देश में कपास के उत्पादन में गिरावट की बात कही जा रही है. आगे इसकी उपज और भी प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है. गिरावट के पीछे दो मुख्य वजह है. पहली, कपास पर आजकल नए तरह के कीटों का आक्रमण हो रहा है. इन कीटों से कपास के पौधों को निजात दिलाने का कोई कारगर तरीका अभी नहीं मिल पाया है जिससे इनका हमला और भी तेज हुआ जा रहा है. इससे पैदावार पर गंभीर असर देखने को मिल रहा है. दूसरी वजह, नई जनरेशन की ट्रांसजेनिक हाइब्रिड बीजों को अभी तक मंजूरी नहीं दी गई है. ऐसे में किसान मजबूरी में बिना मंजूरी वाले बीजों से कपास की खेती कर रहे हैं. इससे पैदावार में गिरावट देखी जा रही है.
इस बारे में फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (FSII) ने 'फाइनेंशियल एक्सप्रेस' को जानकारी दी है. जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (GEAC) से शाकनाशी (हर्बीसाइड) टोलरेंट कपास की वेरायटी को मंजूरी देने की मांग की जा रही है. कपास की यह वेरायटी ऐसी है जिस पर हर्बीसाइड कीटों का असर नहीं हो पाता जिसमें बॉलगार्ड II (htbt) का नाम प्रमुख है. एफएसआईआई ने इन बीजों की मांग करते हुए सुझाव दिया है कि कपास की सघन खेती की जानी चाहिए. इसके साथ ही कपास की अच्छी वेरायटी पर रिसर्च-डेवलपमेंट का काम किया जाना चाहिए. इससे आगे चलकर किसानों को फायदा होगा.
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FSII के डायरेक्टर जनरल राम कौंडिन्या 'फाइनेंशियल एक्सप्रेस' से कहते हैं, कपास को लेकर टेक्नोलॉजी में एक खास तरह की रुकावट देखी जा रही है. कपास की नई वेरायटी में कोई अपग्रेडेशन भी नहीं है जो जीईएसी अप्रूवल सिस्टम की तरफ से आना चाहिए. इसके अलावा पिंक बॉलवर्म ने कपास की फसल को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया है. देश में सबसे पहले 2002 में पहली जीएम फसल बॉलगार्ड-1 को कॉमर्शियल खेती के लिए मंजूरी दी गई थी. इसके बाद 2006 में बॉलगार्ड II को मंजूरी दी गई जो कीटनाशकों से बेअसर (पेस्ट रेसिस्टेंट) है. तब से लकर अब तक जीईएसी की तरफ से किसी भी नई वेरायटी को मंजूरी नहीं दी गई है.
कपास की नई वेरायटी को लॉन्च करने के लिए बायर-महिको की संयुक्त कंपनियों ने कपास की एचटीबीटी वेरायटी को मंजूरी देने के लिए दोबारा अपना आवेदन दिया है. यह आवेदन दिसंबर 2021 में जमा किया जा चुका है. इससे पहले 2016 में बायर (तब कंपनी का नाम मोंसांटो था) ने हर्बीसाइड टोलरेंट बीटी कॉटन की मंजूरी मांगी थी, लेकिन उस साल आवेदन वापस ले लिया था.
एफएसआईआई के डायरेक्टर जनरल राम कौंडिन्या कहते हैं कि 2021-22 के फसल सीजन में (जुलाई-जून) ऐसी आशंका है कि देश में 320 लाख बेल्स (एक बेल में 170 लाख किलो कपास होता है) तक कम कपास की पैदावार हुई. यह पैदावार उतनी ही है जिससे देश की मांग को पूरा किया जा सकता है. पिछले समय में पैदावार की बात करें तो 2002-2003 और 2013-14 को बीटी कपास का स्वर्ण काल माना जाता है जब देश में 316 फीसद तक पैदावार में उछाल देखा गया. इस दौरान रकबे में भी 39 फीसद की वृद्धि देखी गई.
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अब जरा पैदावार घटने का आंकड़ा भी जान लीजिए. कृषि मंत्रालय का आंकड़ा कहता है कि 2021-22 में कपास का उत्पादन 13 परसेंट तक गिरकर 31.11 मिलियन बेल्स तक पहुंच गया. इससे पहले 2013-14 में देश में कपास का उत्पादन चरम पर था जब पैदावार 35.9 मिलियन बेल्स दर्ज की गई थी. बीज से जुड़े सूत्रों ने 'फाइनेंशियल एक्सप्रेस' को बताया कि अगर हालत ऐसी ही रही तो अगले कुछ साल में देश में कपास की पैदावार में भारी गिरावट देखी जा सकती है.
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