर देना चाहिए. वहीं फसलों की सिंचाई 7 से 10 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए. इसके अलावा जब फल थोड़े बड़े हो जाएं तो सिंचाई ना करें.
तरबूज की खेती में तुड़ाई बहुत महत्वपूर्ण होती है. तरबूज की तुड़ाई फल के आकार और डंठल को देखकर करनी चाहिए. अच्छी तरह से पके हुए फलों की पहचान ऐसे करें जैसे, जमीन में सटे हुए फल के भाग का रंग परिवर्तन देखकर किया जाता है. इसके अलावा पके हुए फल को थपथपाने पर अगर धब-धब की आवाज आती है तो समझ जाएं कि फल पका हुआ है. वहीं पैदावार की बात करें तो इस किस्म की खेती करके राजस्थान के किसान प्रति हेक्टेयर 450 से 500 क्विंटल तक पैदावार ले सकते हैं.
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