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इथेनॉल बनाने के लिए चाहिए 110 लाख टन मक्का, इसकी सप्लाई को लेकर उठे कई सवाल

इथेनॉल बनाने के लिए चाहिए 110 लाख टन मक्का, इसकी सप्लाई को लेकर उठे कई सवाल

पहली दो तिमाही (नवंबर-अप्रैल) में डिस्टिलरियों को तेल कंपनियों को 188 करोड़ लीटर इथेनॉल सप्लाई करने के लिए 50 लाख टन मक्के की जरूरत होगी. अगर इसके लिए मक्के की खेती का रकबा देखें तो पता चलेगा कि इथेनॉल के लिए मक्के का उत्पादन पर्याप्त रह सकता है.

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मक्के का उत्पादन मक्के का उत्पादन

मक्के से इथेनॉल बनाने वाली डिस्टिलरियों को 431 करोड़ लीटर इथेनॉल की सप्लाई के लिए ऑर्डर मिले हैं, जिसके लिए 110 लाख टन से ज्यादा मक्के की जरूरत होगी. ऐसे में यह सवाल उठता है कि मक्के की इतनी बड़ी मात्रा कैसे उपलब्ध होगी. उद्योग से जुड़े सूत्रों ने कहा कि चालू सीजन के दौरान 306 करोड़ लीटर की सप्लाई के लिए 80 लाख टन मक्के की जरूरत होगी. इसकी सप्लाई को लेकर कोई परेशानी नहीं होगी और अगले सीजन में आसानी से मक्के का इंतजाम हो सकता है.

30 सितंबर तक मक्के से 231 करोड़ लीटर से अधिक इथेनॉल की सप्लाई की गई. उद्योग से जुड़े एक अधिकारी ने 'बिजनेसलाइन' से कहा, पहली दो तिमाही (नवंबर-अप्रैल) में डिस्टिलरियों को तेल कंपनियों को 188 करोड़ लीटर इथेनॉल सप्लाई करने के लिए 50 लाख टन मक्के की जरूरत होगी. अगर इसके लिए मक्के की खेती का रकबा देखें तो पता चलेगा कि इथेनॉल के लिए मक्के का उत्पादन पर्याप्त रह सकता है. 2023-24 खरीफ सीजन में 80 लाख हेक्टेयर से अधिक रकबे में मक्के की खेती की गई जिससे 22 लाख टन से ज्यादा मक्के का उत्पादन हुआ. इसे देखते हुए मौजूदा सीजन में भी मक्के का उत्पादन बेहतर रहने और इथेनॉल के लिए इसकी सप्लाई पर्याप्त होने की उम्मीद है.

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क्या कहते हैं सरकार के आंकड़े?

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इस साल खरीफ में मक्का की बुवाई 27 सितंबर तक 88 लाख हेक्टेयर थी, जो पिछले साल की इसी अवधि के 84 लाख हेक्टेयर से अधिक है. हालांकि, एक कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि रकबे के आंकड़े भ्रामक हो सकते हैं, क्योंकि इस साल अच्छी बारिश के बीच मक्का से धान की ओर किसानों ने रुख किया है. जब तक रकबे के आंकड़ों का वेरिफिकेशन नहीं हो जाता, तब तक उत्पादन के बारे में अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी, जिसे साल में 3-4 बार अपडेट किया जाता है. वैज्ञानिक ने खास तौर पर खरीफ मक्का के प्रमुख उत्पादक राज्य कर्नाटक में लगभग आधा लाख हेक्टेयर कम रकबे का जिक्र किया.

देश की डिस्टिलरी एक टन मक्के से लगभग 380-390 लीटर इथेनॉल और एक टन चावल से 450-460 लीटर बायो फ्यूल बनाती हैं. चूंकि टूटे हुए चावल की उपलब्धता पर्याप्त नहीं है और साथ ही इसकी कीमतें भी उतनी कम नहीं हैं, इसलिए ज्यादातर डिस्टिलर मक्के को तरजीह देते हैं. हालांकि इसका बड़ा नुकसान बाकी उद्योगों और पोल्ट्री, मवेशी फीड बनाने वाली कंपनियों को होता है क्योंकि उनके लिए मक्के की सप्लाई कम होती है और उन्हें मजबूरी में अधिक दाम देना पड़ता है.

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मंडियों में क्या है मक्के का भाव?

अभी मंडियों में मक्का औसतन 2,101 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रहा है, जो इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 2,225 रुपये से कम है. हालांकि, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और गुजरात में मक्के की मंडी कीमतें MSP से अधिक हैं. जहां मक्के की कीमत एमएसपी से नीचे है, खासकर मध्य प्रदेश में, वहां के व्यापारियों ने अनाज में अधिक नमी की मात्रा के साथ-साथ राज्य में अधिक फसल की उम्मीद को जिम्मेदार ठहराया है. मध्य प्रदेश में इस बार मक्के का उत्पादन अधिक रह सकता है जिससे अभी से ही उसके दाम एमएसपी से नीचे चल रहे हैं.