इस साल त्योहारी सीजन की शुरुआत ने ही इलायची किसानों को खुश कर दिया है क्योंकि मसालों की रानी इलायची की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है. दरअसल उत्तर-पूर्वी मॉनसून के समय पर पहुंचने से इलायची उत्पादकों के चेहरे पर मुस्कान आ गई है. किसानों को फसल की बेहतर उपज मिलने और कीमत बढ़ने की उम्मीद जगी है. जून-जुलाई और अगस्त के दौरान दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की कमी के बावजूद, इलायची पैदावार के इलाकों में अब सितंबर से अच्छी बारिश हो रही है. इससे किसानों की जनवरी तक फसल जारी रहने की उम्मीदें फिर से जग गई हैं.
किसानों ने बताया कि पिछले दो वर्षों में कीमतों में गिरावट और कम मांग के कारण संकट के दौर से गुजरने के बाद इलायची के क्षेत्र ने स्थिरता हासिल कर ली है. वहीं कोच्ची के नेदुमगंडम के कुछ क्षेत्रों में बारिश के बाद हुए भूस्खलन से इलायची की फसल क्षतिग्रस्त हो गई है, जिससे उत्पादन प्रभावित हुआ है.
केसीपीएमसी लिमिटेड, थेक्कडी के महाप्रबंधक पीसी पुन्नूस ने 'बिजनेसलाइन' से बात करते हुए कहा कि इलायची की कीमतें पिछले साल की कीमत 970 रुपये किलो से बढ़कर 1,600 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई हैं. नीलामी के दौरान हाथों-हाथ खरीदारी के साथ प्रतिदिन औसतन 150 टन की अच्छी आवक देखी जा रही है.
ये भी पढ़ें:- Agri Quiz: सिल्क सिटी के नाम से मशहूर है ये शहर, जानें यहां के रेशम की खासियत
हालांकि, उन्होंने कहा कि कम निर्यात इलायची उद्योग के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि निर्यात बाजार में 7-8 मिमी कैप्सूल के प्रीमियम ग्रेड को अच्छी कीमत नहीं मिल रही है. इसका मुख्य कारण ग्वाटेमाला इलायची की आमद है, जो आयातक देशों में भारतीय उपज को कोई जगह नहीं दे रही है. सऊदी अरब भारतीय इलायची का सबसे बड़ा बाजार है, लेकिन उत्पादन में प्रचुरता के कारण ग्वाटेमाला अपनी उपज बहुत कम दरों पर बेच रहा है.
अन्य इलायची उत्पादक देशों से मिल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है. भारत में ऊंची कीमतों के दौरान, प्रतिस्पर्धी देशों ने अंतरिम मांगों को पूरा करने के लिए कदम बढ़ाया है. उन्होंने कहा कि इससे न केवल भारत की बाजार हिस्सेदारी कम हुई, बल्कि उपभोक्ताओं को वैकल्पिक स्रोत भी मिले हैं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today