भारत में बैंगन की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. दरअसल, बैंगन आम लोगों के बीच एक लोकप्रिय सब्जी है. आपको बता दें, कि बैंगन लंबे समय तक उपज देता है. सरल शब्दों में कहा जाए तो बैंगन एक बारहमासी पौधा है, लेकिन ज्यादातर किसान इसे वार्षिक पौधे के रूप में लगाते हैं. कई बार किसान इसकी खेती करते समय कंफ्यूज रहते हैं कि कौन सी किस्मों की खेती करके अधिक उपज पा सकते हैं. ऐसे में आज हम आपको एक ऐसी किस्म के बारे में बताएंगे जिसकी खेती करने पर कम पानी में भी भरपूर पैदावार मिलता है. साथ ही ये किस्म में वायरस की बीमारी भी नहीं लगती है.
क़ृषि वैज्ञानिको ने बैंगन की ऐसी किस्म विकसित की है, जो न केवल बीमारियों से बचाएगी, बल्कि बुढ़ापा को भी रोकेगी. भारतीय क़ृषि अनुसन्धान संस्थान, पूसा ने बैंगन की एक नई किस्म, ‘पूसा हरा बैंगन -1 का विकास किया है जिसमें भारी मात्रा मे क्यूप्रेक, फ्रेक, और फिनोर जैसे पोषक तत्त्व हैँ जो इसे एंटीऑक्सीडेंट बनाते हैं. यह रोगों से बचाने और बुढ़ापा रोकने मे प्रभावी है.
इसकी खेती खरीफ मौसम में उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र में की जाती है. एक विशेषता यह भी है कि इसे गमले में लगाया जा सकता है. गोल हरे रंग के इसके फल पर हल्के बैंगनी रंग के धब्बे होते हैं. यह किस्म रोपाई के 55 से 60 दिनों में फलने लगता है. इस किस्म की खेती किसान कम पानी वाले इलाकों में भी कर सकते हैं. साथ ही इसमें वायरस की बीमारी भी नहीं लगती है.
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बैंगन की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है और इसमें पैदावार अधिक होती है. साथ ही जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए. फसल के अच्छे विकास के लिए भूमि का पी.एच. मान 5.5-6.6 के बीच में होनी चाहिए. सिंचाई की उचित व्यवस्था होना भी जरूरी है. वहीं, बैंगन की खेती किसी भी जलवायु में आसानी से की जा सकती है.
अधिक पैदावार के लिए बैंगन के बीजों की सही तरीके से बुवाई जरूरी है. दो पौधों और दो क्यारियों के बीच करीब 60 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए. बीज बोने से पहले 4 से 5 बार खेत की अच्छी तरह से जुताई करके उसे समतल कर लें. प्रति एकड़ 300 से 400 ग्राम बीज डालना चाहिए. बीजों को 1 सेंटीमीटर की गहराई में बोने के बाद मिट्टी से ढक दें. आमतौर पर बुवाई के 35-40 दिनों में भी फसल तैयार हो जाती है.
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