
UP News: मिलेट्स यानी ‘श्री अन्न’ के प्रति जागरूकता को बढ़ाने की दिशा में उ.प्र. कृषि अनुसंधान परिषद ने राजधानी लखनऊ के इंटीग्रल विश्वविद्यालय में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया था. इस संगोष्ठी में ‘‘बदलते जलवायु परिदृश्य में श्री अन्न (मिलेट्स) के उत्पादन एवं मूल्य संवर्धन हेतु अभिनव दृष्टिकोण” विषय पर चर्चा हुई. जहां देश एवं प्रदेश के 400 से अधिक प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया.
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. एके सिंह, कुलपति, रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय विश्वविद्यालय, झांसी ने कहा कि पूर्व के वर्षों में मोटा अनाज मिश्रित फसल के रूप में लिया जाता था किंतु धीरे-धीरे धान तथा गेहूं ने इसका स्थान ले लिया. वर्तमान में सरकार द्वारा मोटा अनाज के उत्पादन तथा इसकी जागरूकता के लिये इतने प्रयास किये जा रहे है जितना कि हरित क्रांति में भी नहीं किया गया था. मोटा अनाज के विलुप्त होने का एक कारण यह भी है कि धान तथा गेहूं का उत्पादन इससे अधिक था. इसलिए लोगों ने इस पर कम ध्यान दिया तथा धीरे-धीरे विलुप्तता की कगार पर पहुंच गये.
मोटे अनाज का प्रसंस्करण कठिन होने के कारण तथा उत्पादकता में कमी होने के कारण लोगों ने इसे कम महत्व दिया. वर्तमान में मोटे अनाज की उत्पादकता बढ़ी है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से ज्वार, बाजरा तथा कहीं कहीं पर रागी का उत्पादन होता है. डॉ. एके सिंह ने कहा कि मोटा अनाज उत्पादों का शहरी क्षेत्रों में ही प्रयोग किये जाने का प्रचलन है. मोटा अनाज को शहरी क्षेत्रों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रयोग तथा प्रसंस्करण हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.
मोटा अनाज के उत्पाद केवल स्नैक्स में न प्रयोग होकर मुख्य भोजन में सम्मिलित किये जाने चाहिए. इसके लिये सामूहिक रूप से कार्य किये जाने कर आवश्यकता है. उन्होंने मोटा अनाज को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने पर जोर दिया.
डॉ. जावेद मुसर्रत, कुलपति, इंटीग्रल विश्वविद्यालय, लखनऊ ने कहा कि मोटा अनाज जलवायु रेसीलियंट, शून्य कार्बन उत्सर्जन तथा इनमें कम कम रोग व्याधियां लगने के साथ ही पोषक तत्वों से परिपूर्ण तथा निम्न ग्लाइसेमिक इंडेक्स होने के कारण स्वास्थ्य के लिये अत्यंत लाभकारी है. अतः इनको खाद्य श्रृखंला में लाये जाने की आवश्यकता है. इसके लिए सभी संस्थाओं तथा वैज्ञानिकों को सामूहिक रूप से कार्य करना होगा.
डॉ. संजय सिंह, महानिदेशक, उ.प्र. कृषि अनुसंधान परिषद, लखनऊ ने कहा कि मोटा अनाज के उत्पादन के लिए अथक प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि राजस्थान में सबसे अधिक मोटे अनाज का क्षेत्रफल है, उसके बाद आंध्र प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में मोटा अनाज की खेती होती है.
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उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से ज्वार, बाजरा, सावां कोंदो, रागी आदि फसलें ली जा रही है. यह फसलें जलवायु परिवर्तन के अनुकूल, कम पानी, कम पोषक तत्व तथा किसी भी प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं. प्रदेश में सरकार द्वारा कृषि उत्पादन संगठनों (एफपीओ) को मोटा अनाज के उत्पादन तथा इसके प्रसंस्करण तथा उत्पाद बनाने हेतु बढ़ावा दिया जा रहा है.
डॉ. पीएस ओझा, राज्य सलाहकार, एफपीओ ने बताया कि प्रदेश सरकार श्री अन्न उत्पादन हेतु कदम कदम पर किसानों के साथ हैं. उन्होंने कहा कि श्री अन्न को देव अन्न भी कहा जाता है, इसके लिये प्रदेश सरकार द्वारा पाॅलिसी बनाई गई है, जिसमें कृषकों को श्री अन्न के उत्पादन हेतु सुविधाएं प्रदान की गई हैं. प्रदेश सरकार द्वारा श्री अन्न के उत्पादन, उत्पादकता, शोध तथा प्रोत्साहन हेतु धन आवंटित किया गया है. युवकों को उद्यमी बनाने के लिए सहयोग दिया जा रहा है.
कार्यशाला में विस्तृत विचार-विमर्श उपरांत प्रमुख संस्तुतियां दी गई. जिसमें मिलेट्स की अल्पकालीन, अधिक उत्पादकता एवं कीट एवं व्याधि अवरोधी प्रजातियों का चियन, विकास किया जाय। साथ ही साथ बायोफोर्टिफाइड विकसित प्रजातियों को क्षेत्रफल विस्तार में सम्मिलित किया जाए. मिलेट्स के उपयोग को पीडीएस, मिड- डे मील में समाहित करने के साथ साथ ग्रामीण क्षेत्रों की भोजन प्रणाली में एक आवश्यक घटक के रूप में समाहित किया जाए. मिलेट्स के गुणवत्तायुक्त बीज उत्पादन हेतु सीड हब विकसित किये जाए तथा ब्रीडर सीड उत्पादन को बढ़ावा देने की जरुरत है. विभिन्न मिलेट्स पर क्षेत्र विशेष की उपयुक्तता हेतु अनुसंधान को प्रोत्साहित किया जा सकता है. मिलेट्स के मूल्य सवंर्धित उत्पादों के दीर्घकालीन भण्डारण की तकनीकों का सुनिश्चित किया जाए.
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