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Climate Change: जलवायु बदलाव का असर खेती पर ज्यादा, उपज घटने पर परंपरागत फसलों की बजाय दूसरी किस्मों पर शिफ्ट हो रहे किसान 

Climate Change: जलवायु बदलाव का असर खेती पर ज्यादा, उपज घटने पर परंपरागत फसलों की बजाय दूसरी किस्मों पर शिफ्ट हो रहे किसान 

जलवायु बदलावों में बीते दो दशक से आई तेजी ने पहाड़ी इलाकों की परंपरागत खेती को बुरी तरह प्रभावित किया है. उत्तराखंड, हिमाचल और कश्मीर घाटी में होने वाली परंपरागत फसलों और फलों के उत्पादन पर क्लाइमेट चेंज का असर देखा जा रहा है.

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जलवायु बदलावों में परंपरागत फसलों की खेती को बुरी तरह प्रभावित किया है. जलवायु बदलावों में परंपरागत फसलों की खेती को बुरी तरह प्रभावित किया है.

बीते दो दशक से जलवायु बदलावों में तेजी ने पहाड़ी इलाकों की खेती को बुरी तरह प्रभावित किया है. रिपोर्ट के अनुसार सर्वाधिक नुकसान परंपरागत फसलों के उत्पादन पर देखा गया है. देश के पहाड़ी इलाकों खासकर उत्तराखंड, हिमाचल और कश्मीर घाटी में होने वाली फसलों पर क्लाइमेट चेंज का असर देखा जा रहा है. कश्मीर में दो दशक में केसर की खेती का उत्पादन 15 टन से घटकर 3 टन के करीब रह गया है. वहीं, उत्तराखंड में सेब, नाशपाती, आलूबुखारा का उत्पादन घटा है और हिमाचल प्रदेश में सेब की खेती प्रभावित हुई है. 

जलवायु स्थितियों में बदलाव के चलते उत्तराखंड में मौसम अनिश्चत रहा है. इस बार मई से जून 2024 में रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया गया. जून महीने में 40 डिग्री सेल्सियस के ऊपर रहने से मौसम वैज्ञानिक और विशेषज्ञ भी हैरान रह गए. वहीं, जुलाई में दो सप्ताह में पिथौरागढ़ समेत कई जिलों में हुई औसत से अधिक बारिश ने तबाही मचाई. 1 से 10 जुलाई तक उत्तराखंड में 239.1 मिलीमीटर बारिश हुई है, जो औसत से दोगुनी रही. 

परंपरागत फसलों से शिफ्ट हो रहे किसान

क्लाइमेट सेंट्रल की स्टडी के अनुसार अनियमित मौसम के चलते उत्तराखंड में कई फलों के उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिसके चलते स्थानीय किसान पारंपरिक फलों की खेती से मुंह मोड़ रहे हैं. उत्तराखंड के पारंपरिक फलों की खेती में सेब, नाशपाती, आलूबुखारा और खुबानी के उत्पादन की जगह गर्म मौसम में उगने वाले फलों जैसे अमरूद, करौंदा, कीवी, अनार और आम की कुछ किस्मों की खेती बढ़ी है. 

उत्तराखंड में सेब के रकबे में भारी गिरावट 

उत्तराखंड में सेब के उत्पादन और रकबे में भारी कमी देखी गई है. आंकड़ों के अनुसार साल 2016-17 में उत्तराखंड में 25,201.58 हेक्टेयर में सेब का उत्पादन किया जाता था, जो 2022-23 में घटकर 11,327.33 हेक्टेयर हो गया है. इस अवधि में सेब के उत्पादन में 30 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. इसके अलावा नींबू की कई किस्मों में 58 फीसदी की कमी देखी गई है. 

जलवायु बदलाव से हिमाचल में सेब की खेती पर असर

पहाड़ी राज्य हिमाचल में भी जलवायु स्थितियों के बदलाव से पारंपरिक फलों की खेती पर बुरा असर पड़ा है. साल 2010-11 में सेब का उत्पादन 8.92 लाख मीट्रिक टन दर्ज किया गया था.  2018-19 में सेब की उपज घटकर 3.68 लाख मीट्रिक टन रह गई. राज्य में ठंड के दिनों में गिरावट के चलते सेब के उत्पादन और क्वालिटी पर बुरा असर देखा गया है. वहीं, हिमाचल प्रदेश के साथ ही उत्तराखंड में वनीय क्षेत्र में भी कमी आई है, जिसके चलते भी जलवायु स्थितियों में बदलाव बढ़ा है. 

कश्मीर में केसर का उत्पादन 16 टन से घटकर 3 टन हुआ 

कश्मीर में जलवायु बदलावों का असर खेती पर देखने को मिला है. लंबे समय से सूखे की स्थिति और जलवायु में बदलाव के चलते केसर के उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है. जून की शुरुआत से ही कश्मीर घाटी में भीषण गर्मी पड़ रही है और तापमान 34 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है. 3 जुलाई को कश्मीर में तापमान 35.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो पिछले 25 सालों में सबसे अधिक है. मौसम में बड़े बदलाव के चलते कश्मीर घाटी में केसर की खेती करने वाले किसान मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. कई किसान अपने खेतों में केसर की बजाय सेब की खेती के लिए पौधे लगा रहे हैं तो कई सरसों की खेती शुरू कर रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1990 में 15.95 टन केसर का उत्पादन होता था जो 2023-24 में घटकर 2.6 टन पर आ गया है. कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि पिछले कई सालों में कम बर्फबारी और बारिश की कमी ने केसर के उत्पादन को प्रभावित किया है. 

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