भारत में आलू की खेती बहुतायत में की जाती है. भारत में आलू की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा एवं असम आदि राज्यों में की जाती है. आलू के उत्पादन में भारत का तीसरा स्थान है. किसी भी फसल के लिए एक अच्छी वेरायटी का होना बहुत ही जरुरी है जिससे किसानों को अच्छी पैदावार के साथ अच्छा मुनाफा मिल सके. आलू खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. आलू की अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों को उसको सही समय पर खेती और अच्छी किस्मों का चयन करना बेहद जरूरी है, इसकी कुछ ऐसी किस्में हैं, जिसमें न कीट लगते हैं और न ही रोग होता है. इन किस्मों की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. जानिए आलू की ऐसी पांच किस्मों के बारे में
कुफरी अलंकार
यह आलू की उन्नत किस्म माना जाता है इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल तक उत्पादन मिलता है. इस किस्म के आलू की फसल 70 दिनों में ही तैयार हो जाती है. उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में इसकी पैदावार अच्छी होती है.
कुफरी थार
यह वेरायटी भारत के उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं छत्तीसगढ़ प्रदेशों में पैदावार की जाती है. इस किस्म से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है. आलू की यह किस्म की खेती पहाड़ों एवं गंगा तट के किनारे पाए जाने वाले मैदानी क्षेत्र में अच्छी होती है.
कुफरी चंद्रमुखी
इस किस्म के आलू के पौधे का तना लाल-भूरे रंग के धब्बे के साथ हरा होता है. फसल तैयार होने में 80 से 90 दिनों का समय लगता है. प्रति हेक्टेयर इसकी पैदावार 200 से 250 क्विंटल है. उत्तर भारत के मैदानी और पठारी इलाके इसकी खेती के लिए अच्छे हैं.
कुफरी गंगा
आलू की इस किस्म से 350 – 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होती है. आलू की यह किस्म 80– 90 दिन में पककर पूरी तरह तैयार हो जाती है. वहीं आलू की यह किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले अच्छा पैदावार देती है.
कुफरी संगम
आलू की यह किस्म उत्तर प्रदेश , राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब राज्यों में की जाती है. इस किस्म की खासियत यह है कि यह बहुत पौष्टिक होने के साथ – साथ स्वादिष्ट भी होती है. आलू की यह किस्म लगभग 100 दिनों में तैयार हो जाती है.
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