पिछले दो वर्षों से लगातार खराब पैदावार और मौसम की मार झेल रहे महाराष्ट्र के वर्धा जिले के एक युवा किसान ने 150 संतरे के पेड़ काट दिए हैं. अब वह खेत में नकदी फसलें उगाने की तैयारी में हैं. घाटगे गांव के किशोर बानगरे ने 3.5 एकड़ की ज़मीन पर 9 साल पहले 400 संतरे के पौधे लगाए थे. उन्होंने कृषि में डिप्लोमा किया है और आधुनिक तरीकों से खेती की कोशिश की थी. 5 साल बाद पेड़ फल देने लगे और 2-3 बार अच्छी पैदावार भी हुई. लेकिन पिछले दो सालों से मौसम की मार ने उनकी सारी उम्मीदें तोड़ दीं.
किशोर बताते हैं कि उनका बाग वर्षा पर निर्भर है. पिछले साल बारिश तो हुई, लेकिन उसके तुरंत बाद भीषण गर्मी पड़ गई. इसका असर यह हुआ कि पेड़ों पर फल नहीं लगे. इसी तरह लगातार दो साल खराब मौसम के कारण संतरे की पैदावार न के बराबर रही. खर्चा तो लगातार हो रहा था, लेकिन आमदनी शून्य हो गई.
"मेरे पास अब कोई चारा नहीं बचा था," किशोर कहते हैं. "जिंदगी चलाने के लिए मुझे 150 पेड़ काटने पड़े, ताकि उन जगहों पर दूसरी फसलें उगा सकूं." हालांकि उन्होंने अब भी 250 पेड़ बचे रहने दिए हैं, इस उम्मीद में कि शायद आने वाले समय में थोड़ी बहुत पैदावार हो.
नागपुरी संत्रा फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी के अध्यक्ष मनोज जावंजाल कहते हैं कि किशोर की कहानी अकेली नहीं है. विदर्भ के कई इलाकों में किसानों को संतरे की पैदावार में गिरावट का सामना करना पड़ रहा है. लगातार चार साल से फल समय से पहले गिर रहे हैं, जिससे नुकसान हो रहा है.
हालांकि कुछ संस्थाएं जैसे कि सह्याद्री फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी, एग्रोविजन और महा ऑरेंज किसानों को बेहतर खेती की तकनीकें सिखा रही हैं. नई किस्में और उन्नत खेती के तरीके अपनाकर किसान फिर से अच्छी पैदावार पा सकते हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि किसानों को थोड़ा धैर्य रखना होगा. सही समय पर खाद, पानी और देखरेख से संतरे की खेती दोबारा फायदेमंद हो सकती है. मौसम की मार से लड़ने के लिए अब स्मार्ट खेती अपनाने की जरूरत है.
किशोर बानगरे जैसे किसान आज मुश्किल समय से गुजर रहे हैं. बदलते मौसम और बढ़ती लागत ने उन्हें नई राह चुनने पर मजबूर कर दिया है. लेकिन उम्मीद की किरण अभी बाकी है- तकनीक, जानकारी और धैर्य से वे फिर से अपने बागों को संजीवनी दे सकते हैं.
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