4 साल की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा जीरे का रकबा, गुजरात- राजस्थान में बंपर बुवाई, अब कीमतों में आएगी गिरावट?

4 साल की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा जीरे का रकबा, गुजरात- राजस्थान में बंपर बुवाई, अब कीमतों में आएगी गिरावट?

जोधपुर स्थित दक्षिण एशिया बायोटेक सेंटर (एसएबीसी) के निदेशक भागीरथ चौधरी ने कहा कि सप्लाई में कमी और अधिक मांग के कारण जुलाई में जीरा की कीमतें 62,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थीं.

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4 साल की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा जीरे का रकबा, गुजरात- राजस्थान में बंपर बुवाई, अब कीमतों में आएगी गिरावट?जीरा की बुवाई में बढ़ोतरी. (सांकेतिक फोटो)

आने वाले महीनों में जीरे की कीमत में गिरावट आ सकती है. क्योंकि इस रबी सीजन में जीरा का रकबा अपने चार साल के रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है. खास कर राजस्थान और गुजरात में किसानों ने इस बार बड़े स्तर पर जीरे की बुवाई की है. व्यापारिक सूत्रों ने कहा कि पिछले साल जीरे की कीमत में बहुत अधिक बढ़ोतरी हुई थी. यही वजह है कि किसानों ने इस बार कमाई करने के लिए दूसरी फसलों की जगह जीरे की बुवाई करना पसंद किया. इससे इसके रकबे में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है. 

बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, 8 जनवरी तक गुजरात में जीरे का क्षेत्रफल 5.60 लाख हेक्टेयर था, जो पिछले साल के 2.75 लाख हेक्टेयर से लगभग 160 प्रतिशत अधिक है. हालांकि, सबसे बड़े इस उत्पादक राज्य में जीरा का सामान्य क्षेत्रफल 3.5 लाख हेक्टेयर है. वहीं, राजस्थान में, आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में 8 जनवरी तक 6.90 लाख हेक्टेयर में जीरा बोया गया है, जो एक साल पहले के 5.50 लाख हेक्टेयर से 25 प्रतिशत अधिक है.

इतने रकबे में जीरे की बुवाई

इस साल जीरे का कुल रकबा 12.50 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है, जो एक साल पहले के 9 लाख हेक्टेयर से 38 प्रतिशत अधिक है. मसाला बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, 2019-20 में जीरा का उत्पादन रिकॉर्ड 9.12 लाख टन था. हालांकि, पिछली तिमाही में कुल कीमत में गिरावट के बावजूद, जीरे के रकबे में बढ़ोतरी जारी है. इस सर्दी में खेती में 50 प्रतिशत से अधिक का इजाफा देखा गया है. स्पाइस एक्ज़िम के योगेश मेहता ने कहा कि पिछले साल जीरा काफी महंगा हो गया था. इसकी ऊंची कीमतों ने सभी किसानों को बड़ी मात्रा में जीरा बोने के लिए प्रेरित किया है.

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क्यों बढ़ी जीरे की कीमत

जोधपुर स्थित दक्षिण एशिया बायोटेक सेंटर (एसएबीसी) के निदेशक भागीरथ चौधरी ने कहा कि सप्लाई में कमी और अधिक मांग के कारण जुलाई में जीरा की कीमतें 62,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थीं. पिछले एक महीने में बंपर फसल होने की उम्मीद में कीमतें लगभग 50,000 रुपये प्रति क्विंटल से गिरकर लगभग 30,000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर आ गई हैं. हालांकि, बदलते जलवायु पैटर्न के कारण फसल के आकार का अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी. 

दिसंबर में जीरे का रेट

उन्होंने कहा कि औसत से कम बारिश होने के चलते इस वर्ष सिंचाई के लिए पानी की किल्लत है. चौधरी ने कहा कि इसके अलावा फसल पर फ्यूजेरियम विल्ट के हमले के भी मामले सामने आए हैं. उन्होंने आगे कहा कि जलवायु संबंधी समस्याओं के कारण, इस मौसम में ब्लाइट और रस चूसने वाले कीटों के हमलों की अधिक घटनाएं होने की आशंका है. वहीं, ऊंझा बाजार में जीरा का मॉडल मूल्य (जिस दर पर अधिकांश व्यापार होता है) 11 जनवरी को 30,500 रुपये प्रति क्विंटल पर था, जो दिसंबर की शुरुआत में 44,000 रुपये प्रति क्विंटल कारोबार कर रहा था.

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