
खाने का जायका बढ़ाने वाला टमाटर इन दिनों अपने रिकॉर्ड भाव की वजह से चर्चा में है. इसका दाम 200 रुपये प्रति किलो के पार हो चुका है. इसलिए ज्यादातर लोगों के किचन में इसका दिखना कम हो गया है. इसका दाम कंट्रोल करने में केंद्र सरकार भी अब तक फेल साबित हुई है. ताज्जुब की बात यह है कि मई में इसी टमाटर का रेट 2 रुपये किलो भी नहीं मिल रहा था. किसान मंडियों में फेंक कर जा रहे थे. हालांकि, तब किसानों के दर्द पर न तो सरकार ने मरहम लगाया और न तो इतने कम दाम पर कोई चर्चा ही हुई. बहरहाल, हम बात करते हैं भारत में इसकी खेती और एक्सपोर्ट की. टमाटर भी आलू की तरह भारतीय मूल की फसल नहीं है. लेकिन अब यह भारतीय लोगों के जीवन में इस तरह रच-बस गया है कि इसके बिना सब्जी अधूरी सी लगती है.
ऐसा माना जाता है कि 16वीं शताब्दी में जब पुर्तगाली भारत आए थे, तो वो अपने साथ टमाटर भी ले आए. भारत का मौसम टमाटर की फसल के लिए काफी अच्छा था, इसलिए यहां इसकी पैदावार होने लगी. भारतीय लोगों के बीच टमाटर को लोकप्रिय होने में करीब दो सौ साल लगे और 19वीं सदी के अंत तक इसका इस्तेमाल भारतीय रसोई में भी आम हो गया. लोगों का जायका बढ़ता गया और साथ ही खेती का भी विस्तार होता गया. आज हम न सिर्फ टमाटर के बड़े उत्पादक बल्कि निर्यातक भी हैं.
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भारत का टमाटर 18 देशों में एक्सपोर्ट हो रहा है. जिसमें बांग्लादेश, नेपाल, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, सऊदी अरब, ओमाना और बहरीन सबसे बड़े आयातक हैं. हालांकि, 2022-23 में यहां सिर्फ 12 देशों में एक्सपोर्ट हुआ है. एक्सपोर्ट में कमी की वजह से इससे मिलने वाली विदेशी मुद्रा में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है. साल 2020-21 के मुकाबले 2022-23 में एक्सपोर्ट लगभग 40 फीसदी कम हो गया है. अब एक्सपोर्ट सिर्फ 164 करोड़ रुपये तक सिमट गया है.
यह भारत के कृषि उत्पाद निर्यात के लिए चिंता वाली बात है. निर्यात की कहानी के बीच आपको यह भी जानना चाहिए कि टमाटर फल है या सब्जी- इस पर काफी विवाद रहा है. अमेरिका में बाकायदा एक केस लड़ा गया. जिसके आधार पर 1883 में अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया कि टमाटर को एक सब्जी ही माना जाए.
भारत में टमाटर की खेती का दायरा लगातार बढ़ रहा है, क्योंकि खपत लगातार बढ़ रही है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार साल 2005-06 के दौरान यहां सिर्फ 5,47,000 हेक्टेयर में टमाटर की खेती हुई थी. जबकि उत्पादन 99,68,000 टन था. लेकिन, 2022-23 में इसकी बुवाई का एरिया बढ़कर 8,64,000 हेक्टेयर हो गया और उत्पादन डबल होकर 2,06,21,000 टन की ऊंचाई पर पहुंच गया. अब जिस तरह से टमाटर का दाम बढ़ रहा है उसे देखते हुए अगले साल इसकी बुवाई का रकबा और बढ़ने का अनुमान है.
दाल, सब्जी हो या फास्टफूड, स्वाद बढ़ाने में टमाटर का बड़ा योगदान है. यह साल भर मिलने वाली फसल है. टमाटर की खेती रबी और खरीफ दोनों सीजन में होती है. खरीफ सीजन के टमाटर की ट्रांसप्लांटिंग मई से जुलाई तक होती है. जबकि हार्वेस्टिंग जुलाई से नवंबर तक की जाती है. रबी सीजन के टमाटर की ट्रांसप्लांटिंग अक्टूबर से फरवरी के बीच होती है. जबकि हार्वेस्टिंग दिसंबर से जून तक होती है.
आप पूछेंगे कि एक्सपोर्ट कम हो गया तो ठीक लेकिन घरेलू स्तर पर टमाटर का दाम इतना क्यों गया? इसका जवाब सीधा-सीधा नहीं मिल सकता. पिछले एक साल में ही टमाटर की बुवाई का एरिया 21000 हेक्टेयर बढ़ गया है. जबकि उत्पादन 73000 मीट्रिक टन कम हो गया है. उत्पादन में कमी के पीछे लू, अतिवृष्टि-बाढ़ और कीटों का अटैकप्रमुख कारण हैं. इसकी वजह से मांग और आपूर्ति में अंतर आ गया है. बाढ़ की वजह से सप्लाई चेन बाधित होने और फसल पर सफेद मक्खी रोग के अटैक की वजह से भी दाम बढ़ रहा है.
आंध्र प्रदेश 14.27 फीसदी उत्पादन के साथ देश का सबसे बड़ा टमाटर उत्पादक है. इसी तरह 12.87 फीसदी उत्पादन के साथ मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है. कर्नाटक 10.28 फीसदी के साथ तीसरे नंबर पर है. इसके बाद नंबर आता है गुजरात का जहां देश का 8 फीसदी उत्पादन है. ओडिशा में 7 प्रतिशत उत्पादन होता है जबकि महाराष्ट्र देश का 5.11 फीसदी उत्पादन करता है. पश्चिम बंगाल, बिहार, तेलंगाना, हरियाणा और उत्तर प्रदेश भी इसके उत्पादक हैं.
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