फसलों की बेहतर पैदावार के लिए समय-समय पर उनकी देखभाल करना जरूरी है. तभी किसान फसल से अच्छी उपज और उच्च गुणवत्ता दोनों प्राप्त कर सकते हैं. इसके लिए आवश्यक है कि फसलों की आवश्यकतानुसार सिंचाई, निराई-गुड़ाई तथा रोगों से सुरक्षा की जाये. ऐसे में किसानों को हर महीने किए जाने वाले कृषि कार्यों की जानकारी होना बहुत जरूरी है. तभी किसान सही समय पर सही काम कर सकेंगे. इसी क्रम में आज हम आपको दिसंबर माह में किए जाने वाले कृषि कार्यों के बारे में बताएंगे जिससे किसानों को लाभ होगा.
गेहूं की बची हुई बुआई इसी माह पूरी कर लें, क्योंकि बुआई जितनी देर से की जाएगी, उत्पादन उतना ही कम प्राप्त होगा. देरी से बुआई करने पर गेहूं की वृद्धि कम हो जाती है और कल्ले कम निकलते हैं. देर से बुआई करने पर बीज की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए. ऐसे में प्रति हेक्टेयर बीज दर बढ़ाकर 125 किलोग्राम करें. वहीं अगर आप यूपी-2425 किस्म ले रहे हैं तो बीज दर 150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर लें. गेहूँ को हल के पीछे कतारों में नाली या उर्वरक ड्रिल से बोयें.
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गेहूं की फसल में व्हीटग्रास और जंगली जई के नियंत्रण के लिए 13.5 ग्राम सल्फोसल्फ्यूरॉन 75 प्रति डब्ल्यूपी या सल्फोसल्फ्यूरॉन 75 प्रति मेट, सल्फ्यूरॉन मिथाइल 5 प्रति 20 ग्राम प्रति एकड़ 200 से 250 लीटर पानी में मिलाकर पहली सिंचाई के बाद छिड़काव करना चाहिए. गेहूं में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार की समस्या अधिक होती है. यदि ऐसा है तो चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए दो, चार, डी. सोडियम नमक 80 प्रति डब्लूपी, 625 ग्राम प्रति हेक्टेयर लगभग 500-600 लीटर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नोजल के माध्यम से 20-25 दिन लगाना चाहिए. बुआई के बाद छिड़काव करना चाहिए.
चना की फसल में पहली सिंचाई बुआई के 45 से 60 दिन के बीच करें. इसके बाद आवश्यकतानुसार सिंचाई कर सकते हैं. साथ ही समय-समय पर खेत से खर-पतवार को कन्नी की सहायता से हटाते रहें या जमीन में दबा दें. यदि चने में झुलसा रोग का प्रकोप हो तो इसकी रोकथाम के लिए 2.0 किलोग्राम मैन्कोजेव (मैन्कोजेव 75 प्रतिशत 50 डब्लूपी) को 500-600 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर घोलकर 10 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें.
आलू की फसल में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. खेतों को पाले से बचाने के लिए धुआं करें. यदि आलू में झुलसा एवं एफिड रोग का प्रकोप दिखाई दे तो इसके नियंत्रण के लिए मैकोजेब 2 ग्राम तथा फास्फामिडान 0.6 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10-12 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करें.
मिर्च में खरपतवार नियंत्रण के लिए डोरा कोलपा का प्रयोग करें. मल्चिंग का प्रयोग करें. मिर्च में वायरस फैलाने वाले कीड़े, थ्रिप्स, एफिड, माइट्स और सफेद मक्खी का समय पर नियंत्रण. इसके लिए कीड़ों की लगातार निगरानी करें और संख्या के आधार पर 2 मिलीलीटर डाइमिथेट डालें. मात्रा 1 को पानी में मिलाकर छिड़काव करें. अधिक प्रकोप होने पर 15 लीटर पानी में 5 ग्राम थियामेथिस्ट 25 डब्लूजी मिलाकर देना चाहिए. इसे पानी में मिलाकर छिड़काव करें. टमाटर की तरह मिर्च में भी झुलसा रोग लगने का खतरा होता है. इसकी रोकथाम के लिए मैकोजेब 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें.
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