Pink Mushroom: अभी तक आपने बाजारों में सफेद रंग के मशरूम ही देखे होंगे, लेकिन क्या आपने कभी गुलाबी रंग का मशरूम देखा है? अधिकतर लोगों का जवाब होगा नहीं. लेकिन अब गुलाबी रंग का मशरूम हमारे देश में भी आसानी से उगाया जा रहा है, जो कि पिंक ऑयस्टर मशरूम कहा जाता है. यह आमतौर पर पेड़ों पर उगता है, जो चमकीले गुलाबी रंग के होते हैं. अब इसे घर के अंदर भी उगाया जा सकता है. वैज्ञानिकों के अनुसार यह एक विशेष प्रकार का मशरूम है, जो कैंसर जैसी भयानक बीमारी के इलाज में काम आएगा.
गुलाबी रंग का यह विशेष मशरूम यानी पिंक मशरूम कई खूबियों से भरपूर है. जैसे कि पोषण के मामले में यह बाकी सभी मशरूमों से आगे है. इसमें 32 से 48 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 20 से 27 प्रतिशत प्रोटीन होता है. इसमें वसा भी कम होती है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है और इसकी मांग इसी कारण अधिक होती है. इससे मशरूम की खेती करने वाले किसान और महिलाओं को बहुत कम लागत में और कम समय में अधिक मुनाफा होता है.
विशेषज्ञों के अनुसार पिंक ऑयस्टर मशरूम को साइंटिफिक तौर पर Pleurotus Dejamor के नाम से जाना जाता है. यह वास्तव में ऑयस्टर मशरूम की एक प्रजाति है, लेकिन इसका गुलाबी रंग इसे सफेद ऑयस्टर मशरूम से पूरी तरह अलग कर देता है. इस मशरूम को तैयार करने में सिर्फ 15-20 दिन की जरूरत होती है. इसकी खासियत यह है कि इसे गर्म जलवायु में भी आसानी से उगाया जा सकता है."
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पिंक मशरूम को ऑयस्टर मशरूम की तरह ही धान के पुआल या गेहूं के भूसे पर उगाया जाता है, जिसके लिए पुआल को 3 से 5 सेंटीमीटर लंबे टुकड़े में काट लिया जाता है. कटे हुए पुआल या भूसे को साफ पानी में रात भर के लिए भिगो दिया जाता है. इसके बाद भूसे में कीटनाशक, फफूंदनाशक दवाओं जैसे - बावस्टिन, फार्मेलिन से उपचार किया जाता है. फिर भूसे को डलिया में डालकर पानी निचोड़ दिया जाता है. इसके बाद भूसे को हल्की धूप में रख दिया जाता है, जिससे उसमें नमी बनी रहती है. उसके बाद इसमें स्पॉनिंग, यानी बीज डालने का काम पूरा किया जाता है.
भूसे के वजन के 5 से 7 प्रतिशत के बराबर ऑयस्टर के बीज या स्पॉन को लेकर परतों में एक तरफ भूसे में डालें. इसके बाद बीज को डालने की प्रक्रिया को दोहराएं. इस तरीके से एक पॉलीथीन में 5 से 6 परतों तक की स्पॉनिंग की जाती है. इस बीज के भूसे को 45 गुना 30 सेंटीमीटर आकार की पॉलीथीन थैलियों में दो तिहाई भरकर ऊपर से बंध दिया जाता है. थैलियों का आकार जरूरत के हिसाब से बदला जा सकता है.
एक क्विंटल भूसा 700 रुपये में मिलता है, जिसमें 100 रुपये का स्पॉन, अर्थात मशरूम के बीज और 125 मिलीलीटर फार्मलीन, साढ़े 7 ग्राम बावस्टिन की आवश्यकता होती है. इससे 100 बैग तैयार होते हैं, जिसमें 2,000 से 2,500 का खर्च आता है जबकि आम ऑयस्टर मशरूम को तैयार होने में 25 दिन का समय लगता है. वहीं गुलाबी मशरूम 15 से 20 दिन में ही तैयार हो जाता है, 100 बैग से करीब 100 किलो पिंक मशरूम मिलता है. जहां बाजार में ताजा ऑयस्टर सफेद मशरूम की कीमत से 100 से 125 रुपये में बिकता है, वही पिंक मशरूम 150 से 200 रुपये किलो बिकता है.
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इस तरह किसान को 20 दिन के भीतर महज 100 बैग से 15,000 रुपये की कमाई हो सकती है. वहीं, इसे सूखाकर बेचने पर इसकी कीमत 20 गुना बढ़ जाती है. अर्थात एक किलो सूखा मशरूम 2 से 2.5 हजार में बिकता है. एक किलो ताजे मशरूम से करीब 100 ग्राम सूखा मशरूम मिलता है. अर्थात मशरूम को सूखाकर बेचने पर आपका मुनाफा डबल हो जाएगा.
अपने लाभकारी गुणों के कारण, गुलाबी मशरूम आज बाजार में अपनी जगह बना रहा है और ऐसे में पिंक मशरूम की मांग लगातार बढ़ रही है. यही वजह है कि आज मुनाफे के लिहाज से गुलाबी मशरूम की खेती एक बेहतर विकल्प बन रही है और इसमें लागत के मुक़ाबले 5 से 7 गुना मुनाफा होता है, पिंक मशरूम का औषधि पाउडर, अचार, आटा, पापड़ और प्रोटीन पाउडर बना कर लाभ को बढ़ा सकते हैं.
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