बिहार में बढ़ रही केले की खेती, फिर भी बाजार पर आंध्र के केलों का कब्जा

बिहार में बढ़ रही केले की खेती, फिर भी बाजार पर आंध्र के केलों का कब्जा

पिछले 15 वर्षों में बिहार में केले की खेती का रकबा 58% तक बढ़ा है. वहीं दूसरी ओर हर दिन आंध्र प्रदेश से 8 से 10 ट्रक केले बिहार के बाजारों में पहुंच रहे हैं. इसी बीच, हाजीपुर के किसान खेती में आ रही चुनौतियों से परेशान हैं.

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बिहार में बढ़ रही केले की खेती, फिर भी बाजार पर आंध्र के केलों का कब्जाबिहार में केले की खेती को बढ़ावा

बिहार में केले की खेती का दायरा लगातार बढ़ रहा है. वर्ष 2004-05 में जहां 27,200 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, वह 2022-23 में बढ़कर 42,900 हेक्टेयर हो चुकी है. इस दौरान उत्पादन में भी 261% की जबरदस्त वृद्धि दर्ज की गई है. बावजूद इसके बिहार के बाजारों में आंध्र प्रदेश से आने वाले केलों का दबदबा बना हुआ है. हर दिन राज्य में 8 से 10 ट्रक केले बाहर से आ रहे हैं.

हाजीपुर का चिनिया केला ऐतिहासिक पहचान रखता है. इतिहासकारों के अनुसार 7वीं शताब्दी में भारत यात्रा पर आए चीनी तीर्थयात्री ह्वेन सांग ने भी अपने यात्रा वृत्तांत में हाजीपुर के चिनिया केले का उल्लेख किया है. इतिहासकारों के अनुसार, 626 ई. से 645 ई. तक भारत यात्रा पर आए चीनी तीर्थयात्री ह्वेन सांग ने अपनी यात्रा-वृत्तांत ट्रैवल्स इन इंडिया में हाजीपुर के चिनिया केला की खेती का उल्लेख किया है.

हाजीपुर का चिनिया केला ऐतिहासिक

वैशाली पहुंचने पर वे लिखते हैं- यहां की भूमि उपजाऊ और भरपूर उत्पादन देने वाली है. विशेष रूप से यहां मोच यानी केले की खेती प्रमुखता से की जाती है. आज भी यह परंपरा जीवित है. आज भी यह विरासत हाजीपुर और उसके आसपास के गांवों में जीवित है. यहां चिनिया, मालभोग, कोठिया, बरेली चिनिया जैसी किस्मों की खेती की जाती है.

पिछले 15 वर्षों में न केवल क्षेत्रफल बढ़ा है, बल्कि उत्पादन भी तेजी से बढ़ा है. प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 20 मीट्रिक टन से बढ़कर 45 मीट्रिक टन हो गई है. आज बिहार के 11 से अधिक जिलों में केले की खेती हो रही है. हाजीपुर, नवगछिया, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, भागलपुर, पटना, सारण, चंपारण, नालंदा और भोजपुर जैसे जिले प्रमुख उत्पादक क्षेत्र बन चुके हैं. G-9 जैसी टिश्यू कल्चर आधारित प्रजातियां भी लोकप्रिय हो रही हैं.

क्या कहते हैं किसान

हालांकि, इसके बावजूद किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. हाजीपुर के किसान अवधेश कुमार सिंह बताते हैं कि उकठा रोग, आंधी-तूफान और गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण के अभाव ने केले की खेती को नुकसान पहुंचाया है. सरकार से हाजीपुर के केले के लिए विशेष कार्ययोजना की मांग हो रही है.

बाजार में बाहरी केलों का वर्चस्व

पटना फ्रूट्स एंड वेजिटेबल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष जय प्रकाश वर्मा बताते हैं कि पटना की फल मंडी में साल भर आंध्र प्रदेश से 8 से 10 ट्रक केले आते हैं. जबकि बिहार का केला केवल मौसम के अनुसार आता है. अभी हाजीपुर का केला बाजार में है, इसके बाद नवगछिया का केला आएगा. 

हाजीपुर के केला किसान अवधेश कुमार सिंह कहते हैं, “हाजीपुर की पहचान ही केले से है, लेकिन अब इसका नाम मिटने की कगार पर है. यहां का केला केवल लोकल बाजार तक सिमट गया है. कई किसान अब इस खेती से दूरी बना रहे हैं. सरकार को हाजीपुर के केले के लिए विशेष कार्ययोजना बनानी चाहिए. वे बताते हैं कि बीते कुछ वर्षों में उकठ्ठा रोग और आंधी-तूफान से फसलें बर्बाद हुई हैं.

केले की गुणवत्ता में गिरावट

साथ ही, बेहतर प्रशिक्षण के अभाव में केले की गुणवत्ता भी गिर रही है. हाजीपुर का केला विश्वप्रसिद्ध है. यहां चिनिया केला के अलावा मालभोग, कोठिया, मुठिया, अल्पान, कंठाली चिनिया, बरेली चिनिया और बत्तीसा जैसी कई किस्मों की खेती होती है. अब केले की खेती हाजीपुर से निकलकर बिहार के अन्य जिलों तक फैल चुकी है.परंपरागत खेती के साथ-साथ अब टिशू कल्चर से विकसित G-9 (ग्रैंड नेने) प्रजाति की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है. वर्तमान में मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, भागलपुर, पटना, सारण (छपरा), पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, नालंदा, अरवल और भोजपुर सहित कई जिलों में केले की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है.

केले की खेती से जुड़े आंकड़े भले ही प्रगति की तस्वीर दिखा रहे हों, लेकिन बाजार में बाहर से आने वाले केलों की भरमार और उत्पादन में आ रही तकनीकी और प्राकृतिक चुनौतियां किसानों को परेशान कर रही हैं. जरूरत है कि सरकार उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ बाजार उपलब्धता और ब्रांडिंग पर भी विशेष ध्यान दे. ताकि हाजीपुर का केला फिर से वैश्विक पहचान पा सके.

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