मराठवाड़ा की आठ सीटों के साथ महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के बीच किसानों के मुद्दों ने सत्ता में बैठे लोगों और विपक्षी दल के नेताओं को परेशानी में डाल दिया है. अब कौन सी पार्टी अच्छी है और कौन सी बुरी, किसने कितना काम किया, इस पर बहस करने से पहले आइए जानते हैं कि यहां किसानों की हालत क्या है. दरअसल मराठवाड़ा में सोयाबीन की घटती कीमतों ने सरकार को चिंता में दाल दिया है. यहां के किसानों ने इस बार के लोकसभा चुनाव में ये ऐलान कर दिया है कि अगर सरकार ने सोयाबीन कि कीमत में बढ़त नहीं करती है तो किसान उन्हें वोट भी नहीं देगी. जिसके बाद न सिर्फ पक्ष बल्कि विपक्ष भी इस दायरे में है. क्या है किसानों कि पूरी समस्या आइए जानते हैं.
दाजीसाहेब लोमटे एक पेशेवर किसान हैं. उनके चारों भाइयों के पास कुल मिलाकर 40 एकड़ खेती है. पानी की कमी के कारण सोयाबीन के अलावा कोई अन्य उत्पाद की खेती कर पाना उनके लिए मुश्किल है. ऐसे में पिछले तीन साल से वो और उनका पूरा परिवार सोयाबीन उगा रहा है. घर में कम से कम 300 बोरियां पड़ी हैं. लेकिन बिना दाम के बेचना घाटे का सौदा है. जिस वजह से सिर्फ दाजीसाहेब ही नहीं दूसरे किसानों के हालात भी कुछ ऐसे ही हैं.
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मराठवाड़ा के आठ जिलों में सोयाबीन और कपास दो मुख्य फसलें हैं. पिछले साल मराठवाड़ा में सोयाबीन की कीमत कम से कम 40 लाख हेक्टेयर थी. इसीलिए मराठवाड़ा के चुनाव में सोयाबीन की कीमत और खाद समेत अन्य चीजों पर जीएसटी का मुद्दा किसानों पर भारी पड़ रहा है. लेकिन सत्ता में बैठे नेता इन मुद्दों पर बात करने से बच रहे हैं.
मराठवाड़ा में किसानों के पास खेती के अलावा आय का कोई अन्य स्रोत नहीं है. पिछले दस वर्षों में कोई बड़ा उद्योग नहीं आया है. ऐसे में पीएम सम्मान निधि से मिलने वाले 6 हजार रुपये कितने हद तक पर्याप्त होंगे? इस बात पर अब भी राजनीतिक पार्टियों और किसानों की बहस जारी है.
मराठवाड़ा में गर्मी अपने चरम पर है. खेत सूखे हैं, तालाबों में पानी नहीं है. खेती के लिए पानी मांगना अपराध करने जैसा है. सिर्फ मराठवाड़ा ही नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र में 35 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर सोयाबीन और कपास की फसल उगाने वाले किसानों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. अब दो चरणों का चुनाव खत्म हो चुका है और 3 चरण बाकी हैं. हिंदुत्व, पार्टियों में फूट और ना सिर्फ किसानों के मुद्दे बल्कि महाराष्ट्र के परीक्षा पेपर को भी कठिन बना दिया है. जिस वजह से ना सिर्फ किसानों को बल्कि यहां के युवाओं को भी कई चुनौतियों का सामना करना पर रहा है. (अभिजीत करांदे की रिपोर्ट)
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