राई की फसल तिलहन की प्रमुख फसल है. इस फसल का भारत की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान है. राई का लोग दो तरीके से उपयोग कर सकते हैं. पहली फसल से निकलने वाले खाद्य तेल को भोजन बनाने और दूसरी उसकी खली को जानवरों के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. राई की फसल से अधिक पैदावार और उच्च क्वालिटी प्राप्त करने के लिए किसान इसकी बेहतर किस्मों की खेती करके अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं.
वहीं राई के तेल की रेट ज्यादा इसलिए रहती है क्योंकि राई के तेल को लगभग सभी प्रकार से इस्तेमाल किया जाता है. राई की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती हैं. इसकी फसल हुबहू सरसों की फसल की तरह ही होती है.
अगर आप किसान हैं और किसी फसल की खेती करना चाहते हैं तो आप राई की कुछ उन्नत किस्मों की खेती कर सकते हैं. इन उन्नत किस्मों में वरुण, राजेंद्र सुफलाम, क्रांति, पूसा बोल्ड और राजेंद्र राई पछेती किस्में शामिल हैं. इन किस्मों की खेती करके अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.
राई कि यह किस्म 135 से 140 दिन के अंदर पक कर तैयार हो जाती है. इस किस्म के अंदर प्रति हेक्टेयर की दर से 20 से 22 क्विंटल राई का उत्पादन आसानी से हो जाता है. इस किस्म के अंतर्गत 42 फीसदी तेल का उत्पादन प्राप्त होता है.
राई कि इस किस्म को तैयार होने में 105 से 115 दिन लगते हैं. इस किस्म के से लगभग 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से राई का उत्पादन किया जा सकता है. वहीं इस किस्म के अंतर्गत 40 फीसदी तेल का उत्पादन होता है.
राई की यह किस्म 120 से 140 दिन के अंदर पक्कर तैयार हो जाती है. ये किस्म थोड़ी देर से तैयार होने वाली किस्मों में आती है. इस किस्म के अंदर प्रति हेक्टेयर की दर से 18 से 20 क्विंटल राई का उत्पादन आसानी से हो जाता है. इस किस्म के से 42 फीसदी तक तेल का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है.
राई की ये किस्म 125 से 130 दिन के अंदर पक्कर तैयार हो जाती है. इस किस्मों में प्रति हेक्टेयर की दर से 20 से 22 क्विंटल राई का उत्पादन आसानी से मिल सकता है. इस किस्म के अंदर 40 फीसदी तक तेल होता है.
राई की यह किस्म 105 से 120 दिन के अंदर पक्कर तैयार हो जाती है. इस किस्म के अंतर्गत लगभग 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से राई का उत्पादन किया जा सकता है. इसके अंदर प्रति हेक्टेयर की दर से 41 फीसदी तेल का उत्पादन मिलता है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today