Paddy Cultivation: उत्तरकाशी में हो रही लाल धान की खेती, 400 से अधिक किसानों ने मिलकर शुरू किया प्रयास

Paddy Cultivation: उत्तरकाशी में हो रही लाल धान की खेती, 400 से अधिक किसानों ने मिलकर शुरू किया प्रयास

उत्तरकाशी में लाल धान का उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा. पोषक तत्वों और औषधीय गुणों से भरपूर लाल चावल का रंग और अनोखा स्वाद इसे आम चावल से खास और अधिक मूल्यवान बनाता है. जिस वजह से इस चावल की मांग देश-विदेश में भी काफी अधिक है.

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Paddy Cultivation: उत्तरकाशी में हो रही लाल धान की खेती, 400 से अधिक किसानों ने मिलकर शुरू किया प्रयासउत्तरकाशी में सफल हुई लाल धान की खेती

उत्तरकाशी जिला लाल धान के लिए प्रसिद्ध है. जहां यमुना घाटी के पुरोला में हर साल लाखों रुपये के लाल धान का कारोबार होता है. जिले की गंगा घाटी में लाल धान की खेती को बढ़ावा देने की कोशिश अब रंग ला रही है. इस अभियान की शुरुआत करने के लिए जिलाधिकारी अभिषेक रुहेला खुद खेतों में गए और ग्रामीणों के साथ मिलकर जुताई और रोपाई की. अब फसल तैयार होने के बाद लाल धान  की पैदावार के नतीजे नई उम्मीदें जगा रहे हैं. इससे उत्साहित होकर किसानों ने  बीज के लिए पहली उपज बचाकर अगले खरीफ सीजन में बड़े पैमाने पर लाल धान  की खेती करने का इरादा जताया है. जिले की यमुना घाटी में पारंपरिक रूप से  लाल धान (चरधन) की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. रवांई क्षेत्र में पुरोला  ब्लॉक के कमल सिराई और रामा सिराई में लाल धान का सर्वाधिक उत्पादन होता  है. इसके साथ ही नौगांव और मोरी ब्लॉक के निचले इलाकों में भी लाल धान की  खेती की जाती है. इन क्षेत्रों में लाल धान की वार्षिक उपज लगभग 3000 टन है.  

पोषक तत्वों और औषधीय गुणों से भरपूर लाल चावल का रंग और अनोखा स्वाद  इसे आम चावल से खास और अधिक मूल्यवान बनाता है. जिस वजह से देश-विदेश  में इसकी काफी मांग है. लोकप्रियता एवं मांग में लगातार वृद्धि और किसानों को  होने वाले लाभ को देखते हुए लाल धान का उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता लगातार महसूस की जा रही थी.

गंगा घाटी में हो रही लाल धान की खेती

किसानों की बेहतरी की अपार संभावनाओं को देखते हुए जिलाधिकारी अभिषेक रुहेला की पहल पर कृषि विभाग ने पहली बार जिले की गंगा घाटी में लाल धान पैदा करने की योजना तैयार की थी. शुरुआती चरण में चिन्यालीसौड़, डुंडा और भटवाड़ी ब्लॉक के पैंतीस गांवों के करीब साढ़े चार सौ किसानों को इस प्रायोगिक अभियान से जोड़ा गया. साठ क्विंटल बीज की नर्सरी तैयार की गई और करीब दो सौ हेक्टेयर क्षेत्रफल में लाल धान की रोपाई की गई.

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सफल हुआ गंगा घाटी में लाल धान उगाने का प्रयास

इस पहल को जमीन पर उतारने के लिए जिलाधिकारी अभिषेक रुहेला ने 29 जून को भटवाड़ी ब्लॉक के उत्तराऊं गांव के सिमुड़ी तोक के 'सेरों' में स्वयं जुताई और बीज बोए थे. अब फसलों की कटाई के बाद यह अभियान पूरा हो चुका है. परिणाम उत्साहवर्धक और उम्मीदों के अनुरूप रहे हैं. वैज्ञानिक तरीके से जुटाए गए फसल कटाई के आंकड़ों और किसानों से मिले फीडबैक के आधार पर गंगा घाटी में लाल धान उगाने का शुरुआती प्रयोग सफल माना जा रहा है.

अगले खरीफ सीजन के लिए भी तैयार है किसान

इस अभियान से जुड़े उतराऊं गांव के किसान पूर्व सैनिक नरेंद्र सिंह और उनकी मां शिव देई आदि लाल धान की पैदावार से काफी उत्साहित हैं. शिव देई बताती हैं कि उनके खेत में लाल धान की पैदावार सामान्य धान के बराबर ही थी. लेकिन उर्वरक और रसायन की कम जरूरत और सामान्य धान की तुलना में दो से तीन गुना अधिक कीमत मिलने के कारण किसानों को इससे अधिक मुनाफा होना तय है. सिमुनी के वीरेंद्र सिंह बताते हैं कि उनकी लाल धान की फसल तेज हवा के झोंकों या भारी बारिश में भी खड़ी रही और पैदावार अन्य धान के बराबर ही हुई और इसका भूसा पशु चारे के लिए अपेक्षाकृत बेहतर माना जाता है. अन्य किसानों ने भी लाल धान की खेती को लाभदायक मानते हुए इसे जारी रखने की मंशा जताई है. अधिकांश किसानों ने अपनी पहली फसल को बीज के लिए सुरक्षित कर लिया है. इससे पता चलता है कि अगले खरीफ सीजन में यह मुहिम और रंग लाएगी और गंगा घाटी में बड़े पैमाने पर लाल धान की फसल लहलहाएगी.

लाल धान के लिए जियोटैगिंग की मांग

जिलाधिकारी अभिषेक रुहेला ने कहा है कि ऐसे सार्थक और संयुक्त प्रयासों से आम लोगों के जीवन में बेहतर बदलाव लाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि लाल धान की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाये जायेंगे. रुहेला ने कहा कि उत्तरकाशी जिले के लाल धान को केंद्र सरकार की पहल एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) के तहत शामिल किया गया है. साथ ही जियोटैगिंग के लिए भी आवेदन किया गया है. इससे जिले के लाल धान को देश-दुनिया में अलग पहचान मिलेगी और ब्रांडिंग व मार्केटिंग में फायदा होगा.

80 से 100 रुपये प्रति किलो है लाल धान की कीमत

इस क्षेत्र में धान की औसत उपज चालीस क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक आंकी गई है. सामान्य धान की बाजार कीमत 25 से 30 रुपये प्रति किलो है, जबकि लाल धान की कीमत 80 से 100 रुपये प्रति किलो है, जो आसानी से बिक जाता है. इसलिए किसान को लाल धान से कम से कम दोगुना मुनाफा मिलना तय है. (ओंकार बहुगुणा की रिपोर्ट)

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